सब्जी मन्डी की कसम । आज उस मास्टर का किस्सा खत्म कर ही देते हैं । मास्टर से अब मेरी बोलचाल न के बराबर है ।
लेकिन अभी भी मुझे कुछ छोटे छोटे अनुभव याद हैं ।
दिल्ली दर्शन के बाद, साल 2000 में जून महीने के पहले हफ़्ते में उस मास्टर ने फ़िर आकर कहा - त्रिपाठी जी ! क्या इरादा है । गर्मियों का मौसम है । सबकी छुट्टियाँ हैं । मैं आज तक अपने बच्चों को कभी " हिल स्टेशन " नही लेकर गया । इस बार " कुल्लू मनाली " चलें ।
मैं ठिठका । मैंने सोचा । कही ऐसा न हो जाये कि सस्ते के चक्कर में ये मास्टर किसी ऐसी जगह ले जाये । जहाँ आसपास
होटल ही न हो । और ये वहाँ बोल दे कि - रात ही तो काटनी है । सडक पर ही सो जाओ । हमने कौन सा सडक खरीद कर घर ले जानी है ।
फ़िर मैंने ये भी सोचा कि बाथरूम की जगह ये.. ये न बोल दे कि - त्रिपाठी जी ! बाथरूम की क्या समस्या है ? सब जगह बाथरूम ही तो है । जहाँ मर्जी कर लो । हिन्दुस्तान में थूकने और मूतने की खूली छूट है । राजीव राजा ! इन बातों के डर से मैंने उसके साथ उस दिन घूमने जाने से मना कर दिया ।
देखो राजा ! ये मास्टर भी कितना ना..यक आदमी है । मास्टर होकर भी कसरत करने वालों के खिलाफ़ है । कहता है । सिर्फ़ पी टी करो । मुझे आज भी अच्छी तरह याद है कि साल 2000 के दिसम्बर महीने के आखिरी हफ़्ते में मैं इसको अपने साथ 1 फ़िल्म दिखाने ले गया । मैंने सोचा । अकेला क्या जाऊँगा । मास्टर अपना पडोसी है । उसे साथ ले चलता हूँ । हम दोनों शाम वाला शो देखने चल पङे । मैंने टिकट खरीद ली । जब तक फ़िल्म शुरू नहीं हुई । तब तक मास्टर फ़िल्म के पोस्टर को बडे ध्यान से देख रहा था ।
खैर फ़िल्म शुरू हुई । इन्टरवल में मैंने मास्टर को काफ़ी पिलायी । मास्टर फ़िल्म खत्म होने तक चुपचाप रहा । जब फ़िल्म खत्म हुई । तब हम दोनों बाहर जाने को उठे ।
तब मास्टर अचानक बोल पङा - त्रिपाठी जी ! ये आप मुझे कैसी फ़िल्म में ले आये ?
मैंने मास्टर से कहा - भई ! कितनी पावरफ़ुल फ़िल्म थी । हीरो और विलेन दोनों की क्या जबर्दस्त बाडी थी ।
इतने में हम कार पार्किंग तक आ गये । कार में बैठकर जब हम घर को चल पङे । तब मास्टर मेरे को रास्ते में समझाने लगा ।
मास्टर बोला - त्रिपाठी जी ! बाडी वाडी से कुछ नहीं होता । जब मैं जवान था । तो 1 बार मैं फ़िजीकल का टेस्ट देने गया । मुझसे कहा गया कि - या तो 400 मीटर की दौङ लगाओ । या लोहे का गोला ( शार्टपुट ) फ़ेंक कर दिखाओ ।
तो मैंने सोचा कि - कौन साला दौङ
लगायेगा । ऐसे ही साले भगा भगा कर जान निकाल देंगे । ऐसा करता हूँ । गोला फ़ेंक कर घर को निकल लेता हूँ ।
जब मैं मैदान में पहुँचा । तो वहाँ 1 पहलवान टायप आदमी खङा था । उसकी बहुत बाडी थी । मुझे उसको देखकर डर लग रहा था । वो भी मुझे घूर रहा था । जब उसकी गोला फ़ेंकने की बारी आयी । तो उसने गोला फ़ेंका । उसका फ़ेंका गोला थोङी दूरी पर जाकर गिर गया । फ़िर मेरी बारी आयी ।
मैंने उस पहलवान की तरफ़ देखते हुए डरते डरते गोला उठाया । और फ़ेंक दिया । मेरा फ़ेंका गोला उस पहलवान के फ़ेंके हुये गोले से भी अधिक दूर गिरा । पहलवान हैरानी से मेरी तरफ़ देखने लगा ।
फ़िर मैंने उसे कहा - ये तो मैंने डरते हुये फ़ेंका था । अब मैं दोबारा इसे फ़ेंकूँगा । फ़िर तुम देखना कि ये कहाँ जाकर गिरेगा ।
मास्टर की बात सुनकर मैं सोचने लगा कि - तब भी तुमने कौन सा पाकिस्तान मे फ़ेंक देना था । 1 बात और याद आयी । मास्टर ने 1997 के आसपास 1 रिक्शे वाले को अपने घर किराये पर रख लिया । रिक्शे वाला दिन भर रिक्शा चलाता था । उसकी पत्नी लोगों के घरों में झाङू पोंछा लगाती थी । उन दोनों के 2 छोटे बच्चे थे । 1 लङका और 1 लङकी । रिक्शे वाले की पत्नी बहुत ही मोटी थी । रंग काला था । बिलकुल भैंस लगती थी । रिक्शेवाला भी बिल्कुल काला था । चेहरे पर हल्की मूँछे थीं । लेकिन उसने सर पर बाल संजय दत्त जैसे रखे हुये थे । लम्बे लम्बे । जैसे संजय दत्त ने 1991 मे बनी फ़िल्म " सङक " में रखे थे ।
वो अपने आपको संजय दत्त से कम नहीं समझता था ।
मेरे पास भी वो कभी न कभी आ जाता था । कई बार स्कूटर खराब होने पर मैं उसके रिक्शे पर ही कालेज चला जाता था । वो मुझे कहता था - त्रिपाठी जी ! मुझे पूजा भट्ट बहुत अच्छी लगती है । सङक फ़िल्म तो कमाल की थी । संजय दत्त की क्या एक्टिंग थी । फ़िल्म में जो गुंडा था । उसने हिजङे की क्या शानदार एक्टिंग की है । वो रिक्शे वाला फ़ैशनेबल था । अपने लम्बे बालों को दही से धोता था ।
1 दिन मास्टर ने मुझे कहा - ये साला रिक्शे वाला नालायक आदमी है । जितना कमाता है । उतना ही खर्च भी करता है ।
साला नालायक आदमी भविष्य के लिये कुछ बचत ही नहीं करता । ये साला शराब भी पीता है । और सूअर का मीट भी खाता है ।
मैंने कहा - मास्टर जी ! ये बेचारा गरीब आदमी है । इसने कौन सा बचत करके महल खङा करना है । या बच्चों को कुछ पढाना लिखाना है । ऐसे बहुत से लोग है । जिनका काम भगवान सहारे ही चल जाता है ( वैसे असल में सबका काम भगवान सहारे ही चलता है । पर किसी को पता नहीं चलता )
मैंने फ़िर उसे कहा - मास्टर जी ! इन लोगों की सोच सिर्फ़ इतनी ही होती है । बेचारा करे भी तो क्या करे । सारा दिन सङकों पर रिक्शा चलाना पङता है । अगर अपने कमाये हुए थोडे से पैसों से कुछ मजा कर भी लिया । तो इतना तो उसे अधिकार है । थोडा सा कमाते है । कभी कभी कुछ अच्छा खा पी लेते हैं ।
तब मास्टर बस लगा गाँधी और नेहरू के नाम पर भाषण देने ।
मैंने मन में कहा - जा अपनी....?
खैर 1 बार उस रिक्शे वाले का उस मास्टर से झगडा हो गया । बात यूँ हुई । 1 बार शाम को रिक्शे वाले का ससुर आ गया । उसका ससुर फ़ौज में जमादार टाइप नौकरी करता था । रिटायर हो चुका था । लेकिन अपने आपको रिटायर फ़ौजी अफ़सर से कम नहीं समझता था ।
उस दिन उन दोनों ( ससुर और दामाद ) ने दबाकर शराब पी । और रात को देर से घर लौटे । मास्टर ने उस रोज रात 10 बजे तक सब ताले वगैरह लगा दिये । रिक्शेवाला और उसका ससुर रात 10 बजे के बाद आये । लेकिन अन्दर कैसे जाते । ताले लगे हुये थे । उन्होंने बैल बजाई । लेकिन मास्टर ने गुस्से में दरवाजा नहीं खोला ।
रिक्शे वाले की पत्नी घर के अन्दर थी । और डरी हुई थी । तब शराब चङी होने के कारण रिक्शेवाले ने और उसके ससुर ने मास्टर को गन्दी गन्दी गालियाँ देनी शुरू कर दीं । रिक्शे वाले का ससुर तो यहाँ तक भी बोल रहा था कि - ओये मास्टर ! तू साला क्या चीज है । सिर्फ़ 2 पैसे का मास्टर है । मैं फ़ौज से रिटायर हुआ हूँ । तू बाहर निकल साले तेरी.......।
रिक्शे वाला भी बोल रहा था - अबे ओये मास्टर ! साले मैं तेरी औकात जानता हूँ । हिम्मत है । तो बाहर निकल भैण....।
राजीव राजा ! अडोस पडोस वाले गवाह हैं । उस रात मास्टर बाहर नहीं निकला । सिर्फ़ अन्दर खिडकी से बिल्ली की तरह बाहर को ताक रहा था ( वैसे मास्टर अपने आपको बहुत बहादुर समझता है )
खैर, रिक्शे वाला और उसका ससुर मास्टर को रात के 12 बजे तक गालियाँ देते रहें । और फ़िर वहीं कहीं सङक पर सो गये ।
सुबह जब नशा टूटा । फ़िर शर्मिंदगी महसूस हुई । लेकिन उस सुबह मास्टर ने उस रिक्शे वाले को शराफ़त से कमरा खाली करने को कह दिया । रिक्शे वाले ने भी कमरा खाली कर दिया ।
वो रिक्शे वाला मुझे आज भी कहीं न कहीं दिख जाता है । मुझे देखते ही वो मेरे को सैल्य़ूट मारता है । मैं भी स्कूटर रोककर उसका हालचाल पूछ लेता हूँ ।
राजीव राजा ! मेरी आदत है । मैं अमीर गरीब का अधिक भेदभाव नहीं करता । जो भी प्यार से मिले । तो दिल
खोलकर मिलता हूँ । मैं तो सिर्फ़ प्यार का दीवाना हूँ ।
मास्टर वैसे आजकल मास्टर नहीं रहा । वकील बन गया है । सिर्फ़ कुछ साल पहले की बात है ।
मास्टर की पत्नी बोली - हमारी बेटियाँ अभी तो छोटी हैं । लेकिन 1 दिन बङी हो जायेंगी । इनकी शादी भी करनी पङेगी । अगर आप वकालत की पढाई कर लो ( प्राइवेट तौर पर ) तो हमारा सामाजिक रूतबा बङ जायेगा । क्युँ कि टीचर की बेटी को अच्छा रिश्ता नहीं आयेगा ।
मैंने मन में सोचा - भैण च.......कैसे लोग हैं । टीचर को " पिलर आफ़ दी सोसाईटी " कहते हैं । सभ्य समाज की बुनियाद । लेकिन इन लोगों को अपने टीचर होने पर शर्म है ।
वैसे मैंने 1 बार मास्टर के मुँह से भी सुना था कि - त्रिपाठी जी ! उस समय बस जैसी नौकरी मिल गयी । हमने कर ली । सिर्फ़ दाल रोटी के लिये ।
वैसे मास्टर पुलिस वाले के बहुत खिलाफ़ रहता है । कहता है । ये लोग हमेशा ही गलत होते हैं ।
मैंने मन में कहा - जैसा समाज वैसी पुलिस । जब समाज ही गलत लोगों से भरा पङा है । तो सब कुछ गलत ही मिलेगा । चाहे पुलिस हो । चाहे मास्टर । चाहे बाबा ।
राजीव राजा ! पुरानी हिन्दी फ़िल्मों में जैसे हीरोइन का बाप बङा आदर्शवादी और अपनी बेटी से अँधा प्रेम करने वाला दिखाया जाता था । ये मास्टर भी कुछ कुछ ऐसा ही है । इसी अँधे प्रेम के चक्कर में इसने अपने पैर पर कुल्हाङी मार ली ।
हमारी कालोनी में 1 डाक्टरों का परिवार है । उस परिवार में सब लोग डाक्टर ही हैं । ये मास्टर उनसे बहुत प्रभावित है । शायद इस वजह से इसने सोच लिया होगा कि अपनी बङी बेटी को डाक्टर ही बनाऊँगा ।
दूसरा कारण ये हो सकता है कि ये अपने परिवार और ससुराल वालों को ये दिखाना चाहता हो कि मैं भी किसी से कम नहीं । क्युँ कि इन दोनों पति और पत्नी को इनके घर वालों ने प्रेम विवाह करने पर घर से बेदखल कर दिया था । इसलिये इन दोनों में कुछ हीन भावना भी छुपी हुई है । इसलिये अपनी बङी बेटी जो पढने में महाना..यक है ( वो सब कामों में ना...यक है । सिर्फ़ आशिकी को छोङकर ) उसने बङी मुश्किल से 12वीं पास की थी ।
मेडिकल में उस लडकी को सारे हिन्दुस्तान में किसी भी मेडिकल कालेज में एडमिशन नहीं मिली । किसी चूतिये के कहने पर मास्टर ने अपनी बेटी की एडमिशन नेपाल के किसी नये बने मेडिकल कालेज में करवा दी । मुझे किसी ने बताया है कि वो कालेज बनाने वाले केरला तरफ़ के हैं । वो लोग कम नम्बर वाले बच्चों को एडमिशन दे देते हैं ( मोटा पैसा लेकर ) और हर साल पास कर देते हैं । तो इस मास्टर ने अपनी बेटी की एडमिशन वहाँ 22 लाख ( पूरे 5 साल की फ़ीस खाने पीने सहित ) में करवा दी । पैसा उसने अपने छोटे से घर पर कर्जा लेकर लिया । लेकिन समस्या ये है कि वहाँ का पढा हुआ बच्चा यहाँ भारत में नौकरी नहीं कर सकता ।
उसे वहाँ से 5 साल पढाई करके यहाँ आकर 1 टेस्ट पास करना होगा ( जो बहुत ही कठिन किया गया है ) तब जाकर उसे डाक्टरी करने का लायसेंस मिलेगा । मास्टर की बेटी वैसे ही महा..लायक है । कुछ साल पहले जब मास्टर की बेटी शायद सातवीं या आठवीं कक्षा में थी ।
उसने मुझसे पूछा कि - अंकल जी ! भोपाल का " प्राइम मिनिस्टर " कौन है ?
मैं उसका प्रश्न सु्नकर हैरान हुआ । लेकिन बोला कुछ नहीं ।
देख लिया राजा । उस लङकी की समझ । मास्टर ने भावना में बहकर गलती ही की है । अब ऐसे 2 नम्बर में पढे लिखे और पास हुये लोग क्या काम करेंगे ।
इसी महीने की बात है । मैं ई टी वी मध्य प्रदेश चैनल पर खबरें सुन रहा था । मध्य प्रदेश के किसी छोटे शहर में 1 आदमी घायल हालत में लाया गया । किसी लेडी डाक्टर ने उसे चेक किया । और कहा - ये मर गया है । इस लाश को पोस्टमार्टम के लिये भेज दो ।
जब उसके रिश्तेदार उसे पोस्टमार्टम के लिये लेकर गये । तो पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर ने कहा - तुम लोग पागल हो । जो इसे यहाँ ले आये । ये तो जिंदा है ।
तब फ़िर उस मरीज के रिश्तेदारो ने हँगामा किया । और पुलिस में उस महिला डाक्टर के खिलाफ़ रिपोर्ट लिखाई । अब मैं ऐसे पढे लिखों से पूछूँ - सालो ! तुम्हारे बाप ने पढ लिख कर कौन से झन्डे गाङ दिये । जो तुम लोग पढ लिख कर उन्हें उखाङ दोगे ।
खैर.. मास्टर पागल है जाने दो । सावन को आने दो । पता नहीं उसका क्या होगा ? उसको 1 बडी अजीब सी बीमारी है । उसको पेशाब के साथ थोङा बहुत खून भी आता है । इसलिये उसका इलाज चल रहा है । इन्दौर से । इसलिये पिछ्ले कुछ समय से वो बाबा रामदेव का भक्त बना हुआ है । उसे उम्मीद है कि बाबा रामदेव जी उसका पेशाब के साथ खून निकलना बन्द कर देंगे... हा हा हा ।
**********
सभी चित्र और लेख - श्री विनोद त्रिपाठी । भोपाल । मध्य प्रदेश । ई मेल से ।
लेकिन अभी भी मुझे कुछ छोटे छोटे अनुभव याद हैं ।
दिल्ली दर्शन के बाद, साल 2000 में जून महीने के पहले हफ़्ते में उस मास्टर ने फ़िर आकर कहा - त्रिपाठी जी ! क्या इरादा है । गर्मियों का मौसम है । सबकी छुट्टियाँ हैं । मैं आज तक अपने बच्चों को कभी " हिल स्टेशन " नही लेकर गया । इस बार " कुल्लू मनाली " चलें ।
मैं ठिठका । मैंने सोचा । कही ऐसा न हो जाये कि सस्ते के चक्कर में ये मास्टर किसी ऐसी जगह ले जाये । जहाँ आसपास
होटल ही न हो । और ये वहाँ बोल दे कि - रात ही तो काटनी है । सडक पर ही सो जाओ । हमने कौन सा सडक खरीद कर घर ले जानी है ।
फ़िर मैंने ये भी सोचा कि बाथरूम की जगह ये.. ये न बोल दे कि - त्रिपाठी जी ! बाथरूम की क्या समस्या है ? सब जगह बाथरूम ही तो है । जहाँ मर्जी कर लो । हिन्दुस्तान में थूकने और मूतने की खूली छूट है । राजीव राजा ! इन बातों के डर से मैंने उसके साथ उस दिन घूमने जाने से मना कर दिया ।
देखो राजा ! ये मास्टर भी कितना ना..यक आदमी है । मास्टर होकर भी कसरत करने वालों के खिलाफ़ है । कहता है । सिर्फ़ पी टी करो । मुझे आज भी अच्छी तरह याद है कि साल 2000 के दिसम्बर महीने के आखिरी हफ़्ते में मैं इसको अपने साथ 1 फ़िल्म दिखाने ले गया । मैंने सोचा । अकेला क्या जाऊँगा । मास्टर अपना पडोसी है । उसे साथ ले चलता हूँ । हम दोनों शाम वाला शो देखने चल पङे । मैंने टिकट खरीद ली । जब तक फ़िल्म शुरू नहीं हुई । तब तक मास्टर फ़िल्म के पोस्टर को बडे ध्यान से देख रहा था ।
खैर फ़िल्म शुरू हुई । इन्टरवल में मैंने मास्टर को काफ़ी पिलायी । मास्टर फ़िल्म खत्म होने तक चुपचाप रहा । जब फ़िल्म खत्म हुई । तब हम दोनों बाहर जाने को उठे ।
तब मास्टर अचानक बोल पङा - त्रिपाठी जी ! ये आप मुझे कैसी फ़िल्म में ले आये ?
मैंने मास्टर से कहा - भई ! कितनी पावरफ़ुल फ़िल्म थी । हीरो और विलेन दोनों की क्या जबर्दस्त बाडी थी ।
इतने में हम कार पार्किंग तक आ गये । कार में बैठकर जब हम घर को चल पङे । तब मास्टर मेरे को रास्ते में समझाने लगा ।
मास्टर बोला - त्रिपाठी जी ! बाडी वाडी से कुछ नहीं होता । जब मैं जवान था । तो 1 बार मैं फ़िजीकल का टेस्ट देने गया । मुझसे कहा गया कि - या तो 400 मीटर की दौङ लगाओ । या लोहे का गोला ( शार्टपुट ) फ़ेंक कर दिखाओ ।
तो मैंने सोचा कि - कौन साला दौङ
लगायेगा । ऐसे ही साले भगा भगा कर जान निकाल देंगे । ऐसा करता हूँ । गोला फ़ेंक कर घर को निकल लेता हूँ ।
जब मैं मैदान में पहुँचा । तो वहाँ 1 पहलवान टायप आदमी खङा था । उसकी बहुत बाडी थी । मुझे उसको देखकर डर लग रहा था । वो भी मुझे घूर रहा था । जब उसकी गोला फ़ेंकने की बारी आयी । तो उसने गोला फ़ेंका । उसका फ़ेंका गोला थोङी दूरी पर जाकर गिर गया । फ़िर मेरी बारी आयी ।
मैंने उस पहलवान की तरफ़ देखते हुए डरते डरते गोला उठाया । और फ़ेंक दिया । मेरा फ़ेंका गोला उस पहलवान के फ़ेंके हुये गोले से भी अधिक दूर गिरा । पहलवान हैरानी से मेरी तरफ़ देखने लगा ।
फ़िर मैंने उसे कहा - ये तो मैंने डरते हुये फ़ेंका था । अब मैं दोबारा इसे फ़ेंकूँगा । फ़िर तुम देखना कि ये कहाँ जाकर गिरेगा ।
मास्टर की बात सुनकर मैं सोचने लगा कि - तब भी तुमने कौन सा पाकिस्तान मे फ़ेंक देना था । 1 बात और याद आयी । मास्टर ने 1997 के आसपास 1 रिक्शे वाले को अपने घर किराये पर रख लिया । रिक्शे वाला दिन भर रिक्शा चलाता था । उसकी पत्नी लोगों के घरों में झाङू पोंछा लगाती थी । उन दोनों के 2 छोटे बच्चे थे । 1 लङका और 1 लङकी । रिक्शे वाले की पत्नी बहुत ही मोटी थी । रंग काला था । बिलकुल भैंस लगती थी । रिक्शेवाला भी बिल्कुल काला था । चेहरे पर हल्की मूँछे थीं । लेकिन उसने सर पर बाल संजय दत्त जैसे रखे हुये थे । लम्बे लम्बे । जैसे संजय दत्त ने 1991 मे बनी फ़िल्म " सङक " में रखे थे ।
वो अपने आपको संजय दत्त से कम नहीं समझता था ।
मेरे पास भी वो कभी न कभी आ जाता था । कई बार स्कूटर खराब होने पर मैं उसके रिक्शे पर ही कालेज चला जाता था । वो मुझे कहता था - त्रिपाठी जी ! मुझे पूजा भट्ट बहुत अच्छी लगती है । सङक फ़िल्म तो कमाल की थी । संजय दत्त की क्या एक्टिंग थी । फ़िल्म में जो गुंडा था । उसने हिजङे की क्या शानदार एक्टिंग की है । वो रिक्शे वाला फ़ैशनेबल था । अपने लम्बे बालों को दही से धोता था ।
1 दिन मास्टर ने मुझे कहा - ये साला रिक्शे वाला नालायक आदमी है । जितना कमाता है । उतना ही खर्च भी करता है ।
साला नालायक आदमी भविष्य के लिये कुछ बचत ही नहीं करता । ये साला शराब भी पीता है । और सूअर का मीट भी खाता है ।
मैंने कहा - मास्टर जी ! ये बेचारा गरीब आदमी है । इसने कौन सा बचत करके महल खङा करना है । या बच्चों को कुछ पढाना लिखाना है । ऐसे बहुत से लोग है । जिनका काम भगवान सहारे ही चल जाता है ( वैसे असल में सबका काम भगवान सहारे ही चलता है । पर किसी को पता नहीं चलता )
मैंने फ़िर उसे कहा - मास्टर जी ! इन लोगों की सोच सिर्फ़ इतनी ही होती है । बेचारा करे भी तो क्या करे । सारा दिन सङकों पर रिक्शा चलाना पङता है । अगर अपने कमाये हुए थोडे से पैसों से कुछ मजा कर भी लिया । तो इतना तो उसे अधिकार है । थोडा सा कमाते है । कभी कभी कुछ अच्छा खा पी लेते हैं ।
तब मास्टर बस लगा गाँधी और नेहरू के नाम पर भाषण देने ।
मैंने मन में कहा - जा अपनी....?
खैर 1 बार उस रिक्शे वाले का उस मास्टर से झगडा हो गया । बात यूँ हुई । 1 बार शाम को रिक्शे वाले का ससुर आ गया । उसका ससुर फ़ौज में जमादार टाइप नौकरी करता था । रिटायर हो चुका था । लेकिन अपने आपको रिटायर फ़ौजी अफ़सर से कम नहीं समझता था ।
उस दिन उन दोनों ( ससुर और दामाद ) ने दबाकर शराब पी । और रात को देर से घर लौटे । मास्टर ने उस रोज रात 10 बजे तक सब ताले वगैरह लगा दिये । रिक्शेवाला और उसका ससुर रात 10 बजे के बाद आये । लेकिन अन्दर कैसे जाते । ताले लगे हुये थे । उन्होंने बैल बजाई । लेकिन मास्टर ने गुस्से में दरवाजा नहीं खोला ।
रिक्शे वाले की पत्नी घर के अन्दर थी । और डरी हुई थी । तब शराब चङी होने के कारण रिक्शेवाले ने और उसके ससुर ने मास्टर को गन्दी गन्दी गालियाँ देनी शुरू कर दीं । रिक्शे वाले का ससुर तो यहाँ तक भी बोल रहा था कि - ओये मास्टर ! तू साला क्या चीज है । सिर्फ़ 2 पैसे का मास्टर है । मैं फ़ौज से रिटायर हुआ हूँ । तू बाहर निकल साले तेरी.......।
रिक्शे वाला भी बोल रहा था - अबे ओये मास्टर ! साले मैं तेरी औकात जानता हूँ । हिम्मत है । तो बाहर निकल भैण....।
राजीव राजा ! अडोस पडोस वाले गवाह हैं । उस रात मास्टर बाहर नहीं निकला । सिर्फ़ अन्दर खिडकी से बिल्ली की तरह बाहर को ताक रहा था ( वैसे मास्टर अपने आपको बहुत बहादुर समझता है )
खैर, रिक्शे वाला और उसका ससुर मास्टर को रात के 12 बजे तक गालियाँ देते रहें । और फ़िर वहीं कहीं सङक पर सो गये ।
सुबह जब नशा टूटा । फ़िर शर्मिंदगी महसूस हुई । लेकिन उस सुबह मास्टर ने उस रिक्शे वाले को शराफ़त से कमरा खाली करने को कह दिया । रिक्शे वाले ने भी कमरा खाली कर दिया ।
वो रिक्शे वाला मुझे आज भी कहीं न कहीं दिख जाता है । मुझे देखते ही वो मेरे को सैल्य़ूट मारता है । मैं भी स्कूटर रोककर उसका हालचाल पूछ लेता हूँ ।
राजीव राजा ! मेरी आदत है । मैं अमीर गरीब का अधिक भेदभाव नहीं करता । जो भी प्यार से मिले । तो दिल
खोलकर मिलता हूँ । मैं तो सिर्फ़ प्यार का दीवाना हूँ ।
मास्टर वैसे आजकल मास्टर नहीं रहा । वकील बन गया है । सिर्फ़ कुछ साल पहले की बात है ।
मास्टर की पत्नी बोली - हमारी बेटियाँ अभी तो छोटी हैं । लेकिन 1 दिन बङी हो जायेंगी । इनकी शादी भी करनी पङेगी । अगर आप वकालत की पढाई कर लो ( प्राइवेट तौर पर ) तो हमारा सामाजिक रूतबा बङ जायेगा । क्युँ कि टीचर की बेटी को अच्छा रिश्ता नहीं आयेगा ।
मैंने मन में सोचा - भैण च.......कैसे लोग हैं । टीचर को " पिलर आफ़ दी सोसाईटी " कहते हैं । सभ्य समाज की बुनियाद । लेकिन इन लोगों को अपने टीचर होने पर शर्म है ।
वैसे मैंने 1 बार मास्टर के मुँह से भी सुना था कि - त्रिपाठी जी ! उस समय बस जैसी नौकरी मिल गयी । हमने कर ली । सिर्फ़ दाल रोटी के लिये ।
वैसे मास्टर पुलिस वाले के बहुत खिलाफ़ रहता है । कहता है । ये लोग हमेशा ही गलत होते हैं ।
मैंने मन में कहा - जैसा समाज वैसी पुलिस । जब समाज ही गलत लोगों से भरा पङा है । तो सब कुछ गलत ही मिलेगा । चाहे पुलिस हो । चाहे मास्टर । चाहे बाबा ।
राजीव राजा ! पुरानी हिन्दी फ़िल्मों में जैसे हीरोइन का बाप बङा आदर्शवादी और अपनी बेटी से अँधा प्रेम करने वाला दिखाया जाता था । ये मास्टर भी कुछ कुछ ऐसा ही है । इसी अँधे प्रेम के चक्कर में इसने अपने पैर पर कुल्हाङी मार ली ।
हमारी कालोनी में 1 डाक्टरों का परिवार है । उस परिवार में सब लोग डाक्टर ही हैं । ये मास्टर उनसे बहुत प्रभावित है । शायद इस वजह से इसने सोच लिया होगा कि अपनी बङी बेटी को डाक्टर ही बनाऊँगा ।
दूसरा कारण ये हो सकता है कि ये अपने परिवार और ससुराल वालों को ये दिखाना चाहता हो कि मैं भी किसी से कम नहीं । क्युँ कि इन दोनों पति और पत्नी को इनके घर वालों ने प्रेम विवाह करने पर घर से बेदखल कर दिया था । इसलिये इन दोनों में कुछ हीन भावना भी छुपी हुई है । इसलिये अपनी बङी बेटी जो पढने में महाना..यक है ( वो सब कामों में ना...यक है । सिर्फ़ आशिकी को छोङकर ) उसने बङी मुश्किल से 12वीं पास की थी ।
मेडिकल में उस लडकी को सारे हिन्दुस्तान में किसी भी मेडिकल कालेज में एडमिशन नहीं मिली । किसी चूतिये के कहने पर मास्टर ने अपनी बेटी की एडमिशन नेपाल के किसी नये बने मेडिकल कालेज में करवा दी । मुझे किसी ने बताया है कि वो कालेज बनाने वाले केरला तरफ़ के हैं । वो लोग कम नम्बर वाले बच्चों को एडमिशन दे देते हैं ( मोटा पैसा लेकर ) और हर साल पास कर देते हैं । तो इस मास्टर ने अपनी बेटी की एडमिशन वहाँ 22 लाख ( पूरे 5 साल की फ़ीस खाने पीने सहित ) में करवा दी । पैसा उसने अपने छोटे से घर पर कर्जा लेकर लिया । लेकिन समस्या ये है कि वहाँ का पढा हुआ बच्चा यहाँ भारत में नौकरी नहीं कर सकता ।
उसे वहाँ से 5 साल पढाई करके यहाँ आकर 1 टेस्ट पास करना होगा ( जो बहुत ही कठिन किया गया है ) तब जाकर उसे डाक्टरी करने का लायसेंस मिलेगा । मास्टर की बेटी वैसे ही महा..लायक है । कुछ साल पहले जब मास्टर की बेटी शायद सातवीं या आठवीं कक्षा में थी ।
उसने मुझसे पूछा कि - अंकल जी ! भोपाल का " प्राइम मिनिस्टर " कौन है ?
मैं उसका प्रश्न सु्नकर हैरान हुआ । लेकिन बोला कुछ नहीं ।
देख लिया राजा । उस लङकी की समझ । मास्टर ने भावना में बहकर गलती ही की है । अब ऐसे 2 नम्बर में पढे लिखे और पास हुये लोग क्या काम करेंगे ।
इसी महीने की बात है । मैं ई टी वी मध्य प्रदेश चैनल पर खबरें सुन रहा था । मध्य प्रदेश के किसी छोटे शहर में 1 आदमी घायल हालत में लाया गया । किसी लेडी डाक्टर ने उसे चेक किया । और कहा - ये मर गया है । इस लाश को पोस्टमार्टम के लिये भेज दो ।
जब उसके रिश्तेदार उसे पोस्टमार्टम के लिये लेकर गये । तो पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर ने कहा - तुम लोग पागल हो । जो इसे यहाँ ले आये । ये तो जिंदा है ।
तब फ़िर उस मरीज के रिश्तेदारो ने हँगामा किया । और पुलिस में उस महिला डाक्टर के खिलाफ़ रिपोर्ट लिखाई । अब मैं ऐसे पढे लिखों से पूछूँ - सालो ! तुम्हारे बाप ने पढ लिख कर कौन से झन्डे गाङ दिये । जो तुम लोग पढ लिख कर उन्हें उखाङ दोगे ।
खैर.. मास्टर पागल है जाने दो । सावन को आने दो । पता नहीं उसका क्या होगा ? उसको 1 बडी अजीब सी बीमारी है । उसको पेशाब के साथ थोङा बहुत खून भी आता है । इसलिये उसका इलाज चल रहा है । इन्दौर से । इसलिये पिछ्ले कुछ समय से वो बाबा रामदेव का भक्त बना हुआ है । उसे उम्मीद है कि बाबा रामदेव जी उसका पेशाब के साथ खून निकलना बन्द कर देंगे... हा हा हा ।
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सभी चित्र और लेख - श्री विनोद त्रिपाठी । भोपाल । मध्य प्रदेश । ई मेल से ।
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