शनिवार, मई 07, 2011

तेरा बाप भी इम्पोर्टिड है ।


अब मैं कहूँ कि न कहूँ । कसम सब्जी मन्डी की । मैंने सोचा रविवार आने वाला है । तो मैं भी कुछ लिखकर भेजूँ । ताकि ब्लागर्स का कुछ मनोरंजन हो जाये । तो लीजिये । आज " श्री विनोद त्रिपाठी जी " फ़िर 1 बार भारत के किसी छोटे शहर के कालेज का आखों देखा हाल ( लेकिन कल्पना के आधार पर ) बताने जा रहे हैं ।
आज से तकरीबन 20 साल पहले की बात है । किसी अच्छे से छोटे से शहर के कालेज की बात है । उस शहर में 1 ही कालेज था । वहाँ लडके और लडकियाँ एक साथ पढते थे ।
वहाँ उन दिनों 1 नवीन नाम का लडका भी BA में पढता था । वो किसी छोटे मोटे सेठ का लडका था । नवीन देखने में भी ठीकठाक था । लेकिन अपनी औकात से ज्यादा अपने आपको दिखाने की कोशिश करता था । उसकी बहुत सी लडकियो से भी दोस्ती थी । सिर्फ़ दोस्ती ! जो उस माहौल में आम बात थी ।
तभी उस कालेज में 1 नयी लडकी ने दाखिला लिया । जिसका नाम पूनम था । पूनम गाँव की रहने वाली थी । वो 12वीं तक अपने गाँव के सरकारी स्कूल में ही पढी थी । लेकिन BA करने के लिये उसे शहर आना पढा । इस शहर में उसकी बुआ रहती थी । और BA पूरी होने तक पूनम को अपनी बुआ के पास ही रहना था । सिर्फ़ छुट्टियों में ही गाँव आना जाना रखना था ।
जब पूनम का कालेज में पहला दिन था । तो उसे देखकर कालेज के लडकों की तो दिल की धडकन तेज हो गयी ।
पूनम का चेहरा देखने में बहुत सुन्दर था । उसकी आँखें बडी बडी थी । उसका चेहरा भी काफ़ी भरा हुआ था । होता भी क्युँ ना । पूनम गाँव की रहने वाली थी । जन्म से लेकर अब तक ( 18 साल की होने तक ) पूनम गाँव की साफ़ और शुद्ध वायु में पली बडी थी । घर के शुद्ध और असली दूध । मलाई । घी । मक्खन ने उसकी खूबसूरती और तन्दुरस्ती में 4 चाँद लगा दिये थे ।
उसका कद लम्बा और शरीर बहुत भरा हुआ था । उसका शरीर 18 साल की उमर में ही किसी युवा औरत की तरह खिल गया था । बेचारी शहर की ब्रेड और टमाटर सौस खाने वाली दुबली पतली लडकियाँ पूनम के सामने बौनी ही नजर आतीं ।
पूनम की खूबसूरती ने कालेज के लडकों का जीना हराम कर दिया था । लडके अक्सर सोचते कि पूनम इतने साधारण कपडों में भी इतनी जबरदस्त लगती है । तो अगर ये फ़िटिंग वाली जींस पहन ले । तो हम लोगों का तो कलेजा ही मुँह को आ जायेगा ।
उसे कई लडकों की तरफ़ से दोस्ती के प्रस्ताव आये । लेकिन उसने स्वीकार नही किये । वो तो बस अपनी नयी बनी कुछ सहेलियों के साथ अपनी पढाई के सिलेबस तक ही मतलब रखती थी । नवीन की नजर भी पूनम पर पङ चुकी थी । पूनम के कद । चेहरे । और पूर्ण विकसित उभारों के सामने उसे कालेज की बाकी लडकियाँ बेहद फ़ीकी लगने लगी ।
नवीन ने अपने स्टायल से पूनम को रिझाने की कोशिश की । लेकिन पूनम ने उसकी तरफ़ देखा तक नहीं । नवीन ने अलग अलग प्रकार से पूनम को रिझाने की कोशिश की । लेकिन उसकी दाल नही गली ।

फ़िर 1 दिन नवीन ने पूनम को उसकी किसी सहेली के साथ कालेज के बगीचे में बैठे चाय पीते हुए देख लिया ।
तब नवीन ने आसपास कम भीड देखते हुए पूनम के पास जाने का फ़ैसला किया । पूनम ने भी दूर से नवीन को आते हुए देख लिया था । नवीन जब बिलकुल पास आ गया । तो पूनम ने भी उसको गौर से देखा ।
तब नवीन हल्का सा मुस्कराते हुए पूनम से बोला - ये जो घडी मैंने पहनी है । ये इम्पोर्टिड है । ये जो मेरे जूते हैं । ये भी इम्पोर्टिड है । मेरे गोगल्स भी इम्पोर्टिड है । मेरा पर्स जिसमें मैं पैसे रखता हूँ । वो भी इम्पोर्टिड है । ये जो मैंने जैकेट पहनी है । ये भी इम्पोर्टिड है । जैकेट के नीचे जो शर्ट पहनी है । वो भी इम्पोर्टिड है ।
ये सब कहते कहते नवीन हल्का हल्का मुस्कराता रहा था । उस समय नवीन के भाव ऐसे थे । जैसे वो उस गाँव की रहने वाली लडकी का मजाक उडा रहा हो ।
तभी यकायक अपनी चुप्पी तोडते हुए पूनम ने कहा - लगता है । तेरा बाप भी इम्पोर्टिड है ।
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