शुक्रवार, जून 01, 2012

monument 6

माया संस्कृति के कैलेंडर का 1 महत्वपूर्ण भाग 21 DEC 2012  को समाप्त हो रहा है । और अधिसंख्य ज्योतिष और खगोल शास्त्री मानते हैं कि - इस दिन कुछ ना कुछ जरूर होगा । माया संस्कृति 300 ad से लेकर 900 ad तक मध्य अमेरिका में विकसित हुई थी । यह स्थान आज मैक्सिको नामक देश के रूप में जाना जाता है । माया संस्कृति के लोग प्रखर खगोल शास्त्री और ज्योतिष थे । उनके द्वारा विकसित लोंग काउंट कैलेंडर 3114 bc से शुरू होता है । इस कैलेंडर के हिसाब से 394 वर्षों के समय को 1 बकतुन के तौर पर जाना जाता है ।
माया संस्कृति के लोग 13 के आँकङे को बहुत महत्व देते थे । और 13वाँ बकतून 21 DEC 2012 के आसपास समाप्त होता है । इसके अलावा 1 और चीज ऐसी है । जो इस तारीख की ओर इशारा करती है । 2012 को लेकर जो अफरा तफरी अभी देखी जा रही है । उसके पीछे monument 6 का भी हाथ है ।
यह 1 शिला है । जो दक्षिणी मैक्सिको में पाई गई थी । 1960 में यहाँ हाईवे बनाने का कार्य चल रहा था । जब यह शिला मिली । लेकिन खुदाई और चोरी की वजह से इस शिला का बहुत थोड़ा सा भाग ही साबुत बचा है ।
द टेलिग्राफ अखबार के अनुसार इस शिला पर लिखा है - सन 2012 में कुछ होगा । और वह 1 माया भगवान बोलोन योक्ते से संबंधित होगा । बोलोन योक्ते युद्ध और निर्माण के भगवान हैं । लेकिन क्या होगा ? यह स्पष्ट नहीं है । क्योंकि शिला का आगे का हिस्सा टुट चुका है । परंतु मैक्सिको की नेशनल ऑटोनोमस विश्वविद्यालय के गुलेरमो बर्नल के अनुसार - जो संदेश मिट गया है । वह है - वो आकाश में से आएगा ।
तो क्या उस दिन आकाश में कोई ऊल्का गिरेगी । जो व्यापक पैमाने पर तबाही मचाएगी ?
अधिकतर खगोल शास्त्री इसे मात्र कपोल कल्पना मानते हैं । स्वयं बर्नल मानते हैं कि - माया कैलेंडर यहीं समाप्त नहीं होता । सन 2012 के काल के बाद का वर्णन भी इस कैलेंडर में है । और 4772 के वर्ष को भी पढा जा सकता है । माया संस्कृति के विशेषज्ञ डेविड स्टुअर्ट का कहना है कि – माया लोगों ने ऐसा कभी नहीं कहा कि - किसी अमुक दिन दुनिया का नाश हो जाएगा । उन्होनें सिर्फ निर्माण की बात कही है ।
महा प्रलय होने वाला है ।  21 DEC 2012 को जलजला आयेगा । पृथ्वी नष्ट हो जायेगी । कंसपिरेसी थियोरिस्टस ने 1 वेब पर यह भविष्यवाणी की है । उनका दावा है - वर्ष 2004 के 11 SEPT का हमला और बाकसिगडे सुनामी की भी सटीक भविष्यवाणी वेब बोट ने की थी । वेब बोट स्टॉक मार्केट की प्रवृतियों की भविष्यवाणी के लिये इस सॉफ्टवेयर को 1990 में विकसित किया गया था । वेब पेज को सूची बद्ध करने वाले इंजन को खोजने वाले स्पाइडर्स की तरह का यह सॉफ्टवेयर है । ये बोट प्रासंगिक वेब पेज में घुस कर की - वर्डस की पहचान करते हैं । इसके आसपास की विषय वस्तु का परीक्षण करते हैं । इसके पीछे मानना यह है कि इससे भीड़ की समझदारी के बारे में गहरी जानकारी मिलती है । क्योंकि यहाँ हजारों लोगों के विचार इकट्ठा रहते हैं । बाद में भविष्य की जानकारी देने के लिए इस तकनीकी का विवादास्पद प्रयोग शुरू किया गया । हालांकि कुछ इसे मूर्खता पूर्ण मानते हैं ।
बताया जाता है कि - वेब चैटर के माध्यम से पूर्व में ही आतंकी हमले की सूचना मिल गयी थी । इस परियोजना के 1 प्रस्तावक जार्ज उर का कहना है - JUNE 2001 के बाद उन्होंने 60 से 90 दिनों के अंदर विश्व को बदलने वाली घटना होने की भविष्यवाणी की थी । इस भविष्यवाणी की अस्पष्टता के बावजूद अनेक ने इसे सही माना था । इसके निर्माता अब दावा करते हैं - यह तकनीकी प्राकृतिक आपदाओं के बारे में भविष्यवाणी कर सकती है । 2004 के सूनामी और कैटरीना तूफ़ान के बारे में इसने पहले ही जानकारी दे दी थी । पोलर शिफ्ट से प्रलय इनकी सबसे ताजा भविष्यवाणी है - 21 DEC 2012 को संसार का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा । इसका कारण संभवत: ध्रुवीय बदलाव यानी पोलर शिफ्ट होगा । जब पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का ध्रुवीकरण विपरीत हो जायेगा ।
महा प्रलय के बारे में विश्वास करने वालों का मानना है कि - बोटस के अलावा प्राचीन माया कैलेंडर  द बुक आफ़ रिविलेशन और चीनी पुस्तक आइ शिंग में भी ऐसी भविष्यवाणी की गयी है । नॉस्त्रेदम से तुलना वहीं दूसरी ओर । इस सिद्धांत में अनेक कमियां बताते हुए इसको नहीं मानने वालों ने इसे कोरी कल्पना कहा है । उनका
मानना है कि इंटरनेट स्टॉक मार्केट और कुछ हद तक आतंकी हमलों के बारे में तो यह तकनीकी जानकारी दे सकता है । क्योंकि ये मानव जनित हैं । लेकिन प्राकृतिक आपदा के बारे में भविष्यवाणी करने में यह GOOGLE SEARCH से ज्यादा सक्षम नहीं है ।
2 - यह भविष्यवाणी झूठ की हद तक अस्पष्ट है । घटना होने के बाद कारणों को सूची बद्ध करने जैसी यह बात है । डेली कॉमन सेंस डाट काम पर BLOG लिखते हुए 1 व्यक्ति ने इसकी तुलना नास्त्रेदम के चतुष्पदी से की है । इसके पक्ष में वे 11 SEPT की भविष्यवाणी का उदाहरण देते हैं । 3 - भविष्यवाणियां अपने आप में भ्रांति पूर्ण होती हैं ।  2012 में प्रलय होने की बात के बारे में लोग जितना प्रकाशित करेंगे । उसी अनुपात में डाटा वेब उस तरफ़ इंगित करेग । NOV में फ़िल्म 2012 ध्रुवीय बदलाव का सिद्धांत ज्योमेट्रिकल रिवर्सल के सही सिद्धांत पर आधारित है । जो बताता है कि - पृथ्वी की धुरी कुछ हजार सालों के बाद खिसकती है ।  2012 में महा प्रलय होने की वेब बोट की भविष्यवाणी के संदर्भ में यह थ्योरी इसलिए लागू नहीं होती । क्योंकि पृथ्वी की धुरी का खिसकना प्रति 5000 के बाद होता है. इस बीच महा प्रलय की भविष्यवाणी पर आधारित फ़िल्म 2012 NOV में प्रदर्शित की जायेगी । जान क्यूसाक और डैनी ग्लोवर अभिनीत इस फ़िल्म के निर्देशक रोलां ऐमरिच हैं । जिन्होंने ए डे आफ्टर टुमॉरो को भी निर्देशित किया था ।
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BIG BANG

दूनिया का अब तक का सबसे बडा वैज्ञानिक परीक्षण फ्रांस और इटली की सीमा के पास किया जायेगा । इस परीक्षण से वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि अंतरिक्ष की उत्पत्ति सहित कई सारी अन्य बातों की खोज की जा सकेगी । कुछ लोगों द्वारा इस प्रयोग को पृथ्वी के विनाश का कारण बताया जा रहा है । लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं होगा ।
क्या है परीक्षण ? यूरोपियन आर्गेनाइजेशन फोर न्यूक्लियर रिसर्च यानी सर्न द्वारा किये जा रहे इस प्रयोग का नाम - लार्ज हेड्रोन कोलाइडर है । अरबों वर्ष पूर्व हुये BIG BANG और उसके बाद बने अंतरिक्ष की घटना को यह प्रयोग फिर से पुन:निर्मित करेगा । इस कोलाइडर को बनाने मे 20 वर्ष लगे हैं । इस पर 80 देशों के 7 000 वैज्ञानिक काम कर रहे हैं । और इस योजना पर कुल 17 852 करोड़ रूपयों का खर्च हो चुका है ।
कोलाइडर क्यों बनाया गया ? इस परियोजना पर काम कर रही टीम BIG BANG के तुरन्त बाद की स्थिति को प्रयोगशाला में फिर से जीवित करना चाहती है । इससे पदार्थ MATTER । विपरीत पदार्थ ANTI MATTER अंतरिक्ष और समय के बारे में और अधिक और सटीक जानकारी मिल सकेगी । अंतरिक्ष और उसकी उत्पत्ति को लेकर हमारी समझ अभी भी पुख्ता नहीं है । यह प्रयोग अब तक मानी जा रही व्याख्याओं को बदल सकता है । अथवा उसके समर्थन मे और अधिक आँकडे प्रदान कर सकता है ।
यह कैसे होगा - फ्रांस और स्विटजरलैंड की सीमा के पास जिनेवा से करीब 12 किमी दूर सर्न के मुख्यालय के समीप जमीन में 50-175 मीटर नीचे 27 किमी लम्बी सुरंग खोदी गई है । इस सुरंग मे प्रोटोन की बीम को छोडा जायेगा । सुरंग मे लगे सुपर कंडक्टिंग चुम्बक और एक्स्लरेटिंग ढांचे इस बीम को उर्जा देकर इसकी गति को और अधिक बढायेंगे । यह सुरंग गोलाकार खोदी गई है । और प्रोटोन की 2 बीम विपरीत दिशाओं से छोडी जायेगी । जो अंत में एक दूसरे से टकरायेगी । ये प्रोटोन लगभग प्रकाश की गति से यात्रा करेंगी । L.H.S का व्यास बडा रखा गया है । ताकि प्रोटोन तेजी से यात्रा कर सकें । इसके अलावा सुरंग मे बिछाई गई पाइप में हवा की मौजूदगी भी नहीं होगी । ताकि अणुओं की यात्रा मे व्यवधान न आए ।
2 बीम का इस्तेमाल ही क्यों - 2 बीमों को आपस मे टकरा जो नतीजे प्राप्त किये जा सकेंगे । वह 1 बीम को किसी स्थिर माध्यम से टकरा कर प्राप्त नहीं किये जा सकेंगे । 2 बीम एक दूसरे से विपरीत दिशाओं मे यात्रा कर 1 निश्चित स्थान पर टकरायेंगे । टकराते ही वे उर्जा का स्रोत प्रवाहित करेंगे । और सर्न को उम्मीद है कि - 1 छोटा ब्लैक हाल तैयार होगा ।
इससे कितने आँकडे मिलेंगे - वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस टक्कर के दौरान और उसके बाद काफी आँकडे 
प्राप्त होंगे । वैज्ञानिकों ने डाटा कॉपी करने के लिए 700 GB आँकडे स्टोर कर सकने लायक विशेष मेग्नेटिक टेप सेट अप की है । इसके अलावा दूनिया भर में 1 लाख कम्प्यूटरों का ग्रिड तैयार किया गया है । जो बैक अप का काम देगा ।
क्या इस प्रयोग से दूनिया तबाह हो जाएगी - नहीं । दोनों बीमों के आपस मे टकराने से जो प्रभाव पैदा होगा । वह हॉकिंग प्रभाव के चलते तुरन्त ही खत्म हो जायेगा । हॉकिंग रेडियेशन ब्लेक हॉल को अपना दल  mass छोडने देता है । ब्लेक हॉल जितना दल ग्रहण करेंगे । उससे अधिक खोकर तुरंत ही सिकुड कर समाप्त हो जाएँगे । करोडों वर्षो से पृथ्वी के उपर कोस्मिक किरणों की उर्जा टकराती रहती है । यह उर्जा इस प्रयोग मे इस्तेमाल हो रहे कोलाइडर द्वारा छोडी जाने वाली उर्जा से कहीं अधिक होती है । इससे यह सिद्ध होता है कि कोलाइडर द्वारा उत्सर्जित छोटा ब्लेक हॉल खतरनाक नहीं होगा । इसके अलावा कोलाइडर द्वारा किसी भी प्रकार के मेग्नेटिक मोनोपोल और अन्य खतरनाक अणुओ का उत्सर्जन करने की सम्भावना भी नहीं है ।

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21 दिसम्बर 2012

काफी समय से चर्चा में नीबीरू को planet X भी कहा जाता है । भारत में भी विशेषकर निजी टेलीविजन चैनल उसका खूब ढोल पीट रहे हैं । कहते हैं कि 21 DEC 2012 को महा प्रलय आने वाला है । दुनिया नष्ट होने वाली है । माया सभ्यता के लोग इसकी भविष्यवाणी कर गये हैं । उनका कैलेंडर इसी तारीख के साथ समाप्त हो जाता है ।
तथ्य यह है कि अमेरिकी महाद्वीप पर माया सभ्यता स्वयं भी कब की लुप्त हो चुकी है । उसके कैलेंडर के अंत को विश्व का अंत भला क्यों मान लिया जाए ? तथ्य यह भी है कि महा प्रलय और विश्व के अंत की भविष्यवाणियाँ पहले भी अनेक हो चुकी हैं । पृथ्वी 4 अरब वर्षों से अपनी जगह पर है । न प्रलय आया । और न विश्व नष्ट हुआ । यह सब समय समय पर सनसनी और आतंक फैलाकर पैसा बनाने वालों की कारस्तानी है ।
अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण NASA के वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक डेविड मॉरिसन कहते हैं - नीबीरू नाम के किसी ग्रह का कहीं कोई अस्तित्व ही नहीं है ।
वे कहते हैं - सबसे सीधी बात यह है कि नीबीरू का कोई अस्तित्व ही नहीं है । यह पूछने के बदले कि उसके बारे में इतना शोर पैदा कैसे हुआ । खगोलविदों से यह पूछें कि - वे क्या जानते हैं ? नीबीरू या  planet  X जैसी कोई चीज DEC 2012 में यदि सौर मंडल के भीतर आने वाली होती । तो दुनिया भर के पेशेवर और शौकिया खगोलविद दशकों से उस पर नजर रखे रहे होते । अब तक तो वह नंगी आँखों से भी दिखने लगा होता । लेकिन उसका कोई अता पता नहीं है ।
नीबीरू मूल रूप में अमेरिका के विस्कॉन्सिन में रहने वाली नैन्सी लीडर नाम की 1 महिला के दिमाग की उपज है । उसका कहना है कि उसके मस्तिष्क में 1 प्रतिरोपण है । जिसके जरिये वह जेटा रेटीकुली नाम की 1 ग्रह प्रणाली के लोगों के साथ संपर्क में रहती है । 1995 में जेटा रेटीकुली वालों ने उसे मनुष्य जाति को आगाह करने के लिए कहा - MAY 2003 में 1 विशाल पिंड सौर मंडल में से गुजरेगा । वह पृथ्वी के ध्रुवों को इस तरह बदल देगा कि मानव जाति का लगभग अंत हो जाएगा । नैन्सी लीडर ने 1995 में जेटा टॉक्स नाम से 1 इंटरनेट वेबसाइट बनाई । और अपने कपोल कल्पित प्रलय का प्रचार करने लगी ।
2003 में कुछ नहीं हुआ । कहा गया कि 2010 के आस पास जरूर प्रलय आएगा । अब 2010 भी डयोढ़ी पर खड़ा है । नीबीरू का कहीं नाम निशान नहीं है । इसलिए माया सभ्यता के कैलेंडर की आड़ लेकर 21 DEC 2012 को 
नया प्रलय दिवस घोषित कर दिया गया है । नीबीरू के आने के साथ यह भी जोड़ दिया गया है कि हमारा सूर्य आकाश गंगा के मध्य में सरक कर कई आकाशीय पिंडों की सीध में आ जाएगा । जो कि हमारे लिए महा अनिष्टकारी होगा ।
NASA के डेविड मॉरिसन इस डर को भी निराधार बताते हैं - पृथ्वी पर से देखने पर सूर्य हर साल DEC में आकाश गंगा के बीच की ओर जाता दिखता है । लेकिन इसका कोई मतलब नहीं है । यदि आपको DEC 2009 को लेकर कोई चिंता नहीं है, तो DEC 2012 को लेकर भी कोई चिंता नहीं करें ।
अंतरिक्ष पर चौतरफा नजर रखना अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण NASA का 1 प्रमुख काम है । उसके रिसर्च सेंटर की ओर से डेविड मॉरिस ने 1 वीडियो संदेश में प्रलय की सारी संभावनाओं का खंडन करते हुए कहा - कई आकाशीय पिंडों का 1 सीध में आना भी कोई अनहोनी बात नहीं है । यह जिज्ञासा का विषय हो सकता है । लेकिन किसी सच्ची वैज्ञानिक दिलचस्पी का विषय नहीं है ।
उनका कहना है - पृथ्वी के ध्रुवों को लेकर भी चिंता फैलाई जा रही है कि वे बदल जाएँगे । पर कोई नहीं कहता कि यह होगा कैसे ? यदि बात पृथ्वी की घूर्णन धुरी वाले ध्रुवों की है । तो ऐसा कोई परिवर्तन न तो कभी हुआ है । और न होगा । हाँ पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुव जरूर हर कुछ लाख वर्षों पर अपनी जगह बदल देते हैं । लेकिन उसके भी 2012 में होने के कोई प्रमाण नहीं हैं । और न उससे कोई नुकसान हो सकता है । कुछ लोग इसके साथ सौर सक्रियता और सौर ज्वालाओं के बढ़ जाने को जोड़ कर देखते हैं । सौर सक्रियता का चक्र हर 11 वर्ष पर अपने चरम पर होता है । कभी कभी उससे पृथ्वी पर कुछ नुकसान भी होता है । पर कोई सच्चा नुकसान नहीं होता । अगली अधिकतम सौर सक्रियता 2013 में आने वाली है । न कि 2012 में । और वह भी अब तक के औसत से कम उग्र होगी ।
यानी 2012 का सारा हौवा बकवास है । झूठ है । अपने 1 वक्तव्य में NASA ने कहा - इस समय 1 ही लघु ग्रह है - एरिस । जो सौर मंडल की बाहरी सीमा के पास की कुइपियर बेल्ट में पड़ता है । और आज से 147 साल बाद 2257 में पृथ्वी के कुछ निकट आएगा । तब भी उससे 6 अरब 40 करोड़ किमी दूर से निकल जाएगा । कोई प्रलय नहीं आ रहा है । 2012 जैसी चाहे जितनी फिल्में बनें ।
दावा करने वालों की कमी नहीं है कि माया सभ्यता के कैलेण्डर के हिसाब से 2012 में दुनिया के अंत होने वाला है । लेकिन ऐसी भविष्यवाणी करने वालों के लिए बुरी ख़बर है । विशेषज्ञों का कहना है कि माया सभ्यता के लोगों के अंत की घोषणा नहीं की थी । जिस माया शिला लेख पर 2012 का ज़िक्र है । उस शिला लेख के 1 नए अध्ययन से पता चलता है कि माया लोगों ने 2012 में पृथ्वी के अंत की नहीं । अपने कैलेंडर के हिसाब से 1 युग के अंत की बात की थी ।
दक्षिण में रहने वाले माया समुदाय ने 21 DEC 2012 के लिए उल्टी गिनती शुरू कर दी है । उस दिन माया सभ्यता के प्राचीन पंचांग के अनुसार 5वी सहस्राब्दी समाप्त होगी । कुछ लोगों ने माया पंचांग के युगांत को दुनिया के समाप्त होने की भविष्यवाणी मानते हैं । लेकिन जानकारों का कहना है कि ये 1 युग का अंत भर है । दुनिया का नहीं । माया समुदाय के पुजारियों ने उल्टी गिनती के शुरू करते हुए विशेष धार्मिक कर्मकांड किए हैं ।
मैक्सिको के दक्षिण में रहने वाले माया समुदाय ने 21 DEC 2012 के लिए उल्टी गिनती शुरू कर दी है ।
ऐसा लगता है कि 2012 दुनिया का आखिरी साल नहीं होगा । जिस माया सभ्यता के कैलेंडर की दुहाई देकर इस वर्ष दुनिया का अंत होने की भविष्यवाणियां की जा रही थीं । उसी के बनाए 1 कैलेंडर ने इन आशंकाओं पर विराम लगा दिया है । ग्वाटेमाला के जंगलों में मिले माया कैलेंडर के अब तक के सबसे पुराने संस्करण से साफ है कि अगले कई अरब वर्षो तक पृथ्वी बनी रहेगी ।
मध्य अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता की भविष्यवाणी के अनुसार अब तक माना जाता था कि उनके प्राचीन शिला लेखों में 2012 में दुनिया के अंत की भविष्यवाणी की गई है । जिसे अब वैज्ञानिकों ने उस प्राचीन लिपि को गलत पढ़ना माना है । उनका कहना है कि माया सभ्यता के निर्माण और युद्घ के देवता की उस समय में धरती पर वापसी की बात कही गई है । इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है ।
ब्रूकलिन यू एस । माया सभ्यता की भविष्यवाणियां हों । या सनातन धर्म की मान्यताएं । या फिर हॉलीवुड फिल्में - डे आफ्टर टुमौरो । और - 2012 की सिनेमेटोग्राफी । इन सबमें 1 बात समान है । और वह है - 1 दिन दुनिया के अंत की परिकल्पना । जाहिर है कि उस अंत की कल्पना अकल्पनीय है । लेकिन 1 कलाकार ने अंत के बाद की उस दुनिया की कल्पना को अपने जुदा अंदाज में पेश किया है ।
ग्वाटेमाला में काम कर रहे पुरातत्वविदों का कहना है कि उन्होंने प्राचीन माया सभ्यता का अब तक का सबसे पुराना कैलेंडर खोज निकाला है । जिसमें इस बात का कोई संकेत नहीं मिलता कि दुनिया का अंत करीब है । पुरातत्वविदों का कहना है कि - ये कैलेंडर 9वी सदी का है । जिसे अमरीकी शोधकर्ताओं ने सल्टन के भग्नावशेषों से ढूढा है ।
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21 DEC 2012 महा प्रलय

21 DEC 2012 को पूरी दुनिया काल के गाल में समा जाएगी ?  भविष्यवाणियों अनुमानों और दावों का दौर जारी है । इससे पहले  21 MAY 2011 को प्रलय की भविष्यवाणियां की गई थीं । लेकिन सब कुछ पहले की तरह ही चल रहा है । इन अनुमानों के माध्यम से लोगों में कहीं अनावश्यक भय तो पैदा नहीं किया जा रहा है ?
अंधविश्वास और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित यह भविष्य आकलन कितने सही हैं । यह तो आने वाला समय ही बतायेगा । लेकिन हम रूबरू करा रहे हैं । आपको प्रलय से जुड़ी उन मान्यताओं से । जिनका मानना है कि - इस वर्ष के अंत में दुनिया नष्ट हो जाएगी ।
21 DEC 2012 को प्रलय आने वाली है । माया सभ्यता का कैलेंडर 21 DEC 2012 को समाप्त हो रहा है । इसलिए उस सभ्यता के लोग मानते थे - यह दिन प्रलय का दिन है । नास्त्रेदमस के सूत्रों का विश्लेषण करने वाले भी दावा करते हैं - नास्त्रेदमस ने भी इस दिन को प्रलय का दिन माना है । उनका मानना है - आकाश से गिरेगी 1 विशालकाय उल्का और धरती नष्ट हो जायेगी ।
माया सभ्यता के अंधविश्वास पर हॉलीवुड में 1 फिल्म भी बन चुकी है - प्रलय 2012 । इस फिल्म में दिखाया गया है - 21 DEC 2012 को 1 ग्रह आयेगा । जो पृथ्वी से टकरा्येगा । और प्रलय हो जायेगी । उस ग्रह का नाम है - नीबीरू । नीबीरू सब कुछ तहस नहस कर देगा । और  सब मारे जायेंगे । नीबीरू काफी समय से चर्चा में है । उसे planet X  भी कहा जाता है । हालांकि NASA ऐसे किसी ग्रह का अस्तित्व नहीं मानता ।
नीबीरू नैन्सी लीडर नाम की 1 महिला के दिमाग की उपज है । जो अमेरिका के विस्कांसिन की रहने वाली है । वह कहती है  - उसके मस्तिष्क में 1 प्रतिरोपण है । जिसके जरिए वह जेटा रेटीकुली नामक 1 ग्रह के लोगों के संपर्क में रहती है ।
फ्रांस के भविष्य वक्ता नास्त्रेदमस Nostradamus  1503-1566 ने 16वीं सदी में अपनी भविष्यवाणियों की 1 किताब लिखी - सेंचुरी century ।  इसमें लगभग 100 भविष्यवाणियां सूत्रों के रूप में हैं । इस किताब से पूरे फ्रांस में तहलका मच गया था । बाद में इसे दुनिया की अधिकतर भाषाओं में अनुवाद किया किया ।
उनकी भविष्यवाणियों के जानकार अब तक घटी घटनाओं के बारे में नास्त्रेदमस की सूत्र बद्ध घटनाओं को निकाल कर उसके सत्य होने की घोषणा करते हैं । इस तरह दावा किया जाता है कि उनके द्वारा की गईं कई भविष्यवाणियां सच साबित हुई है । नास्त्रेदमस के आलोचकों का मानना है कि उनके सूत्रों की व्याख्यायें कुछ भी हो सकती है । आलोचकों का कहना है कि व्याख्यायें महज गलत अनुवाद या गलतफहमी का परिणाम हैं ।
माया सभ्यता और धार्मिक धारणा की तरह नास्त्रेदमस ने भी 2012 में धरती के खत्म होने की भविष्यवाणी की है । नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी के विश्लेषकों के अनुसार नास्त्रेदमस ने प्रलय के बारे में बहुत स्पष्ट लिखा है  - मैं देख रहा हूं कि आग का 1 गोला पृथ्वी की ओर बढ़ रहा है । जो धरती से मानव की विलुप्ति का कारण बन सकता है ।
ऐसा कब होगा ? इसके बारे में स्पष्ट नहीं । लेकिन ज्यादातर जानकार 2012 को ऐसा होने की घोषणा करते हैं । ऐसा तब होगा । जबकि तृतीय विश्व युद्ध 3rd world war चल रहा होगा । तब आकाश से 1 उल्का पिंड हिंद महा 
सागर में गिरेगा । और समुद्र का सारा पानी धरती पर फैल जायेगा । जिसके कारण धरती के अधिकांश राष्ट्र डूब जाएंगे । या इस भयानक टक्कर के कारण धरती अपनी धूरी से ही हट जाये । और अंधकार में समा जा्ये ।
नास्त्रेदमस तृ‍‍तीय विश्व युद्ध 3rd world war के बारे में भी भविष्यवाणी करते हैं  - 1 पनडुब्बी में तमाम हथियार और दस्तावेज लेकर वह व्यक्ति इटली के तट पर पहुंचेगा । और युद्ध शुरू करेगा । उसका काफिला बहुत दूर से इतालवी तट तक आयेगा ।
विज्ञान भी मानता है । ज्यादातर वैज्ञानिक मानते हैं कि पृथ्वी पर प्रलय अर्थात जीवन का विनाश तो सिर्फ - सूर्य । उल्का पिंड । या सुपर वॉल्कैनो ( महा ज्वालामुखी ) ही कर सकते हैं । कुछ वैज्ञानिक कहते हैं  - सुपर वॉल्कैनो पृथ्वी से संपूर्ण जीवन का विनाश करने में सक्षम नहीं हैं । क्योंकि कितना भी बड़ा ज्वालामुखी होगा । वह अधिकतम 70 % पृथ्वी को ही नुकसान पहुंचा सकता है ।
अब जहाँ तक उल्का पिंड का सवाल है । तो अभी तक खगोल शास्त्रियों को पृथ्वी के घूर्णन कक्षा में ऐसा कोई उल्का पिंड नहीं दिखा । जो पृथ्वी को प्रलय के मुहाने पर ला दे । फिर भी इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि - यदि कोई भयानक विशालकाय उल्का पिंड पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के चंगुल में फंस जाये । तो तबाही निश्चित है ।
हिंदू धर्म में बृह्मा को जन्म ( सृष्टि कर्ता ) देने वाला । विष्णु को पालन कर्ता । और शिव को मृत्यु ( संहार कर्ता )  देने वाला कहा  है । जबकि सूर्य में यह तीनों ही गुण है । सूर्य को वेदों में जगत की आत्मा कहा  है । सूर्य से जहाँ जीवन की उत्पत्ति मानी गई है । वहीं सूर्य के बगैर जीवन नहीं चल सकता । और इसी सूर्य की वजह से धरती पर तबाही भी होती है । विज्ञान मानता है ‍ - प्रत्येक 11 वर्ष में सूर्य पर हजारों लाखों परमाणुओं जितना विस्फोट होता है । वेद भी कहते हैं । इसीलिए प्रत्येक 11 वर्ष बाद सिंहस्थ का आयोजन होता है ।
वैज्ञानिक सूर्य पर लगातार शोध करते आये हैं । उनका कहना है  - सूर्य पर हो रही गतिविधियां चिंता का विषय है । आशंका है  - कहीं भयानक सौर तूफान धरती पर किसी भी तरह की तबाही के लिए जिम्मेदार हो सकता है । यह भी कि सूर्य जब अपनी चरम अवस्था में पहुँचेगा । तभी वह पृथ्वी पर प्रलय ला सकने की स्थिति में होगा । दरअसल सूर्य 1 तारा है । हर तारे की मौत होना तय है । जब सूर्य ही नहीं रहेगा । तो धरती का अस्तित्व कैसे बरकरार रहेगा ?
हालांकि सूर्य को इस अवस्था में आने में अभी अरबों वर्ष लगेंगे । आशंका जताई जाती है  - 2012 में सूर्य अपने चरम पर होगा । और पृथ्वी झुलस जाएगी । इस दौरान सूर्य अपने चरम पर होगा । लेकिन यह हर 11 वर्ष में होने वाली सतत प्रक्रिया है । जिसे इलेवन इयर साइकल के नाम से जाना जाता है ।
यह कोई नहीं जानता  - पृथ्वी पर जीवन का अंत कैसे होगा ? लेकिन वैज्ञानिकों का दावा है । इससे पहले कि 5 अरब वर्ष में सूर्य पृथ्वी को जला डाले । किसी ग्रह जैसे बुध या मंगल ग्रह के साथ टक्कर से हमारा ग्रह नष्ट हो सकता है । हालांकि बहुत से विचारक मानते हैं  - धर्म और विज्ञान की बातें कभी स्थाई महत्व की नहीं होती है । यह सब अनुमान और कल्पनायें हैं
धधकते सूर्य की सौर आंधी से निकली भू चुंबकीय ज्वाला की लपटें पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से टकराने वाली हैं । जिससे हवाई यातायात । बिजली ग्रिड । उपग्रह सेवाएं प्रभावित होने की आशंका है ।
अमेरिकी अंतरिक्ष मौसम अनुमान केंद्र ने यह जानकारी देते हुये बताया - रविवार को सूर्य से 2000 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से ज्वाला की लपटें निकली थीं । जो आमतौर पर सूर्य से निकलने वाली लपटों की रफ्तार से 5 गुना ज्यादा है ।
सेंटर के टेरी ओंसागेर ने कोलाराडो स्थित बोल्डर से कहा - जब ये कण पृथ्वी से टकराते हैं । तो वे हमारे सुरक्षा कवच को भेद कर चुंबकीय क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं । और इस भीषण ऊर्जा से पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में 
जबरदस्त उतार चढ़ाव होता है । और सब कुछ गड्डमड्ड हो जाता है ।
यह ऊर्जा एयर लाइनों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली उच्च आवृत्ति वाली रेडियो संचार प्रणाली को बाधित कर देती है । एयर लाइनें - उत्तरी अमेरिका । योरोप । और एशिया के बीच उत्तरी ध्रुव के पास नौ वहन के लिए इस संचार प्रणाली का उपयोग करती हैं । इसलिये विमानों के कुछ मार्गों में बदलाव करना पड़ेगा । सूर्य की इन लपटों से बिजली ग्रिड और उपग्रह सेवाएं बाधित होने की आशंका है ।
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर रह रहे वैज्ञानिकों को सौर विकिरण के दुष्प्रभाव से अपने बचाव के लिए यान के विशेष हिस्से में जाने की सलाह दी गई है । केंद्र ने बताया कि इस सौर तूफान की तीवृता औसत से तेज हो सकती है ।
मध्य अमेरिकी देशों की महिमा मंडित माया सभ्यता लगभग 3000 वर्षों तक चली थी । स्पेनी उपनिवेश वादियों के हमलों के साथ 16वीं सदी में उसका पतन हो गया ।  21 DEC 2012 को उसके कैलेंडर के 400 वर्षों से चल रहे 13वें काल चक्र का भी अंत हो जाएगा । लेकिन हर गाहे बगाहे दुनिया के अंत की भविष्यवाणी करने वाले प्रलय वादी पोंगा पंथी और मतलब परस्त मीडिया मास्टर ढिंढोरा पीटने में जुटे हुए हैं  - माया कैलेंडर के साथ ही दुनिया का भी अंत हो जाएगा । दुनिया का अंत तो इस बार भी नहीं होगा । हाँ इन प्रलय वादियों को अगले प्रलय के नए बहकावे की 1 नई तारीख जरूर खोजनी होगी ।
FEB के मध्य में इस बार जर्मनी सहित पूरे यूरोप में अपूर्व ठंड से हाहाकार मचा हुआ था । सैकड़ों लोग मर गये । लग रहा था । यदि सचमुच कोई प्रलय होगी । तो इस बार वह जरूर हिम युग के रूप में होगी । ठीक इसी समय 10 से 12 FEB तक जर्मनी की पुरानी राजधानी बॉन के विश्वविद्यालय में दुनिया भर के ऐसे विद्वानों और वैज्ञानिकों का जमघट लगा था । जो मध्य अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता के शोधी हैं ।
21 DEC 2012 को दुनिया के कथित अंत की माया भविष्यवाणी ही उनके बीच चर्चा परिचर्चा का मुख्य विषय था । उन्होंने माया सभ्यता पर प्रकाश डालने वाले - पुरातात्विक अवशेषों । शिला लेखों । चित्रों ।  पांडुलिपियों को छान मारा है । और जानते हैं  - उनमें दुनिया के कथित अंत के बारे में क्या कहा गया है ?
माया काल गणना चलती रहेगी - माया लोगों के लिए 21 DEC 2012 के साथ ही काल गणना का अंत नहीं हो जाता । बॉन विश्वविद्यालय में प्राचीन अमेरिकी सभ्यताओं के प्रोफेसर डॉ. निकोलाई ग्रूबे ने कहा - माया कैलेंडर इसके बाद भी चलता रहेगा ।
माया कैलेंडर को लेकर मचे कोहराम की तुलना उन्होंने 1 jan 2000 के दिन शताब्दी और सहस्त्राब्दि के परिवर्तन को लेकर फैली आशंकाओं और भ्रांतियो के साथ की - वह मात्र 1 काल चक्र का अंत था । जिसके साथ 1 नई सहस्त्राब्दि शुरू हुई । ठीक इसी तरह  21 DEC 2012 के दिन माया सभ्यता का 400 वर्षों वाला चालू काल चक्र पूरा होगा । और साथ ही 1 नया काल चक्र शुरू होगा ।
प्रो. ग्रूबे का कहना था - अधकचरे जानकारों और निहित स्वार्थी लोगों ने माया कैलेंडर के बारे में जानबूझ कर ढेर सारे भृम फैला रखे हैं । कुछ लोग तो खुद ही पैगंबर या भविष्य वक्ता बन गये हैं । और कुछ दूसरे गूढ़ ज्ञान के ज्ञाता । सभी अपनी अपनी डफली अपना अपना राग अलाप रहे हैं । आम आदमी को उल्लू बना कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं । सनसनी भक्त मीडिया और इंटरनेट के रसिया बची खुची कसर पूरी कर रहे हैं ।
900 से 300 ईसा पूर्व के बीच अपने स्वर्ण युग वाली लगभग 3000 वर्षों तक चली माया सभ्यता के लोग आज के मेक्सिको के दक्षिण पूर्वी यूकातान प्रायद्वीप । बेलीज । गुआटेमाला और होंडूरास में रहा करते थे । उनकी अपनी भाषा और अपनी चित्र लिपि थी । 1511 में स्पेनी उपनिवेश वादियों के यूकातान पहुंचने के साथ माया सभ्यता का पतन शुरू हुआ ।
कुछ तो महामारियों । सूखे और अकाल के कारण । पर मुख्य रूप से स्पेनी आक्रमणकारियों और ईसाई धर्म प्रचारकों के कारण माया वंशियों की संख्या तेजी से घटने लगी । स्पेनियों ने उनके देवालयों । पुस्तकालयों और सांस्कृतिक स्मारकों की इस तरह होली जलाई । या उन्हें तहस नहस कर दिया कि यथासंभव कुछ भी न बचे । तब भी माया जाति पूरी तरह खत्म नहीं हुयी । मध्य अमेरिका के इन देशों में अब भी अनुमानतः 70 लाख माया वंशी इंडियन रहते हैं ।
 जर्मनी में हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के माया शोधी लार्स फ्रुइजोर्गे का कहना है - विदेशियों ने खींचा माया वंशियों का ध्यान । वे बेखबर थे । अपने पूर्वजों के कैलेंडर को लेकर । जिसके अनुसार इस समय सन 5125 चल रहा है । कोई हो हल्ला मच सकता है । उनका ध्यान इस तरफ उन विदेशी पर्यटकों की बढ़ती हुई भीड़ के कारण गया । जो अचानक माया कैलेंडर में भारी रुचि लेने लगे । अब वे भी बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं । सभा सम्मेलनों और कर्म कांडी अनुष्ठानों के द्वारा अपनी तरफ दुनिया का ध्यान खींचने का मौका नहीं चूकना चाहते ।
बॉन विश्वविद्यालय के मध्य अमेरिका अध्ययन संस्थान द्वारा आयोजित सम्मेलन और प्रदर्शनी को भी 1 ऐसा ही आयोजन कहा जा सकता है । माया कैलेंडर के बारे में फैलाई जा रही अफवाहों के बहाने से इस गौरवशाली सभ्यता की तरफ लोगों का ध्यान खींचने और उसके पठन पाठन के प्रति रुचि जगाने का वह 1 विज्ञान सम्मत प्रयास था । संस्थान के प्रमुख प्रो. निकोलाई ग्रूबे ने अपने व्याख्यान में कहा - माया लोगों की सभ्यता और संस्कृति इतनी बड़ी व रोचक है कि उसे 2012 की 21 DEC 2012 वाली कमबख्त तारीख तक ही सीमित नहीं किया जा सकता ।
माया सभ्यता के जानकारों का कहना है - इस समय केवल 2 ऐसे ऐतिहासिक अभिलेख उपलब्ध हैं । जिनके आधार पर कहा जा सकता है । माया भविष्यवाणी में ऐसा सचमुच कहा गया है । या नहीं कि 21 DEC 2012  के दिन दुनिया का अंत हो जाएगा । 1 तो है लगभग 1300 वर्ष पुराना - 1 शिलालेख । और दूसरा है लगभग 800 वर्ष पुरानी - 1 हस्त लिखित पांडुलिपि ।
माया सभ्यता के जर्मन विशेषज्ञों में से 1 हैं - स्वेन ग्रोनेमायर । मेक्सिको की खाड़ी के पास तोर्तुगुएरो नामक स्थान पर हुए उत्खनन में कोई 4 साल पहले 1 शिला लेख मिला था । ग्रोनेमायर ने इस शिला लेख का बारीकी से अध्ययन किया । और उसकी चित्र लिपि को स्वयं पढ़ा । उनका कहना है - शिला लेख पर लिखा संदेश करीब 1300 पहले उकेरा गया था । यह शिला खंड ( पत्थर ) कुछ इस तरह से टूट गया है कि लेख का अंतिम हिस्सा ठीक से पढ़ा नहीं जा सकता ।
1300 वर्ष पुराने इस शिला लेख में वर्णन है - 398 वर्षों तक तक चलने वाले 13 वें माया काल खंड के अंत के साथ ( जो हमारे वर्तमान ईसवी सन के अनुसार 21 DEC 2012 को पड़ना चाहिये ) माया देवता बोलोन योक्ते की वापसी होगी । ग्रोनेमायर कहते हैं - शिला लेख से ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता कि इस दिन के आने या बोलोन योक्ते की वापसी के साथ प्रलय आयेगा । या दुनिया का अंत हो जा्येगा ।
ग्रोनेमायर कहते हैं - माया कैलेंडर 3114 ईसवी पूर्व शुरू होता है । इस समय उसका बाकतून कहलाने वाला गणना चक्र चल रहा है ( हर 18 72 000 दिन । यानी लगभग 5128 वर्ष बाद बाकतून काल खंड पुनः आता है )
वर्तमान 13वें बाकतून चक्र में माया देवता बोलोन योक्ते की वापसी तक के जिस समय का उल्लेख है । उसका अवतरण माया कैलेंडर शुरू होने के ठीक 5125 वर्ष बाद होना चाहिए । इसे आधार बना कर गणना करने पर 21 DEC 2012 वह दिन निकलता है । जब इस माया देवता को वापस आना चाहिये । उसके बाद 1 नये गणन चक्र वाला 1 नया कालखंड शुरू होना चाहिए ।
माया सभ्यता के कैलेंडर के खौफ । धर्म ग्रन्थों में उल्लेखित कयामत का दिन । वैज्ञानिकों द्वारा प्राकृतिक आपदा । और उल्का पिंड से धरती के नष्ट होने की भविष्यवाणी के बीच 7 अरब की जंगली जनसंख्या ने पशु । पक्षी । जलचर जंतु और प्राकृतिक संपदाओं को नष्ट करने की कोई कसर नहीं छोड़ी है । स्वाभाविक रूप से मानव अब अपने मरने के इंतजार के डर तले जी रहा है ।
4 अरब वर्ष से ज्यादा पुरानी है धरती । धरती पर जीवन लगभग 1 अरब वर्ष पूर्व शुरू हुआ ।
80 लाख वर्ष पूर्व मानव अस्तित्व में आया । 3 से 4 बार आ चुका है - प्रलय । लेकिन जीवन बचा रहा ।
सभी धर्मों में प्रलय को लेकर अलग अलग मान्यता है । धरती स्वयं को संतुलित करने के लिए प्रलय का सृजन करती है ।
वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार 80 लाख वर्ष पूर्व मानव अस्तित्व में आया । उसमें भी आज के आधुनिक मानव का निर्माण लगभग 2 लाख वर्ष पूर्व हुआ । 75 000 वर्ष पहले सुमात्रा नामक स्थान पर 1 भयानक ज्वालामुखी फ़टा । जिसके कारण धरती पर से जीवन लगभग समाप्त हो गया । चारों ओर आग और धुयें के बवंडर से धरती पर 6 वर्ष तक अधेरा छाया रहा । वैज्ञानिकों के अनुसार अफ्रीका के जंगलों में मुठ्ठी भर मानवों का 1 समूह स्वयं को सुरक्षित रख पाया । जिसके कारण आज धरती पर मानव का अस्तित्व है ।
कुछ वैज्ञानिक इसे नहीं मानते । वे मानते हैं - एशिया से अफ्रीका पहुंचे थे - प्रारंभिक मानव । दुनिया भर के आदिवासियों की संस्कृति । सभ्यता । और अनुवांशिकी गुणों में इसीलिये समानता है ।
प्रलय संबंधी अधूरे ज्ञान और अंधविश्वास के चलते हॉलीवुड में कई फिल्में बन चुकी है । वहीं लोगों में भय । कौतुहल । और मनमानी चर्चाओं का दौर जारी है । सवाल उठता है - क्या कारण हैं कि सारी दुनिया को प्रलय से पहले प्रलय की चिंता खाये जा रही हैं ? क्या कारण है । जो लोगों को भयभीत किया जा रहा है । और क्या सचमुच ही ऐसा कुछ होने वाला है ? धरती पर से जीवन का नष्ट होना । और धरती नष्ट होना दोनों अलग अलग विचार है ।
ये वे कारण हैं । जिनसे दुनिया डर रही है ।
1 - हर धर्म और सभ्यता ने मानव को ईश्वर और प्रलय से डराया है । धर्म ग्रंथों में प्रलय का भयानक चित्र मनुष्य जाति को ईश्वर से जोड़े रखता है । दूसरी ओर माया सभ्यता के कैलेंडर में शुक्रवार 21 DEC 2012 में दुनिया के अंत की बात कही गई है । कैलेंडर में पृथ्वी की उमृ 5126 वर्ष आंकी गई है ।
माया सभ्यता जानकारों का कहना है - 26 000 साल में इस दिन पहली बार सूर्य अपनी आकाश गंगा मिल्की वे के केंद्र की सीध में आ जा्येगा । इसकी वजह से पृथ्वी बेहद ठंडी हो जा्येगी । इससे सूरज की किरणें पृथ्वी पर पहुंचना बंद हो जा्येगी । और हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा छा जायेगा ।
माया सभ्यता के अंधविश्वास को जर्मनी के 1 वैज्ञानिक रोसी ओडोनील और विली नेल्सन ने और हवा दी है । उन्होंने 21 DEC 2012 को planet X ग्रह की पृथ्वी से टक्कर की बात कहकर पृथ्वी के विनाश की भविष्यवाणी की है । करीब 250 से 900 ईसा पूर्व माया नामक 1 प्राचीन सभ्यता स्थापित थी । ग्वाटेमाला । मैक्सिको । होंडुरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में इस सभ्यता के अवशेष खोज कर्ताओं को मिले हैं ।
ईसाई धर्म के उपदेशक हैराल्ड कैपिंग ने बाइबल के सूत्रों के आधार पर दावा किया - 21 MAY 2011 SAT को शाम 6 बजे दुनिया का अंत होना तय है । प्रलय की शुरुआत में तत्काल ही दुनिया की 75% आबादी प्रलय के गर्त में समा जाएगी । सिर्फ 20 करोड़ लोग ही बचेंगे । 21 MAY से 21 OCT 2011 के बीच प्राकृतिक आपदाओं और युद्धों की झड़ी लग जाएगी ।
नास्त्रेदमस विश्लेषकों के अनुसार नास्त्रेदमस ने प्रलय के बारे में बहुत स्पष्ट लिखा है - मैं देख रहा हूँ कि आग का 1 गोला पृथ्वी की ओर बढ़ रहा है । जो धरती से मानव की विलुप्ति का कारण बन सकता है ।
प्रलय की धार्मिक मान्यता में कितनी सच्चाई है । या यह सिर्फ कल्पना मात्र है । जिसके माध्यम से लोगों को भयभीत करते हुए धर्म और ईश्वर में पुन: आस्था को जगाया जाता है । धार्मिक पुस्तकें किसने लिखी ? कलैंडर किसने बनाया ? खुद मानव ही है इनका रचनाकार । लेकिन इन भविष्यवाणियों का कोई ठोस आधार न होकर पूर्ववर्ती धारणायें और ईश्वर का डर ही अधिक है । भय । लालच । और युद्ध के दम पर ही कायम है - धर्म की कौम ।
2 - जहाँ तक वैज्ञानिक दृष्टिकोण का सवाल है । वह भी विरोधाभासी है । कई बड़े वैज्ञानिकों को आशंका है - X नाम का ग्रह धरती के काफी पास से गुजरेगा । और अगर इस दौरान इसकी पृथ्वी से टक्कर हो गई । तो पृथ्वी को कोई नहीं बचा सकता । कुछ वैज्ञानिक यह आशंका जताते हैं -  2012 के आसपास ही या 2012 में ही अंतरिक्ष से चंद्रमा के आकार के किसी उल्का पिंड के धरती से टकराने की संभावना है । यदि ऐसा होता हैं । तो इसका असर आधी दुनिया पर होगा । हालांकि कुछ वैज्ञानिक ऐसी किसी भी आशंका से इंकार करते हैं ।
ध्यान रहे । इससे पहले भी कई बार उल्का पिंड धरती पर गिरे हैं । लेकिन वे धरती का कुछ नहीं बिगाड़ पाये । जावा । सुमात्रा । और मेक्सिको के आसपास कई उल्का पिंडों के गिरने से तबाही हुई ।
3 - ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते लगातार दुनिया के ग्लैशियर पिघल रहे हैं । और जलवायु परिवर्तन हो रहा है । कहीं सुनामी । कहीं भूकंप । कहीं तूफान का कहर जारी है । हाल ही में जापान में आई सुनामी ने दुनिया को प्रलय की तस्वीर दिखा दी । इतिहास दर्शाता है कि ऐसी कई सुनामियां । भूकम्प । अति जल वृष्टि और ज्वालामुखियों ने कई बार दुनिया में प्रलय का चित्र खींच दिया था ।
सिकुड़ता पशु पक्षी और जलचर जगत बदलती जलवायु आवसीय हास और मानवीय हस्तक्षेप के चलते पक्षियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है । और ऐसा अनुमान है कि आने वाले 100 साल में पक्षियों की 1183 प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं । 128 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं ।
हजारों लाखों की तादाद में पशु पक्षी और मछलियों के किसी अनजान बीमारी से मरने की खबर से दुनिया सकते में हैं । समुद्री तट पर लाखों मरी हुई मछलियों की खबर आये दिन आती रहती है । हाल ही में अमेरिका के 1 छोटे से गांव बीबे में नये साल की सुबह लोगों को सड़कों पर घरों के आंगन में और पूरे गांव में 5000 ब्लैक बर्डस मरे हुए मिले ।
आपको बता दें कि ये कारण हर काल में रहे हैं । और रहेंगे । 1 और 4 कारण छोड़ दें । तो बाकी बचे 2 कारणों के कारण धरती पर से कई बार जीवन नष्ट हो चुका है । लेकिन धरती कभी नष्ट नहीं हुई । स्टीफन हॉकिंग मानते हैं - धरती नष्ट हो जाएगी । तो कहना होगा कि विज्ञान भी अंधविश्वास का शिकार हो चला है ।
आखिर प्रलय क्यों आती है ? धरती पर पाप बढ़ने के कारण क्या ईश्वर प्रलय लाता है ? या कि प्रलय के और भी कई कारण हैं ? जो जानकार हैं । वे कहेगें - मानव ही है प्रलय का सृजनकार । क्योंकि उसने धरती पर जो जुल्म किया है । धरती उसका बदला लेने के लिए अब पूरी तरह तैयार है ।
प्राकृतिक दोहन किये जाने से कमजोर पड़ती धरती । ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण पिघल रहे हैं ग्लैशियर ।
ओजोन परत में छेद के कारण बढ़ता धरती का तापमान । धरती को खतरा आकाश से गिरने वाली उल्का पिंडों से ।
धरती के 75 % हिस्से पर जल है । और सिर्फ 25 % हिस्से पर ही मानव की गतिविधियां जारी थी । आज से 200-300  साल पहले मानव की आकाश और समुद्र में पकड़ नहीं थी । लेकिन जबसे मानव ने आकाश और समुद्र में दखल अंदाजी की है । धरती को पहले की अपेक्षा बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है । तेल के खेल और खनन ने धरती का तेल निकाल दिया है । वक्त के पहले धरती को मार दिये जाने की हरकतें धरती कतई बर्दाश्त नहीं कर पायेगी । इससे पहले कि मानव अपनी हदें पार करे । धरती उसके अस्तित्व को मिटाने की पूरी तैयारी कर चुकी है ।
धरती का अपना 1 पारिस्थितिकी तंत्र होता है । उस तंत्र के गड़बड़ाने से जीवन और जलवायु असंतुलित हो गया है । मानव की प्रकृति में बढ़ती दखल अंदाजी के चलते वह तंत्र गड़बड़ा गया है । मानव ने अपनी सुख । सुविधा । और अर्थ के विकास के लिये धरती का हद से ज्यादा दोहन कर दिया है ।
मांसाहार के अति प्रचलन के चलते मूक प्राणियों के मारे जाने की संख्या लाखों से करोड़ों में पहुंच गई । जो नहीं खाना चाहिए । मनुष्य वह भी खाने लगा है । शेर को बकरी नहीं मिलती । बकरी को चारा नहीं मिलता । कुत्ते को बिल्ली नहीं मिलती । और बिल्ली को चूहा । बाज को सांप नहीं मिलता । और सांप को इल्ली । सभी के हिस्से का भोजन मनुष्य खाने लगा है ।
जो पशु जीभ से पानी पीता है । वह माँसाहारी । और जो होठ लगाकर पानी पीता है । वह शाकाहारी है । मनुष्य भी 1 शाकाहारी प्राणी है । लेकिन उसने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल जहाँ जीवन के स्तर को अच्छा बनाने में किया । वहीं उसने स्वयं सहित धरती के जीवन को संकट में डाल दिया है । तब निश्चत ही प्रकृति प्रलय का सृजन कर स्वयं को रिफोर्म करेगी । प्राकृतिक और खगोलीय घटनाओं के लिए मानव स्वयं जिम्मेदार है ।
ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते लगातार दुनिया के ग्लैशियर पिघल रहे हैं । और जलवायु परिवर्तन हो रहा है । कहीं सुनामी । तो कहीं भूकंप और कहीं तूफान का कहर जारी है । दूसरी और धरती के उपर ओजोन पर्त का जो जाल बिछा हुआ है । उसमें लगभग ऑस्ट्रेलिया बराबर का 1 छेद हो चुका है । जिसके कारण धरती का तापमान 1 डिग्री बढ़ गया है । 1 अन्य शोध के चलते वैज्ञानिकों का कहना है - भूकंप आदि आपदाओं के कारण धरती अपनी धूरी से 2.50 से 3 डिग्री खिसक गई है । जिसके कारण भी जलवायु परिवर्तित हो गया है ।
धरती पर से प्राकृतिक आपदा के कारण कई बार कई जाति और प्रजातियों का विनाश हो चुका है । वैसे मानव को अस्तित्व में आये वैज्ञानिकों अनुसार तो लगभग 2 करोड़ साल ही हुए हैं । और 1 दूसरी मान्यता अनुसार 80 लाख वर्ष पूर्व आधुनिक मानव अस्तित्व में आया । धरती की अब तक की आयु का आंकलन 4.5 अरब वर्ष किया गया है । हालांकि वैज्ञानिकों में इस बारे में मतभेद हैं ।
वैज्ञानिक कहते हैं - धरती के सारे द्वीप - अमेरिका । भारत । ऑस्ट्रेलिया । अफ्रीका आदि एक दूसरे से जुड़े हुये थे । लेकिन धरती की घूर्णन गति ( अपनी धुरी पर घूमना ) के कारण ये सभी एक दूसरे से धीरे धीरे अलग होते गए । और इस प्रक्रिया में हजारों लाखों साल लगे । इस घूर्णन गति के कारण ही समुद्र और धरती के अंदर स्थित बड़ी बड़ी चट्टानें घिसकर एक दूसरे से दूर होती रहती है । जिसके कारण भूकंप और ज्वालामुखी सक्रिय होते हैं । और यह 1 स्वाभाविक प्रक्रिया है । जो आज भी जारी है । और आगे भी निरंतर जारी रहेगी । लेकिन जब मानव इस स्वाभाविक प्रक्रिया में दखल देता है । तो स्थिति और भयानक बन जाती है ।
आज धरती की हालत पहले की अपेक्षा इसलिए खराब हो चली है कि मानव ने समुद्र । आकाश और भूगर्भ में आवश्यकता से अधिक दखल दे दिया है । इसलिए वैज्ञानिकों के लिए सर्वप्रथम सबसे बड़ी चिंता का कारण आकाश से आने वाली कोई उल्का पिंड नहीं । बल्कि धरती के खुद के ही असंतुलित होकर भारी तबाही मचाने का है । मौसम इस तेजी से बदल रहा है कि - जलचर । थलचर । और नभचर प्राणियों का जीना मुश्किल होता जा रहा है । हवा दूषित होती जा रही है । खाद्यान संकट बढ़ रहा है । मानव की जनसंख्‍या से पशु । पक्षियों और जलचर जंतुओं का अस्तित्व खतरे में हो चला है । पारिस्थितिकि तंत्र गड़बड़ा रहा है । तो स्वाभाविक रूप से मानव खुद ही प्रलय का निर्माता है ।
सभी  जानकारी साभार विभिन्न इंटरनेट स्रोत से

21 DEC 2012

हमारी आकाश गंगा galaxy जिसका नाम है - मिल्की वे । इस आकाश गंगा में धरती 1 छोटा सा ग्रह मात्र है । जो कि मिल्की वे के विशालकाय तारों और अन्य ग्रहों के मुकाबले 1 छोटे से कंकर के समान है । 1 आकाश गंगा में अरबों तारे ( लगभग 250 बिलियन ( अरब ) सितारों का समूह )  ग्रह । नक्षत्र और सूर्य हो सकते हैं ।
हमारी आकाश गंगा की तरह लाखों आकाश गंगायें हैं । प्रत्येक आकाश गंगा galaxy में सितारों के परिवार हैं । ग्रह । नक्षत्र । उपग्रह । एस्ट्रायड । धूमकेतू । उल्का पिंड और ज्वाला की भीषण भट्टियों के रूप में गैसों का अग्नि तांडव ( गैसीय पिंड ) है ।
बृह्मांड की अपेक्षा धरती 1 जर्रा भी नहीं है । वैज्ञानिक शोध अनुसार धरती के समान करोड़ों अन्य धरती हो सकती हैं । जहाँ जीवन हो भी सकता है । और नहीं भी । अनंत है संभावनायें ।
जिस तरह धरती घूमती है । उसी तरह वह घूमते हुए हमारे सूर्य का चक्कर लगाती है । शनि । शुक्र । मंगल । बुध । प्लूटो और नेपचून सहित हमारे सौर मंडल में स्थिति सभी उल्कायें सूर्य का चक्कर लगाती हैं । सभी सूर्य के कारण अपनी अपनी धूरी पर चलायमान हैं । लेकिन उनमें से कुछ उल्का्यें जब अपने पथ से भटक जाती हैं । तो वे सौर मंडल के किसी भी ग्रह से आकर्षण में आकर उस पर गिर जाती है । या उसका सौर पथ पहले की अपेक्षा और लम्बा या छोटा हो जाता है । यह भी हो सकता है - वे उल्कायें इस कारण स्वत: ही जल कर नष्ट हो जा्यें ।
जिस तरह धरती पर ज्वालामूखी फूट रहे हैं । सूनामी आ रही है । भूकंप उठ रहे हैं । तूफान आ रहे हैं । उसी तरह सूर्य सहित अन्य ग्रहों पर भी ये प्राकृतिक आपदायें होते रहती हैं । जो ग्रह जितना बड़ा । वहाँ आपदायें भी उतनी बढ़ी । और उसका प्रभाव उतना व्यापक । यदि सूर्य पर कोई बड़ी घटना घटती है । तो उसका प्रभाव धरती पर भी होता हैं । उसी तरह धरती का प्रभाव चंद्रमा पर भी होता है । इस प्रभाव से मौसम में परिवर्तन देखने को मिलता है । मौसम के बदलने से भूगर्भ हलचलें और बढ़ जाती है ।
एस्ट्रायड ( उल्का पिंड ) या गैसीय पिंड के धरती के नजदीक से गुजरने या धरती से टकराने से धरती की 
जलवायु में भारी परिवर्तन देखने को मिलता है ।
मानव ने ठंड से बचने के उपाय तो ढूंढ लिये । भूकंप । तूफान और ज्वालामुखी से बचने के उपाय भी ढूंढ लिये । लेकिन धरती को सूर्य । एस्ट्रायड या अन्य ग्रहों के दूष्प्रभाव से कैसे बचा जा्ये ? इसका उपाय अभी नहीं ढूंढा है । धरती को बचाये रखना है । तो जल्द ही इसके उपाय ढूंढना होंगे ।
ज्योतिष । धार्मिक । पंडित । या विज्ञान जगत के कुछ लोगों द्वारा पिछले कई वर्षों से दुनिया के खत्म होने का दावा किया जाता रहा है । इसके लिए समय समय पर बाकायदा तारीखें बताई गई हैं । 4 से 5 बार बताई गई तारीखें अब तक झूठी साबित हुई । नई तारीखों में 21 MAY 2011 और 21 DEC 2012 को प्रलय की भविष्‍यवाणी की गई है ।
इन भविष्यवाणियों का आधार क्या है ? यह समझने की जरूरत है । विश्व के अलग अलग हिस्सों में - सुनामी । बाढ़ । भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं से होने वाली तबाही ऐसी बातों को और बल देती हैं । प्रकृति की भयावह घटनाओं को देखते हुए जनता को भविष्यवाणियों द्वारा और भयभीत किया जाता रहा है । आखिर इस तरह की भविष्यवाणी करने का उद्देश्य क्या है ? यह सोचा जाना अभी बाकी है ।
इन सभी भविष्यवाणियों के चलते आओ हम जानते हैं कि - धर्म । विज्ञान और ज्योतिष की धारणा इस संबंध में क्या कहती है ?
माया कैलेंडर में 21 DEC 2012 के बाद की तिथि का वर्णन नहीं है । कैलेंडर अनुसार उसके बाद पृथ्वी का अंत है । इस पर यकीन करने वाले कहते हैं - हजारों साल पहले ही अनुमान लगा लिया गया था  21 DEC 2012 पृथ्वी पर प्रलय का दिन होगा । गणित और खगोल विज्ञान के मामले में बेहद उन्नत मानी गई इस सभ्यता के कैलेंडर में पृथ्वी की उमृ 5126 वर्ष आंकी गई है ।
कुछ वैज्ञानिक ऐसी किसी भी आशंका से इंकार करते हैं । वैज्ञानिकों का मानना है कि बृह्मांड में ऐसे हजारों ग्रह और उल्का पिंड हैं । जो कई बार धरती के नजदीक से गुजर ‍चुके हैं । 1994 में 1 ऐसी ही घटना घटी थी । पृथ्वी के बराबर के 10-12 उल्का पिंड बृहस्पति ग्रह से टकरा गये थे । इसका नजारा महा प्रलय से कम नहीं था । आज तक उस ग्रह पर उनकी आग और तबाही शांत नहीं हुई है ।
वैज्ञानिक मानते हैं - यदि बृहस्पति ग्रह के साथ जो हुआ । वह भविष्य में कभी पृथ्वी के साथ हुआ । तो तबाही तय हैं । लेकिन यह सिर्फ आशंका है । आज वैज्ञानिकों के पास इतने तकनीकी साधन हैं कि - इस तरह की किसी भी उल्का पिंड की मिसाइल द्वारा दिशा बदल दी जाएगी । इसके बावजूद फिर भी जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग तबाही का 1 कारण बने हुए हैं ।
कुछ महीनों पहले अमेरिका के खगोल वैज्ञानिकों ने घोषणा की - 13 APR 2036 को पृथ्वी पर प्रलय हो सकता है । उनके अनुसार अंतरिक्ष में घूमने वाला 1 ग्रह एपोफिस 37014.91 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से पृथ्वी से टकरा सकता है । इस प्रलयंकारी भिडंत में हजारों लोगों की जान जा सकती है । हालांकि NASA के वैज्ञानिकों का कहना है कि इसे लेकर घबराने की कोई जरूरत नहीं है ।
NASA वैज्ञानिकों ने दावा किया  - 2012 में धरती पर भयानक तबाही आने वाली है । वैज्ञानिकों ने पिछले साल AUG में सूरज में कुछ अजीबो गरीब हलचल देखी । NASA के उपग्रहों से रिकॉर्ड करने के बाद वैज्ञानिकों ने आग के बादलों से धरती पर भयानक तबाही की चेतावनी दी । NASA मानता है कि आग की ये लपटें सूरज की सतह पर हो रहे चुंबकीय विस्फोटों की वजह से पैदा हुयीं । लावे का ये तूफान धरती की तरफ रुख कर चुका है ।  ये तूफान कभी भी धरती से टकरा सकता है ।
बाइबिल के जानकारों का मानना है - प्रभु यीशु का पुन: अवतरण होने वाला है । लेकिन इसके पहले दुनिया का खत्म होना तय है । और वह दिन बहुत ही निकट है । बस कुछ लोग ही बच जायेंगे । इस दिन प्रभु न्याय करेगा । कुछ ईसाई जानकारों के अनुसार प्रलय 2012 के आसपास ही कही गई है । बाइबल का वर्षों तक अध्ययन करने के बाद हेराल्ड कैंपिन ने कहा - प्रलय का दिन 21 MAY 2011 है ।
इस्लाम में भी प्रलय का दिन माना जाता है । जिसे कयामत कहा गया है । इसके अनुसार अल्लाह 1 दिन संसार को समाप्त कर देगा । यह दिन कब आयेगा ? यह केवल अल्लाह ही जानता है । इस्लाम के अनुसार शारीरिक रूप से सभी मरे हु्ये लोग उस दिन जी उठेंगे । और उस दिन हर मनुष्य को उसके अच्छे और बुरे कर्मों का फल दोजख और जन्नत के रूप में दिया जाएगा । इस्लाम के अनुसार कयामत के दिन के बाद दोबारा संसार की रचना नहीं होगी ।
प्रलय के संबंध में हिंदू धर्म की धारणा मूल रूप से वेदों से प्रेरित है । प्रलय का अर्थ होता है । संसार का अपने मूल कारण प्रकृति में सर्वथा लीन हो जाना । प्रलय 4 प्रकार की होती है - 1 नित्य । 2 नैमित्तिक । 3 द्विपार्थ । और 4 प्राकृत । प्राकृत ही महा प्रलय है । जो कल्प के अंत में होगी । 1 कल्प में कई युग होते हैं । यह युग के अंत में प्राकृत प्रलय को छोड़कर कोई सी भी प्रलय होती है । हिन्दू धर्म मानता है - जो जन्मा है । वह मरेगा । सभी की उमृ निश्चित है । फिर चाहे वह सूर्य हो । या अन्य ग्रह ।
सवाल है - प्रलय की धार्मिक मान्यता में कितनी सच्चाई है ? या यह सिर्फ कल्पना  है । जिसके माध्यम से लोगों को भयभीत करते हुए धर्म और ईश्वर में पुन: आस्था को जगाया जाता है । जहाँ तक सवाल वैज्ञानिक दृष्टिकोण का है । तो वह भी विरोधाभासी है ।
भूकंप और सुनामी से हुई तबाही को पुरी दुनिया ने देखा है । 9.0 से लेकर 9.9 तक तीवृता का भूकंप हजारों किमी के क्षेत्र में तबाही मचा सकता है । अब तक दर्ज मानव इतिहास में 10.0 या इससे अधिक का भूकंप आज तक नहीं आया । भूकंप से अब तक लाखों लोगों की जान जा चुकी है । भूकंप के झटके खा खाकर धरती अपनी धुरी से लगभग 1 डिग्री खिसक चुकी है ।
भूकंप अकसर भू गर्भीय दोषों के कारण आते हैं । भूकंप प्राकृतिक घटना या मानव जनित कारणों से हो सकता है । धरती या समुद्र के अंदर होने वाली विभिन्न रासायनिक क्रियाओं के कारण ये भूकंप आते हैं । अधिकांश भूकंपों की उत्पत्ति धरती की सतह से 30 से 100 किमी अंदर होती है । सतह के नीचे धरती की परत ठंडी होने और कम दबाव के कारण नष्ट होती है । ऐसी स्थिति में जब अचानक चट्टानें गिरती हैं । तो भूकंप आता है ।
सीधी भाषा में कहें । तो धरती की ऊपरी परत से लगभग 30 किमी नीचे कई प्लेटें हैं । अर्थात हजारों किमी लंबी चट्टानें । जो बहुत सी जगहों से टूट चुकी है । यह जब सरकती है । तो धरती की ऊपरी परत पर जोरदार कंपन होता है । इसे ही भूकंप कहते हैं । भूकंप का कारण भीतरी भू स्खलन । ज्वालामुखी और गहरी मीथेन गैसे भी हैं । 1 और कारण है । धरती के भीतर मानव द्वारा नाभिकीय परीक्षण करना । वैज्ञानिकों को आशंका है - भूकंप कभी भी धरती के लिए जान लेवा बन सकता है ।
ब्लैक होल black hole को कृष्ण विवर कहते हैं । कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के खगोलविदों के नेतृत्व में 1 दल ने 30 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर मौजूद निहारिकाओं में 2 विशालकाय ब्लैक होल का पता लगाया । जो आकार में हमारे सूर्य से 10 अरब गुना बड़े हैं । इससे पहले पाया गया सबसे बड़ा ब्लैक होल सूर्य से 6 अरब गुना बड़ा बताया गया था ।
खगोल वैज्ञानिक अंतरिक्ष के अथाह सागर में ब्लैक होल  black hole  जैसे कुछ ऐसे भागों की संभावना बताते हैं । जहाँ कोई भी वस्तु । पदार्थ । और यहाँ तक कि प्रकाश भी विलीन हो जाता है । यह 1 ऐसा अंधकारमय क्षेत्र होता है । जिसे देखा नहीं जा सकता । इसीलिए इसे ब्लैक होल  black hole कहते हैं ।
ब्लैक होल असल में 1 अति घनत्व और विशाल आकार वाला मृत तारा होता है । इसका गुरुत्व बल इतना ज्यादा होता है कि यह अपने आसपास के सभी पदार्थों को उनके मार्ग से भटका कर अपनी ओर खींच लेता है । इस जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण के कारण अगर कोई चीज 1 बार इसमें चली जाए । तो वह फिर कभी बाहर नहीं आ पाती । ब्लैक होल अपने आस पास के छोटे छोटे तारों ग्रहों आदि को भी निगलते रहते हैं । खगोलविद मानते हैं - आकाश गंगाओं galaxy में बहुत से ब्लैक होल उपस्थित हैं । जिनसे धरती को खतरा है ।
1 अध्ययन के अनुसार हमारी आकाश गंगा में 160 अरब ग्रह हैं । जहाँ एलियंस हो सकते हैं । यदि धरती उपरोक्त किसी कारण नष्ट हुई । तो हमें किसी एलियंस के ग्रह पर ही शरण मिल सकती है । कोई एलियंस ही हमें बचा सकता है । या हम कोई नया खाली पड़ा ग्रह ढूंढ लें । और फिर वहीं बस जाएं । लेकिन वैज्ञानिकों का 1 डर यह भी है - कहीं एलियंस ही हमें और धरती को नष्ट न कर दें ?
हर साल धरती पर UFO देखें जाने की चर्चा जोरों से चलती है । दुनिया भर के अखबार वैज्ञानिकों के हवाले से भर जाते हैं । UFO मतलब एलियंस का अंतरिक्ष यान । सवाल उठता है कि - क्या एलियंस 1 हकीकत है । इस विज्ञान कल्पना पर कई फिल्में बन चुकी हैं । बहुत से वैज्ञानिक मानते हैं - एलियंस अब महज ख्वाब नहीं । हकीकत हैं । वैज्ञानिकों का 1 दल अब ये भी सोच रहा है - वो कभी भी सामने आयेंगे ।
बहुत से अमेरिकी पायलट कहते हैं - हमने UFO को देखा है । कुछ ऐसा दावा करते हैं कि - अमेरिका जब चांद पर पहुंचा । तो उसका सामना वहाँ एलिएंस से हुआ था । कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि शुक्र और मंगल ग्रह पर हो एलियंस सकते हैं । हाल ही में अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने एलियंस के होने के सबूत जुटायें हैं । एलियंस को लेकर दुनिया में हड़कंप मच हुआ है । यदि उनका वजूद है । तो निश्चित ही हमसे ज्यादा तकनीकी सम्पन्न होंगे । और अब हमें उनका गुलाम बनने के लिए तैयार रहना चाहिये । या वे हमारे जैसे मूर्ख और लङाकू रहे । तो धरती को नष्ट करने में लग जायेंगे । इसमें कोई शक नहीं कि यदि वे हमारे जैसे रहे । तो खुद की धरती की संपदा को खत्म करके हमारी धरती की संपदा लूटने आयेंगे । याद है न आपको हॉलीवुड की फिल्म - अवतार ।
यह बहस का विषय है कि क्या 21 या 23 DEC 2012 को दुनिया समाप्त हो जायेगी । पृथ्वी की आयु समाप्त हो जायेगी । या प्रलय हो जायेगी ? इस पर अनेकों मत हैं । अनेक प्रकार के भृम हैं । इस बहस को 2 तर्कों के आधार पर हवा दी जा रही है । जिनमें 1 है - माया सभ्यता ( ई.पू. 3500 - 900 ) का माया कैलेण्डर । तथा दूसरा है - माइकेल द नास्त्रेदम ( 1503 - 1566 ) की भविष्यवाणी । इस बहस को सबसे अधिक हवा दी है । इण्टरनेट तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया ने ।
हिस्ट्री चैनल का 1 प्रसारण - सूर्य 2012 में अपने मूल पथ से विचलित होकर 300 ऊपर आकाश गंगा के दक्षिण स्थित मृत्यु राशि - डार्क रिफ्ट ( काला घेरा ) को स्पर्श करेगा । और पुन: अपनी मूल राशि में नहीं लौटेगा । इससे सृष्टि विनाश की आशंका है । क्योंकि यह 1 अनहोनी घटना होगी ।
26 MAY 2009 को INDIA TV का 1 प्रसारण - लगभग 5000 वर्ष पूर्व अमेरिका में रहने वाली माया सभ्यता की 1 ऐसी गुफा खोजी गयी है । जिसमें अनेक नरमुण्ड । कंकाल । तथा भविष्यवाणी की 1 पुस्तक मिली है । जिसके अनुसार 23 DEC 2012 को विश्व में प्रलय हो जाएगी । और अधिकांश सभ्यता नष्ट हो जायेगी ।
उल्लेखनीय है - दक्षिणी अमेरिका । मैक्सिको आदि में ईसा पूर्व 3500 से ईसा पूर्व 900 तक माया सभ्यता का अस्तित्व रहा । इसके 1 शासक स्मॉक स्क्वाड्रल के शासन काल में उनके रणनीतिकार टपोरी ने हजारों वर्षों का 1 कैलेण्डर बनाया । जिसे माया कैलेण्डर कहा गया । कहते हैं । इस कैलेण्डर का निर्माण टपोरी ने तब किया । जब वह 1 अपराध के कारण सुनसान द्वीप मैनानली पर निर्वासित किया गया था । वहाँ उसने 5125 साल के इस कैलेण्डर को बनाया । जिसमें 21 DEC 2012 तक ही अंतिम तिथि है । कहते हैं । यहाँ तक कैलेण्डर बनाने के पश्चात टपोरी उस द्वीप से किसी तरह पलायन कर गया ।
इस कैलेण्डर में ऐसा कहीं उल्लेख नहीं है कि - इस तिथि के बाद दुनिया समाप्त हो जायेगी । अपितु बाद की तिथि की गणना न होने से उस दिन कैलेण्डर की मियाद समाप्त हो रही है । अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार भी इस दिन माया कैलेण्डर की मियाद समाप्त हो रही है । जिसके ठीक बाद 1 नया चक्र प्रारम्भ होगा । और यही कैलेण्डर पुन: जारी हो जायेगा ।
धर्म । विज्ञान और ज्योतिष की धारणा इस संबंध में क्या कहती है ? 1 JAN 2012 से 21 DEC 2012 तक ऐसी कई भविष्यवाणियाँ हैं । जिन्हें कई विशेषज्ञों के अनुसार साल 2012 में घटित होनी है ।
2012 में दुनिया में महा विनाश होने के माया कैलेण्डर का डर क्या होगा ? माया सभ्यता 300 से 900 ई. के बीच मेक्सिको । पश्चिमी होंडूरास और अल सल्वाडोर आदि इलाकों में फल फूल रही थी । माया सभ्यता के लोग मानते थे - जब इस कैलेंडर की तारीखें खत्म होती हैं । तो धरती पर प्रलय आता है । और नये युग की शुरुआत होती है । इसका कैलेडर ई. पू. 3114 से शुरू हो रहा है । जो बक्तूनों में बंटा है । इस कैलेंडर के हिसाब से 394 साल का 1 बक्तून होता है । और पूरा कैलिंडर 13 बक्तूनों में बंटा है । जो 21 DEC 2012 को खत्म हो रहा है ।
माया कलेंडर में 1 साथ 2-2 साल हैं । पहला  260 दिनों का । और दूसरा 365 दिनों के चलते थे । 365 दिन का साल तो निश्चित तौर पर सौर गति पर आधारित होता होगा । जबकि 260 दिनों का साल संभवत: 9 चंद्र मास का होता हो । इस तरह इसके 4 चंद्र वर्ष पूरे होने पर 3 सौर वर्ष ही पूरे होते होंगे । जिसका सटीक तालमेल करते हुए वर्ष के आकलन के साथ ही साथ ग्रह नक्षत्रों और सूर्य ग्रहण । चंद्र ग्रहण तक के आकलन का उन्‍हें विशिष्‍ट ज्ञान था । इससे उनके गणित ज्‍योतिष के विशेषज्ञ होने का पता तो चलता है । पर फलित ज्‍योतिष की विशेषज्ञता की पुष्टि नहीं होती ।
कोर्नल विश्वविद्यालय में खगोलविद ऐन मार्टिन का भी कहना है - माया कैलेंडर का डिजायन आवर्ती है । ऐसे में कहना कि दीर्घ गणना DEC 2012 को समाप्त हो रही है । सही नहीं है । यह बिल्कुल वैसा ही है । जैसे हमारी सभ्यता ने नई सहस्त्राब्दी का स्वागत किया था । इस प्रकार यह माना जा सकता है - माया कैलेण्‍डर के वर्ष का समाप्‍त होना बिलकुल सामान्‍य घटना है ।
हिस्ट्री चैनल ने जो सूर्य के विचलन एवं मृत्यु राशि डार्क रिफ्ट  की बात कही है । यह 1 सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है । नक्षत्र वैज्ञानिकों के अनुसार - प्रत्येक 72 वर्ष के अंतराल पर सौर प्रणाली में 1 डिगरी का विचलन होता है । तथा 2160 साल में यह विचलन 300 हो जाता है । जब सूर्य अपने पथ से विचलित होकर 300 ऊपर आकाश गंगा के मार्ग में आ जाता है । और वह उसके दक्षिण स्थित डार्क रिफ्ट को स्पर्श करता है । इस स्पर्श से किसी 1 राशि के जीवन काल की समाप्ति होती है । और यही 2160 वर्ष 1 राशि के समाप्त होने का 1 चक्र होता है । इस समय प्रात: बेला में आकाश में तारा मण्डल साफ साफ दिखायी देता है । नक्षत्र वैज्ञानिकों के अनुसार 21 DEC 2012 को प्रात: 11 बजकर 12 मिनट पर सूर्य डार्क रिफ्ट को स्पर्श करेगा । भौतिक शास्त्रियों के अनुसार कुल 12 राशियों के समाप्त होने में लगभग 26000 वर्ष लगते हैं । जब सूर्य के पूर्ण विचलन का 1 चक्र सम्पूर्ण होता है । एवं सूर्य 3600 विचलित होते होते पुन: पूर्व स्थिति में आ जाता है ।
हिन्दू दर्शन तथा आध्यात्मिक चिन्तन के अनुसार जगत में प्रलय की घटना निरन्तर होती रहती है । हिंदू धर्म ग्रन्थों में 4 प्रकार के प्रलय का उल्लेख मिलता है - 1 नित्य । 2 नैमित्तिक ( या महा प्रलय ) 3 प्राकृतिक । एवं 4 आत्यन्तिक । क्षण प्रति क्षण का परिवर्तन नित्य है । त्रैलोक्य एवं सृष्टि का विलय नैमित्तिक हैं । सम्पूर्ण बृह्माण्ड एवं तत्वों का प्रकृति में विलय प्राकृतिक है । जीव का आत्मा रूप होना । आत्यन्तिक प्रलय कहलाता है । इस तरह सम्पूर्ण सृष्टि को समाप्त करने वाला महा प्रलय प्रत्येक कल्प के अंत में होता है ।
हिंदू दर्शन एवं अध्यात्म में 4 युग माने गये हैं । 4 युगों को महा युग कहते हैं । जिसकी आयु सूर्य सिद्धांत के अनुसार 43.20 लाख वर्ष है । 71 महा युग का 1 मन्वन्तर । 14 मन्वन्तर का 1 कल्प होता है । इस कल्प की समाप्ति पर ही महा प्रलय होता है ।
वर्तमान कलियुग का प्रारम्भ - ईसा पूर्व 3012 की 20 FEB को हुआ था । और अभी तक इसे आये 5212 वर्ष पूर्ण होने वाले हैं । जबकि कलियुग की आयु 4.32 लाख वर्ष है । अत: हिन्दू दर्शन की मान्यता अनुसार 2012 में महा प्रलय की कोई संभावना ही नहीं है ।
दुनिया के नष्‍ट होने की संभावना में 1 बडी बात यह भी आ रही है कि ऐसा संभवतः पृथ्‍वी के चुंबकीय ध्रुव बदलने के कारण होगा । वास्‍तव में हम लोग सूर्य की सिर्फ 1 दैनिक और 2 वार्षिक गति के बारे में जानते हैं । जबकि इसके अलावा भी सूर्य की कई गतियां हैं । सूर्य की 3rd गति के अनुसार पृथ्वी कृमश: अपनी धुरी पर भी झुकते हुए घूमती रहती है । इस समय पृथ्‍वी की धुरी सीधे ध्रुव तारे पर है । इसलिये ध्रुव तारा हमको घूमता नहीं दिखाई पड़ता है । इस तरह हजारों साल पहले और हजारों साल बाद हमारा ध्रुव तारा परिवर्तित होता रहता है । धीरे धीरे ही सही झुकते हुए पृथ्‍वी 25700 साल में 1 बार पूरा घूम जाती है । पर यह अचानक 1 दिन में नहीं होता । जिस तरह धरती की धुरी पलटने की बात की जा रही है । उस पर NASA के प्रमुख वैज्ञानिक और आस्क द एस्ट्रोबायलॉजिस्ट के चीफ डॉ. डेविड मॉरिसन का कहना है - ऐसा कभी न तो हुआ है । न ही भविष्य में कभी होगा ।
इंटरनेट पर कुछ अज्ञात वैज्ञानिकों के हवाले से लिखा जा रहा है - planet X निबिरू नाम का 1 ग्रह DEC 2012 में धरती के काफी करीब से गुजरेगा । पर NASA का कहना है - planet  x निबिरू नाम के जिस ग्रह की 2012 DEC को धरती से टकराने की बात की जा रही है । उसका कहीं अस्तित्व ही नहीं है । जबकि ये वैज्ञानिक कहते हैं कि यह टक्कर वैसी ही होगी । जैसी उस वक्‍त हुई थी । जब पृथ्वी से डायनासोर का नामोनिशान मिट गया था । अपने 1 वक्तव्य में NASA ने यह स्‍वीकारा है - इस समय 1 ही लघु ग्रह है - एरिस । जो सौर मंडल की बाहरी सीमा के पास की कुइपियर बेल्ट में पड़ता है । और आज से 147 साल बाद 2257 में पृथ्वी के कुछ निकट आएगा । तब भी उससे 6 अरब 40 करोड़ किमी दूर से निकल जाएगा । अब ऐसी स्थिति में DEC 2012 में ऐसी संभावना की बात भी सही नहीं लगती ।
नास्त्रेदम की भविष्यवाणी को सुलझाने का दावा करने वाले लोग भी 21 DEC 2012 की तारीख को महत्वपूर्ण मानते हैं । परन्तु पृथ्वी की आयु इतनी अधिक है कि - इस दिन पृथ्वी के नष्ट होने या प्रलय की कोई संभावना नहीं है ।
कुरआन में मुहम्मद ने कयामत के जो 6 लक्षण बताये हैं । उनमें से कुछ अभी तक प्रकट नहीं हुये हैं । जैसे - अराजकता । खूनी हिंसा । जिसमें अरब का कोई घर सलामत न रहे । तथा दूसरा जब रोमन 80 झण्डों के साथ सैन्य शक्ति लेकर अरब पर हमला करें । अत: कुरआन के अनुसार भी अभी दुनिया समाप्त नहीं हो रही  ।
न्यू टेस्टामेण्ट ( बाइबल ) में पतरस की पहली पत्री 18:20 के वर्णन के अनुसार 2012 में आर्मागडेन ( अंतिम युद्ध ) प्रारम्भ होगा । जो अच्छाई तथा बुराई के बीच संघर्ष करेगा । किन्तु यह युद्ध कब समाप्त होगा । इसका उल्लेख उसमें नहीं है । भले ही ईसाई इसे अंतिम युग मानते हों ।
पर मैथ्यू 24:36 के अनुसार ‘कोई भी वह घड़ी या वह दिन समय नहीं जानता । जब ईश्वर न्याय करेगा । यहां तक कि स्वर्ग में रहने वाले देवदूत भी । तब 2012 अंतिम युग का समाप्त करने वाला कैसे हो सकता है ?
कुछ इण्टरनेट एवं मीडिया चैनलों में ऐसा कहा गया -  21 DEC 2012 को हाल ही में खोजा गया धुंधला अस्पष्ट 10वां ग्रह नीबिरू पृथ्वी से टकरायेगा । जिससे पृथ्वी का अंत हो जाएगा । कुछ छदम वैज्ञानिकों के अनुसार इस 10वें ग्रह की खोज सुमेरियनों द्वारा की गयी । और उन्होंने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA  पर आरोप लगाया कि - उन्होंने इस खोज की खबर को छिपाया । जबकि NASA  ने इसे मिथ्या । काल्पनिक तथा इण्टरनेट द्वारा फैलाया गया झांसा कहा ।
1 ब्रिटिश समाचार पत्र के हवाले से कहा गया - इस दावे में कोई भी वास्तविकता नहीं है । और उसमें नासा के प्रतिवाद का समर्थन किया गया है । इतना ही नहीं । कुछ वैज्ञानिक 21 या 23 DEC 2012 को सौर तूफान आने की आशंका व्यक्त कर रहे हैं । जब सूर्य की तीवृता में अचानक वृद्धि हो जायेगी ।
प्रगति प्रकाशन ( मास्को ) द्वारा प्रकाशित पुस्तक धरती और आकाश के अनुसार सूर्य का जन्म 10 अरब वर्ष पूर्व हुआ । तथा लगभग 6 अरब वर्ष पश्चात सूर्य रक्त दानव बन जायेगा । इसके ताप में इतनी वृद्धि हो जायेगी कि निकटस्थ ग्रह पिघल कर इसके उदर में समा जायेंगे । समुद्र सूख जायेंगे । पृथ्वी राख बन जायेगी । तदनन्तर 10 करोड़ वर्षों में सूर्य बौना हो जायेगा । उसका ताप समाप्त हो जायेगा । और सृष्टि पुन: प्रारम्भ होगी । इस तरह 2012 में ही सूर्य की ताप तीवृता में वृद्धि या सौर तूफान आने की कल्पना निराधार है ।
कुछ वैज्ञानिक आइन्सटाइन की पोलर शिफ्ट थ्योरी को आधार बना रहे हैं । जिसके अनुसार प्रत्येक 7.50 लाख वर्ष के अंतराल पर दोनों ध्रुव अपना स्थान परिवर्तित करते हैं । इस तरह चुम्बकीय क्षेत्र परिवर्तित हो जाता है । और वे यह अनुमान लगाते हैं - DEC 2012 में यह घटना घटित होगी ।
वैज्ञानिक भू वैज्ञानिक  कहते हैं - 2012 में अमेरिका के विशाल yellow stone ज्वालामुखी में विस्फोट होगा । क्योंकि यह घटना प्रत्येक 6.50 लाख वर्ष में घटती होती है ।
13 NOV 2009 को हालीवुड की सोनी पिक्चर्स ने रोनाल्ड ऐमेरिक द्वारा निर्देशित फिल्म 2012 रिलीज की । जिसमें सौर तूफान । yellow stone ज्वालामुखी विस्फोट के कारण विश्व की सभ्यता एवं पृथ्वी के विनाश का चित्रण किया गया है । इस फिल्म की कथा को लेकर भी NASA  ने कहा - इसमें कोई तथ्य या सच्चाई नहीं है कि सन 2012 में ऐसी कोई घटना घटने वाली है । और दुनिया समाप्त होने वाली है ।
इसके अलावा सुनामी । भूकम्‍प । ज्वालामुखी । ग्लोबल वार्मिग । अकाल । बीमारियां । आतंकवाद । युद्ध की विभीषिका । व अणु परमाणु बम जैसे कारणों से भी प्रलय आने की संभावना व्‍यक्‍त की जा रही है ।
जब अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की ओर से पृथ्‍वी के धुर बदलने या किसी प्रकार के ग्रह के टकराने की संभावना से इंकार किया जा रहा है । तो निश्चित तौर पर प्रलय की संभावना - सुनामी । भूकम्‍प । ज्वालामुखी । ग्लोबल वार्मिग । अकाल । बीमारियां । आतंकवाद । युद्ध की विभीषिका व अणु बम जैसी घटनाओं से ही मानी जा सकती है । जिनका कोई निश्चित चक्र न होने से उसके घटने की निश्चित तिथि की जानकारी अभी तक वैज्ञानिकों को नहीं है ।
20 SEPT 2009  रविवार के दिन इण्डोनेशिया के बाली द्वीप में SAT 19 SEPT को सुबह 6.04 बजे भूकम्प के तेज झटके महसूस किये गये । रिक्टर पैमाने पर 6.4 की तीवृता वाले इस भूकम्प में 9 लोग घायल हो गये । और कई भवन क्षतिग्रस्त हो गए ।
विगत 2 शताब्दियों के दौरान विश्व के विनाश को लेकर अनेक भविष्यवाणियां की गयी ।  MAY 1980 में पैट राबर्टसन ने 1 TV शो में कहा - वह गारंटी के साथ कह रहे हैं कि 1982 के अंत तक विश्व समाप्त हो जायेगा । और ईश्वर सबका न्याय करेगा । जबकि बाइबिल के मैथ्यू 24:36 के अनुसार देवदूत तक यह नहीं जानते हैं । नास्त्रेदम की भविष्यवाणी को समझने के दावे करने वालों ने दावा किया - सन 1999 के 7वें महीने में आकाश से महान शासक लोगों का न्याय करने के लिये आयेगा ।
अमेरिकी लेखक रिचर्ड नून  ने 5 MAY 2000 के लिये दावा किया था - उस दिन भयानक तबाही मचेगी । अण्टार्कटिका में 3 मील मोटी बर्फ जमेगी । स्वर्गस्थ ग्रह नक्षत्र में उथल पुथल होगी ।
गाडस चर्च मिनिस्टर रोनाल्ड वीनलैण्ड ने 2006 में प्रकाशित अपनी पुस्तक - गाडस फाइनल विटनेस में दावा किया - 2008 के अंत तक हजारों करोड़ों लोगों की मृत्यु हो जायेगी ।
चाहे 2012 में दुनिया के खत्म हो जाने की भविष्यवाणी हो । या 2 सूरज और 2 तारों के टकराने की । या फिर ये 13वीं राशि की खोज को लेकर बहस । सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिये ऐसी भविष्यवाणियों । ऐसी बातों पर बहस शुरू होती है । न तो 2012 में दुनिया खत्म हो रही है । न ही 2 सूरज टकराने वाले हैं । और न ही कोई 13वीं राशि मिल गई है ।
2 सूरज या तारों के टकराने की बात भी बचकानी है । यह तो सुपर नोवा super nova ( नया तारा ) की घटना है । जो वैज्ञानिक है । और जिसकी तिथि के बारे में वैज्ञानिकों को भी अभी कुछ पता नहीं है ।
भारत में जिन 5 ग्रंथों के आधार पर भविष्यवाणियां की जाती हैं । वे हैं - 1 जातक पारिजात । 2 यवन जातक । 3 कृष्णमूर्ति पद्धति । 4 लघु पाराशरी । और 5 बृहद जातक ।
विदेशों में ज्योतिष 6 तरह के संबंध मानता है । लुई मैक्नीज के अनुसार ये संबंध हैं - 1 कनजंक्शन । 2 ट्राइन एक्सपेक्ट । 3 स्क्वॉयर एक्सपेक्ट । 4 सेक्सटाइल एक्सपेक्ट । 5 कुइंट सेक्सटाइल एक्सपेक्ट । हमारे यहाँ निरयन पद्धति है । तो वहाँ सायन पद्धति । इसकी वजह से 7 दिन का अंतर आ जाता है । इसकी वजह से ही दोनों जगहों की भविष्यवाणियां मूर्खता पूर्ण होती हैं । सिर्फ कृष्णमूर्ति पद्धति से ही 80% तक परिणाम सही निकलते हैं । क्योंकि उन्होंने कालिदास के आधार को आगे बढ़ाते हुए काम किया था । कालिदास ने अपने ग्रंथ - पूर्व कालामृत और - उत्तर कालामृत में 9 नक्षत्र और 12 राशियां मिलाकर 108 की संख्या बनाई । इस पद्धति को आगे बढ़ाकर कृष्णमूर्ति ने नक्षत्रों की संख्या 27 की । कृष्णमूर्ति को गणेश की सिद्धि प्राप्त थी । लेकिन उनका जो अपना 20% था । उसे वह छिपा गये ।
ज्योतिर्विज्ञान और आयुर्वेद । इन दोनों के विषय में अथर्वा ऋषि ने लिखा है - यह धन कमाने की विद्या नहीं है । इसे अपने सुहृद । अपने बंधु बांधव एवं अपने शासक प्रशासक की रक्षा के लिए इसका प्रयोग करना चाहिए । सामंती युग में हर दरबार में 1 राज ज्योतिषी और राज वैद्य होता था । उसका काम था । अपने राजा की रक्षा करना । अब यह विद्या बाजार में आ गई है । और बिकाऊ हो गई है ।
। जिस माया शिला लेख पर 2012 का ज़िक्र है । उस शिला लेख के 1 नये अध्ययन से पता चलता है कि माया लोगों ने 2012 में पृथ्वी के अंत की नहीं । अपने कैलेंडर के हिसाब से 1 युग के अंत की बात कही थी । यह शिला लेख माया सभ्यता के लोगों ने 1300 साल पहले उकेरा था । माया चिन्हों के जानकार स्वेन ग्रौनेमेयर के अनुसार - यह दिन सृष्टि के दिन की झलक होगा । ग्रौनेमेयर के अनुसार इस दिन माया लोगों के भगवान की वापसी भी होगी । उनका कहना है - बोलोन योक्ते । जो कि माया लोगों के सृष्टि और युद्ध के देवता है । वो माया लोगों के हिसाब से 2012 में वापस लौटेगें । ग्रौनेमेयर कहते हैं कि 2012 में माया लोगो के कैलेण्डर का एक 400 साल का चक्र समाप्त हो रहा है । मेक्सिको के नेशनल इंस्टीटयूट फ़ॉर एनथ्रोपोलॉजिकल हिस्ट्री ने भी इस बात का खंडन करने की कोशिश की है कि माया लोगों के अनुसार सृष्टि में प्रलय आने वाली है । माया लोगों के लिखे हुए 15000 आलेखों में से केवल 2 में साल 2012 का ज़िक्र है । माया सभ्यता पर एक दूसरे विशेषज्ञ एरिक वेलास्क्वेज़ के अनुसार 2012 में प्रलय की बात महज़ बाज़ार की ताकतों का खिलवाड़ है ।
सभी जानकारी साभार विभिन्न इंटरनेट स्रोत से

गुरुवार, मई 31, 2012

मोहन राकेश 1 परिचय

कहानीकार उपन्यासकार मोहन राकेश का जन्म  8 JAN 1925 को अमृतसर में हुआ । और इनकी आकस्मिक मृत्यु 3 JAN 1972 को नई दिल्ली में हुयी । श्री मोहन राकेश नई कहानी आन्दोलन के सशक्त हस्ताक्षर हैं । इन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में M.A किया । तथा जीविकोपार्जन के लिये अध्यापन कार्य किया । मोहन राकेश कुछ वर्षो तक 'सारिका' के संपादक रहे । 'आषाढ़ का एक दिन' 'आधे अधूरे' और 'लहरों के राजहंस' इनके लिखे हुये नाटक हैं । मोहन राकेश जी 'संगीत नाटक अकादमी' सम्मान से सम्मानित हुये । मोहन राकेश हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाटय लेखक और उपन्यासकार हैं । समाज के संवेदनशील व्यक्ति और समय के प्रवाह के प्रवाह से एक अनुभूति क्षण चुनकर उन दोनों के सार्थक सम्बन्ध को खोज निकालना  राकेश की कहानियों की विषय वस्तु है ।
नाटय लेखन - मोहन राकेश को कहानी के बाद सफलता नाटय लेखन के क्षेत्र में मिली । मोहन राकेश को हिन्दी नाटक हिन्दी नाटकों का अग्रदूत भी कह सकते हैं । हिन्दी नाटय साहित्य में भारतेन्दु और प्रसाद के बाद यदि लीक से हटकर कोई नाम उभरता है । तो मोहन राकेश का । हालाँकि बीच में और भी कई नाम आते हैं । जिन्होंने आधुनिक हिन्दी नाटक की विकास यात्रा में महत्त्वपूर्ण पड़ाव तय किए हैं । किन्तु मोहन राकेश का लेखन एक दूसरे ध्रुवान्त पर नज़र आता है । इसलिए ही नहीं कि उन्होंने अच्छे नाटक लिखे । बल्कि इसलिए भी कि उन्होंने हिन्दी नाटक को अँधेरे बन्द कमरों से बाहर निकाला । और उसे युगों के रोमानी ऐन्द्रजालिक सम्मोहक
से उबार कर एक नए दौर के साथ जोड़कर दिखाया । वस्तुतः मोहन राकेश के नाटक केवल हिन्दी के नाटक नहीं हैं । वे हिन्दी में लिखे अवश्य गए हैं । किन्तु वे समकालीन भारतीय नाटय प्रवृत्तियों के द्योतक हैं । उन्होंने हिन्दी नाटक को पहली बार अखिल भारतीय स्तर ही नहीं प्रदान किया । वरन उसके सदियों के अलग थलग प्रवाह को विश्व नाटक की एक सामान्य धारा की ओर भी अग्रसर किया । प्रमुख भारतीय निर्देशकों - इब्राहीम अलकाजी । ओम शिवपुरी । अरविन्द गौड़ । श्यामानन्द जालान । राम गोपाल बजाज । और दिनेश ठाकुर ने मोहन राकेश के नाटको का निर्देशन किया ।
इनकी प्रमुख कृतियों में इनके द्वारा लिखे उपन्यास हैं - अंधेरे बंद कमरे । अन्तराल । न आने वाला कल । और इनके नाटक हैं - अषाढ़ का एक दिन । लहरों के राजहंस । आधे अधूरे । श्री मोहन राकेश जी के कहानी संग्रह हैं  - क्वार्टर तथा अन्य कहानियाँ । पहचान तथा अन्य कहानियाँ । वारिस तथा अन्य कहानियाँ । इनका निबंध संग्रह  - परिवेश है । इनका अनुवाद कार्य - मृच्छकटिक । शाकुंतलम है । और इन्हें
संगीत नाटक अकादमी 1968 सम्मान से सम्मानित किया गया ।

शनिवार, अप्रैल 21, 2012

जब जमीन पर था डायनासोरों का राज

अब से लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पहले । हमारी इस पृथ्वी पर डायनासोरों का एकछत्र राज था । बेहद भारी भरकम और विशालकाय ये अजीव प्राणी कैसे विलुप्त हुये ? इस बारे में कई तरह की अवधारणाएं हैं । लेकिन इनमें जो सच के सबसे करीब लगती है । वह यह कि - एक क्षुद्र ग्रह से पृथ्वी से टकराने के कारण भारी मात्रा में धूल के विशाल बादलों ने तमाम वायुमंडल को ढक लिया । और कई महीनों तक सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक नहीं पहुंचने दिया । सूर्य के प्रकाश के अभाव में सभी वनस्पतियां नष्ट हो गई । और उन पर निर्भर रहने वाले डायनासोर भूख से तड़प तड़प कर मर गये । दुनिया के अनेक हिस्सों में पाये गये उनके जीवाश्म उनकी दास्तान बयान करते हैं । उस समय जिस तरह जमीन पर डायनासोरों का राज था । उसी तरह महासागरों में उनके ही संबंधियों । महाकाय समुद्री सरीसृपों का साम्राज्य था । दरअसल ये सरीसृप किसी समय जमीन पर ही विचरण किया करते थे । लेकिन कई कारणों से फ़िर उन्होंने समुद्र की शरण ले ली । ऐसा करने की मुख्यत: 2 वजह थीं । 1 तो यह कि जमीन पर चलने की तुलना में समुद्र में तैरना सरल था । और 2 - समुद्र में भोजन की प्रचुरता । समय के साथ साथ इनके शरीर में बदलाव आया । और ये समुद्री जीवन के अनुकूल बन गये । लेकिन इसके बावजूद भी इन्हें सांस लेने के लिए कुछ कुछ मिनटों के अंतराल पर पानी की सतह पर आना पड़ता था ।


वैज्ञानिक मानते हैं कि - 6.5 करोड़ वर्ष पहले । जिस दौरान डायनासोर विलुप्त हुए । उसी दौरान समुद्री सरीसृपों का अस्तित्व भी खत्म हो गया । समुद्रों में ऐसा क्या हुआ ? जिससे इन विशालकाय सरीसृपों का अस्तित्व मिट गया । यह अभी भी रहस्य ही है । हाँ इनमें से मगरमच्छ और शार्क ही ऐसे प्राणी हैं । जो तबसे आज तक मौजूद हैं । प्राचीन काल से ही समुद्री सर्पों ( सी - सरपेंट ) के बारे में तरह तरह के किस्से कहानियाँ प्रचलित हैं । माना जाता है कि ऐसे प्राणियों का अस्तित्व आज भी मौजूद है । लॉकनेस तथा अन्य कई झीलों व समुद्रों में इसी तरह के प्राणी को देखे जाने का दावा अक्सर किया भी जाता रहा है । लेकिन वैज्ञानिकों को इस तरह के सरीसृप होने का पुख्ता प्रमाण 1811 मे मिला । जब उन्हें एक चट्टान के भीतर इस तरह के महाकाय

प्राणी का कंकाल मिला । वैज्ञानिक इसे देखकर चकित और भृमित थे । क्योंकि इसका आकार मछली जैसा था । इसके पीछे मीन पक्ष थे । और इसका जबड़ा दांतों से भरा हुआ था । लेकिन यह जमीन पर रेंगने वाले सरीसृपों जैसा लग रहा था । वैज्ञानिकों ने सोच विचार कर इसे - इकथियॉसोर नाम दिया । जिसका अर्थ है । मत्यस्य - सरीसृप । ये लगभग एक ही शारीरिक आकार की प्रजातियों का समूह था । जिनमें से शोनाइ सॉरस 50 फुट तक लंबा होता था । ज्यादातर इकथियॉ सोर छोटे होते थे । और वैज्ञानिकों का विश्वास है कि ये काफी कुछ डॉल्फिन से मिलते जुलते रहे होंगे । बाद में वैज्ञानिकों को समुद्री सरीसृपों के कई जीवाश्म मिले । इनमें जो सबसे ज्यादा चर्चित हुआ । वह था - प्लीसियॉ सोर ।
यह डायनासोर की तरह न होकर तैरने वाला सरीसृप था । ग्रीक शब्द प्लीसियॉ सोर का मतलब - सरीसृपों का 


करीबी होता है । यह भी मछली और सरीसृप का मेल था । प्लीसियॉ सोर का शरीर गोलाकार । लम्बी गर्दन । और लम्बी पूंछ होती थी । इसके 4 मीन पक्ष होते थे । और सिर छोटा होता था । इसके दांत तेज धारदार होते थे । प्लीसियॉ सोर के बारे में मानना है कि - अभी यह विलुप्त नहीं हुआ है । दुनिया भर में प्लीसियॉ सोर जैसे प्राणी को देखने के दावे किए जाते रहे हैं । ऐसे मामलों में 2 चीजें सभी में समान पायी गयी हैं । केवल 1-2 मामलों में ही इसे जमीन पर देखने का दावा किया गया । जबकि अन्य मामलों में इसे समुद्र अथवा झील में ही देखा गया । अक्सर यह विचार प्रकट किया जाता रहा है कि - ये सरीसृप गहरे समुद्र के प्राणी हैं । जो भूमिगत नदियों से यदा कदा झीलों तक पहुंच जाते हैं ।
समुद्री यात्रा करने वाले नाविक अक्सर जिस समुद्री दैत्य या सी मॉन्सटर को देखने की चर्चा करते हैं । या जैसा 


समुद्री प्राणी किस्से कहानियों में वर्णित है । वह प्लीसियॉ सोर से ज्यादा मिलता है । इकथियॉसोर की तरह प्लीसियॉ सोर ऐसे प्राणि वर्ग का जंतु था । जिनकी मूल शारीरिक संरचना एक जैसी थी । इसी श्रेणी के अंतर्गत बहुत से अन्य सरीसृपों का पता चला । जिनमे से 1 था - एलास्मो सॉरस । इसकी लंबाई 45 फुट तथा गर्दन बहुत लंबी होती थी । जिससे यह 25 फुट दूरी पर खड़े शिकार को झटके से खींच लेता था । इसी वर्ग में ट्राइनाकॉ मेरियम भी था । जो प्लीसियॉ सोर से आकार में छोटा था । इसकी गर्दन छोटी लेकिन सिर और मीन पक्ष बड़े होते थे । प्लीसियॉ सोरो में सबसे बड़ा मांस भक्षी था - लियो प्लोरेडन । इसके जो जीवाश्म मिले हैं । उनके आधार पर यह 80 फुट तक लंबा

और 100 टन से भी ज्यादा भारी होता था । यह जमीन पर पाये जाने वाले टी - रेक्स नामक डायनासोर से 20 गुना वजनी था । सबसे बड़े लियो प्लोरेडन का सिर 13 फुट और जबड़ा 10 फुट लंबा पाया गया । यह सर्व भक्षी था । और प्रागैतिहासिक समुद्रों में भोजन श्रृंखला का राजा था । वैज्ञानिक बहुत समय तक इस बात को लेकर असमंजस में थे कि - प्लीसियॉ सोर अपने एक समान 4 मीन पक्षों का क्या उपयोग करते रहे होंगे ।
शुरूआती सिद्धांतों में माना गया कि - ये प्राणी अपने मीन पक्षों का इस्तेमाल चप्पू की तरह खुद को खेने के लिए करते रहे होंगे । लेकिन 1970 में जीव विज्ञानी जेन रॉबिन्सन ने इसके जीवाश्म की गहराई से जांच पड़ताल की । और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि - प्लीसियॉ सोर अपने इन 4 मीन पक्षों का इस्तेमाल पंखों की तरह करते थे । 


और इन्हें ऊपर नीचे फड़फड़ाकर पानी में उड़ा करते थे । समुद्री सरीसृपों में यह बात भी सामान्य थी कि - सबके फेफड़ थे । न कि मछलियों की तरह गलफड़े । इन्हें सांस लेने के लिए कुछ कुछ मिनट के अंतराल पर पानी की सतह पर आना पड़ता था । वर्तमान मे समुद्र में पाए जाने वाले स्तनपायी - ह्वेल । डॉल्फिन आदि भी इसी तरह सांस लेते हैं ।
जिस काल में डायनासोरों को अंत हुआ । उसी दौरान मोसॉसोर के रूप में सबसे उग्र समुद्री सरीसृप अस्तित्व में आया था । ये इकथियॉ सोर के विलुप्त होने के बाद आये । वैज्ञानिक मानते है कि प्राचीन समुद्र की भोजन श्रृंखला पर उन्हीं का दबदबा रहा होगा । ज्यादातर उथले समुद्र में रहने वाले मोसॉसोर

का शरीर लंबा और टयूब के आकार जैसा था । इसकी पूँछ बहुत लंबी होती थी । इनके 4 मीन पक्ष इन्हें स्थिरता देने और गति बढ़ाने में मददगार होते थे । इनके वर्ग में सबसे बड़ा टाइलोसॉरस था । जिसकी लंबाई 50 फुट तक होती थी । समुद्र में पाये जाने वाले सरीसृपों का अंत क्रेटेशियस काल के अंत में हुआ । यह वही समय था । जब डायनासोरों का विलोपन हुआ । उस काल का जो सरीसृप आज भी अस्तित्व में है । वह मगरमच्छ है । हालांकि 50 फुट लंबाई की तुलना में इसकी लंबाई बहुत कम है । लेकिन उसका मूल संरचना वैसी ही है ।

नोम्मो

अफ्रीका में मिलने वाले कई अन्य कबीलों की तरह माली देश में रहने वाले कबीले डोगोन का इतिहास भी तमाम तरह के चौका देने वाले अदभुत किस्सों से भरा पड़ा है । 13वीं से 16वीं शताब्दी के मध्य यह कबीला बंदियागारा पठार पर कभी आकर बस गया था । जो टिम्बकटू से 300 मील दूर दक्षिण में स्थित है ।
आज भी यह लोग सूखी घास और मिट्टी आदि से बनाये गए झोपड़ों में ही रहते हैं । कई शताब्दियाँ बीत जाने के बाद भी इन लोगों के रहन सहन आदि में कोई बदलाव नहीं आया है । और आधुनिकता के नाम तक से यह अपरिचित ही है । यह जरूर है कि आधुनिक सुख सुविधाओं से वंचित रहने के बावजूद भी यह अपने जीवन से बेहद खुश हैं ।
कबीले की मान्यता ने इन्हें पूरी दुनिया में कौतूहल का पात्र बना दिया । इसलिये कई पश्चिमी देशों से लोग यहाँ आए । और उन्होंने इस कबीले के रहस्यों को जानने का प्रयास किया ।

इस कबीले का मानना है कि बाहरी दुनियाँ से आए लोगों यानी पर ग्रह वासियों ने ही इन्हें बोलना तथा रहने की तरीका बतलाया था । इस कबीले के लोग कहते हैं कि - दूर स्थित 1 तारे साइरियस ( जो पृथ्वी से 8.7 प्रकाश वर्ष दूर है ) से ही ये लोग यानी इन्हें बोलना आदि सिखाने वाले आये थे ।
आश्चर्य की बात है कि खगोल विज्ञान से जुड़ी तमाम ऐसी बातें इन कबीले वालों को पता है । वह भी सैकड़ों वर्षों पहले से ही । जो आधुनिक दूरबीन आदि यंत्रों के बिना जान पाना संभव ही नहीं है । ये लोग जानते हैं कि - साइरियस का सहयोगी तारा भी है । जो नंगी आंखों से नहीं दिखता ।
जबकि 1920 के आसपास ही पश्चिम के खगोलविद इस तारे को देख पाये थे । और 1970 में ही इस तारे । जिसे साइरियस - B कहा गया । की तस्वीर खींची जा सकी ।
डोगोन कबीले से जुड़े हर मिथक में ऐसे पर ग्रह वासियों का उल्लेख है । और जो चित्र आदि इन्होंने गुफाओं में बनाये हैं । वे भी ऐसे मिथकों की ओर ही इशारा करते हैं । यहाँ की महिलाओं ने चादरों तक पर ऐसी ही कढ़ाई कर रखी है । आज भी लोग नहीं समझ पाते कि - आखिर इन लोगों को ऐसे तारे के बारे में सैकड़ों वर्ष पहले कैसे पता चल गया । जिसके बारे में 1920 के आसपास ही पता चल पाया था ।
सन 1931 में फ्रांस के 2 मानव विज्ञानियों मार्से ग्रियाऊल तथा जर्मेन डाइटर लेन ने यहाँ आने की सोची । ताकि 


डोगोन कबीले से जुड़े रहस्य को उजागर किया जा सके । दोनों 21 वर्ष तक इस कबीले के साथ रहे । और 1946 में यहाँ के पुजारियों ने मार्से को यहाँ के रहस्य बनाने के लिए आमंत्रित किया । मार्से ने पाया कि सारे कर्म काण्ड काफी पेचीदा हैं । तथा सभी के केन्द्र में उभयचर प्राणी है ।
जिसे यहाँ के लोग कहते हैं - नोमो या नोम्मो । नोम्मो को ही पर ग्रह से आया बताया जाता था । बाद में मार्से को भी इस कबीले ने पुजारी जैसी ही इज्जत दी । लेकिन 1956 में जब मार्से का देहान्त हुआ । तब 5 लाख कबीले वालों ने उनके जनाजे में शिरकत की ।
1950 में इन दोनों मानव विज्ञानियों - मार्से तथा जर्मेन ने जो पता लगाया था । उसे प्रकाशित किया गया । मार्से की मृत्यु के बाद जर्मेन पेरिस आ गयी । दोनों लोगों ने जो कुछ लिखा । उससे यह स्पष्ट हो गया कि इस कबीले को खगोल शास्त्र का अदभुत ज्ञान था । और ये लोग ज्योतिष भी जानते थे । इनका मानना था कि तारे साइरियस के आसपास अन्य तारे चक्कर लगाते हैं । साइरियस - B को इन्होंने नाम दिया है - पो  टोलो । जो भारी दृव्य से बना है । व 50 वर्ष में साइरियस का चक्कर लगाता है ।
बाद में आधुनिक खगोलविदों द्वारा यह बातें सत्य पायी गयी । बिना किसी दूरबीन आदि के डोगोन कबीले ने कैसे यह सब पता कर लिया ?
एक अन्य शोधकर्ता राबर्ट टेम्पल भी डोगोन कबीले की आ॓र आर्किषत हुए । राबर्ट ने जर्मेन से भी बात की ।

और राबर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि - डोगोन कबीला साइरियस - B ही नहीं । सौरमण्डल के कई अन्य रहस्यों को भी जानता था । यहाँ के लोग कहते थे कि - चंद्रमा मरे हुए खून की तरह सूखा व मृत है ।
जब इन्होंने शनि ग्रह का चित्र बनाया । तो उसके आसपास वलय ( रिग ) भी बनाया । इन्हें यह भी पता था कि ग्रह सूर्य के चारों आ॓र चक्कर लगाते हैं । यह जूपिटर के 4 बड़े चंद्रमाओं के बारे में जानते थे । जिन्हें गैलेलियो ने देखा था ।
आश्चर्य की बात है कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है । तथा आकाश में असंख्य तारे हैं । इसका ज्ञान भी इन्हें था । यह सभी कुछ इन्होंने कुछ चित्रों व कथाओं के रूप में संजोकर रखा है ।
यहाँ के पुजारियों का कहना है कि साइरियस सिस्टम के किसी ग्रह से लोग यहाँ आये थे । और उन्होंने ही सारी बातें इन्हें बतायीं । यह कहते हैं कि - नोम्मो 1 अंतरिक्ष यान में बैठ कर यहाँ आया था । वह यान के उतरने की आवाज भी बताते हैं । इनका कहना है कि - जब यान यहाँ उतरा । तो काफी धूल उड़ी ।
आज तक यह पता नहीं चल पाया कि - कैसे यहाँ के लोगों को ग्रहों आदि का इतना सटीक ज्ञान मिला । और क्या सचमुच पर ग्रह वासी यहाँ आये थे ? मामला जो भी हो । आज तक इस रहस्य को सुलझाया नहीं जा सका है ।

सोमवार, अप्रैल 09, 2012

डायन और चुड़ैल

बहुत पुराने समय से ही तमाम लोगों का डायन और चुड़ैल के अस्तित्व पर बेहद विश्वास रहा है । लोगों का यह भी मानना है कि ये डायनें टोना टोटका और काले जादू से आम लोगों का भारी नुकसान करने की क्षमता भी रखती हैं । डायनों की इसी काली करतूत की वजह से उन महिलाओं को भयंकर यातनायें देने के साथ साथ उन्हें जिंदा भी जला दिया गया । जिन पर इस तरह के आरोप थे । यहाँ तक कि जोन ऑफ आर्क को लेकर शीबा की रानी तक पर डायन होने का आरोप लगा । जोन ऑफ आर्क को इसी वजह से जिंदा जला दिया गया था । पुराने समय से लेकर आज तक हर देश में डायनों की खोज की जाती रही है । और यह तरीका भी अपने आप में कई बार आश्चर्यजनक होता है ।


कई शताब्दियों तक अधिकतर ईसाई समाज यही मानता रहा है कि - शैतान कुछ मनुष्यों या जीवों द्वारा अपना काम करवाता है । इस तरह की बातें । लगभग अनपढ़ यूरोप में मध्य पूर्व देशों में धर्म युद्ध के लिए गये । सैनिक ही अपने साथ अधिक लाये । जल्द ही शैतान की ताकत को कम करने या पूरी तरह समाप्त करने के लिए भी कुछ ऐसे कर्म काण्ड होने लगे । कुछ लोगों पर आरोप आया कि वे शैतान के सेवक यानी डायन हैं । यहाँ तक कुछ जानवरों तक पर इस तरह का आरोप लगा । तब इन लोगों व जीवों पर बाकायदा मुकदमा भी चला ।
यूरोप में काथार्स और नाइट टेम्पलर्स की समाप्ति के बाद ऐसे लोगों की खोज शुरू हुई । जो शैतान के सेवक थे । ऐसी महिलाओं को भी पकड़ा गया । जो जादू टोना करने या तंत्र मंत्र में माहिर थी । सच तो यह भी है कि यूरोप में ईसाई धर्म के फैलने से पहले ही डायनों और उन्हें खोजकर सजा देने का काम जारी था । कुछ महिलायें जिन्हें डायन घोषित किया गया था । वे बेचारी प्राकृतिक चिकित्सा । जड़ी बूटियों आदि के द्वारा इलाज  ही करती थी ।
अधिकतर गरीब । बेसहारा औरतों पर ही यह आरोप लगता था । ईसाई लोगों की नजर में इन महिलाओं का काम

गैर ईसाई था । और इसे घोर अपराध के तौर पर माना जाता था । इसलिये इनके अंगूठों को मोड़कर तोड़ दिया जाता । या फ़िर नाखूनों को ही उखाड़ दिया जाता । इंगलैंण्ड के ईस्ट एंजलिया प्रांत में एक समय मैथ्यू हॉपकिस नाम का ऐसा जनरल था । जो स्वयं को डायन ढूंढने वाला जनरल कहता था । उसका दावा था कि शरीर पर निशान विशेष देखकर वह आसानी से डायन होने का पता कर सकता है । शायद ही कोई महिला स्वयं को डायन बताती । पर उसे जरूरत से ज्यादा यातना देने के बाद वह घोर नारकीय यातना से बचने के लिए हाँ कर ही देती ।
डायन या चुड़ैल मानी गई महिलाओं ( या पुरूषों ) को जिंदा जलाने के अलावा फाँसी भी दी जाती । या हाथ पांव

बांधकर पानी में फेंक दिया जाता । लेखक जॉर्ज रिडली स्कॉट के अनुसार - जिस तरह का अत्याचार इन कथित डायनों पर किया गया । उसकी मिसाल भी और कहीं नहीं मिलती । यह जरूरी नहीं था कि डायन करार दिए गए लोगों में केवल महिलायें ही हों । क्योंकि आइसलैंण्ड में ज्यादातर पुरूषों पर ही इस तरह के आरोप लगे । इंग्लैण्ड में कथित डायनों को सूली पर लटकाया जाता । पर यूरोप के अन्य देशों में इन्हें जिंदा जला देने का ही प्रचलन था । अफ्रीका में भी डायनों के भय ने हमेशा से ही डायनों की खोज करवाई । कई बार तो लोगों ने किसी को उसके डायन होने के शक के चलते ही पीट पीटकर मार दिया । लेखक आड्रे रिचर्डस के अनुसार नामूकापी नामक डायन खोजने वाले बेम्बा लोगों के गाँव में एक बार इकठ्ठा हुए । गाँव के मुखिया से सभी के लिये भोजन बनाने को कहा गया । एक एक करके गांव के लोगों से कहा गया कि वे शीशे में अपना मुँह देखें । क्योंकि इन नामूकापी लोगों पर भरोसा है । और वे कहते हैं कि नामूकापी उन्हीं लोगों को डायन बताते हैं । जिन पर गाँव वालों को पहले से ही कुछ शक रहता है ।
इन गोरे लोगों के आ जाने के साथ जो नये रीति रिवाज । पूजा पद्धतियां वगैरह यहाँ आईं । उनसे बचने के लिए इन पर जो दबाव पड़ा । उसने भी जादू टोने आदि को बढ़ावा दिया । दक्षिण अफ्रीका के बन्तू कबीले के लोगों का दावा है कि वे सूँघ कर यह बता सकते हैं कि कोई डायन है या नहीं ।
हमेशा से ही मनुष्य ने अपनी गलतियों और कमजोरियों का दोष दूसरों पर मढ़ा है । अगर किसी साल फसल 


खराब हो जाए । तो दोष किसी टोना टोटका करने वाले पर मढ़ा जाता । और शुरू हो जाती उस डायन की खोज । ज्यादातर बूढ़ी महिलाओं को ही डायन बताया जाता रहा है । क्योंकि यह मान्यता प्रचलित रही है कि शैतान को पता है कि - महिलायें शारीरिक सुख पसंद करती हैं । इसलिये शैतान डायनों से संबंध बना इनसे मनचाहा काम लेता है ।
सैकड़ों वर्षों बाद आज भी भारत सहित तमाम अन्य देशों में भी डायनों की खोज जारी है । कई ऐसे मत व संप्रदाय हैं । जो यह दावा करते हैं कि वे डायनों का ब्रेन वाश कर उन्हें सही रास्ते पर ले आयेंगे । कई बार ऐसे संप्रदाय के लोगों को पकड़ा भी गया । और उन्हें सजायें भी मिलीं । आज भले ही खुले आम डायन या चुड़ैल समझी जाने वाली महिलाओं को सजा न दी जाती हो । पर आज भी ऐसे आरोप कई महिलाओं पर लगाये जाते हैं । व कुछ को सजा के तौर पर यातना झेलनी भी पड़ती है ।
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