शनिवार, अप्रैल 21, 2012

जब जमीन पर था डायनासोरों का राज

अब से लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पहले । हमारी इस पृथ्वी पर डायनासोरों का एकछत्र राज था । बेहद भारी भरकम और विशालकाय ये अजीव प्राणी कैसे विलुप्त हुये ? इस बारे में कई तरह की अवधारणाएं हैं । लेकिन इनमें जो सच के सबसे करीब लगती है । वह यह कि - एक क्षुद्र ग्रह से पृथ्वी से टकराने के कारण भारी मात्रा में धूल के विशाल बादलों ने तमाम वायुमंडल को ढक लिया । और कई महीनों तक सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक नहीं पहुंचने दिया । सूर्य के प्रकाश के अभाव में सभी वनस्पतियां नष्ट हो गई । और उन पर निर्भर रहने वाले डायनासोर भूख से तड़प तड़प कर मर गये । दुनिया के अनेक हिस्सों में पाये गये उनके जीवाश्म उनकी दास्तान बयान करते हैं । उस समय जिस तरह जमीन पर डायनासोरों का राज था । उसी तरह महासागरों में उनके ही संबंधियों । महाकाय समुद्री सरीसृपों का साम्राज्य था । दरअसल ये सरीसृप किसी समय जमीन पर ही विचरण किया करते थे । लेकिन कई कारणों से फ़िर उन्होंने समुद्र की शरण ले ली । ऐसा करने की मुख्यत: 2 वजह थीं । 1 तो यह कि जमीन पर चलने की तुलना में समुद्र में तैरना सरल था । और 2 - समुद्र में भोजन की प्रचुरता । समय के साथ साथ इनके शरीर में बदलाव आया । और ये समुद्री जीवन के अनुकूल बन गये । लेकिन इसके बावजूद भी इन्हें सांस लेने के लिए कुछ कुछ मिनटों के अंतराल पर पानी की सतह पर आना पड़ता था ।


वैज्ञानिक मानते हैं कि - 6.5 करोड़ वर्ष पहले । जिस दौरान डायनासोर विलुप्त हुए । उसी दौरान समुद्री सरीसृपों का अस्तित्व भी खत्म हो गया । समुद्रों में ऐसा क्या हुआ ? जिससे इन विशालकाय सरीसृपों का अस्तित्व मिट गया । यह अभी भी रहस्य ही है । हाँ इनमें से मगरमच्छ और शार्क ही ऐसे प्राणी हैं । जो तबसे आज तक मौजूद हैं । प्राचीन काल से ही समुद्री सर्पों ( सी - सरपेंट ) के बारे में तरह तरह के किस्से कहानियाँ प्रचलित हैं । माना जाता है कि ऐसे प्राणियों का अस्तित्व आज भी मौजूद है । लॉकनेस तथा अन्य कई झीलों व समुद्रों में इसी तरह के प्राणी को देखे जाने का दावा अक्सर किया भी जाता रहा है । लेकिन वैज्ञानिकों को इस तरह के सरीसृप होने का पुख्ता प्रमाण 1811 मे मिला । जब उन्हें एक चट्टान के भीतर इस तरह के महाकाय

प्राणी का कंकाल मिला । वैज्ञानिक इसे देखकर चकित और भृमित थे । क्योंकि इसका आकार मछली जैसा था । इसके पीछे मीन पक्ष थे । और इसका जबड़ा दांतों से भरा हुआ था । लेकिन यह जमीन पर रेंगने वाले सरीसृपों जैसा लग रहा था । वैज्ञानिकों ने सोच विचार कर इसे - इकथियॉसोर नाम दिया । जिसका अर्थ है । मत्यस्य - सरीसृप । ये लगभग एक ही शारीरिक आकार की प्रजातियों का समूह था । जिनमें से शोनाइ सॉरस 50 फुट तक लंबा होता था । ज्यादातर इकथियॉ सोर छोटे होते थे । और वैज्ञानिकों का विश्वास है कि ये काफी कुछ डॉल्फिन से मिलते जुलते रहे होंगे । बाद में वैज्ञानिकों को समुद्री सरीसृपों के कई जीवाश्म मिले । इनमें जो सबसे ज्यादा चर्चित हुआ । वह था - प्लीसियॉ सोर ।
यह डायनासोर की तरह न होकर तैरने वाला सरीसृप था । ग्रीक शब्द प्लीसियॉ सोर का मतलब - सरीसृपों का 


करीबी होता है । यह भी मछली और सरीसृप का मेल था । प्लीसियॉ सोर का शरीर गोलाकार । लम्बी गर्दन । और लम्बी पूंछ होती थी । इसके 4 मीन पक्ष होते थे । और सिर छोटा होता था । इसके दांत तेज धारदार होते थे । प्लीसियॉ सोर के बारे में मानना है कि - अभी यह विलुप्त नहीं हुआ है । दुनिया भर में प्लीसियॉ सोर जैसे प्राणी को देखने के दावे किए जाते रहे हैं । ऐसे मामलों में 2 चीजें सभी में समान पायी गयी हैं । केवल 1-2 मामलों में ही इसे जमीन पर देखने का दावा किया गया । जबकि अन्य मामलों में इसे समुद्र अथवा झील में ही देखा गया । अक्सर यह विचार प्रकट किया जाता रहा है कि - ये सरीसृप गहरे समुद्र के प्राणी हैं । जो भूमिगत नदियों से यदा कदा झीलों तक पहुंच जाते हैं ।
समुद्री यात्रा करने वाले नाविक अक्सर जिस समुद्री दैत्य या सी मॉन्सटर को देखने की चर्चा करते हैं । या जैसा 


समुद्री प्राणी किस्से कहानियों में वर्णित है । वह प्लीसियॉ सोर से ज्यादा मिलता है । इकथियॉसोर की तरह प्लीसियॉ सोर ऐसे प्राणि वर्ग का जंतु था । जिनकी मूल शारीरिक संरचना एक जैसी थी । इसी श्रेणी के अंतर्गत बहुत से अन्य सरीसृपों का पता चला । जिनमे से 1 था - एलास्मो सॉरस । इसकी लंबाई 45 फुट तथा गर्दन बहुत लंबी होती थी । जिससे यह 25 फुट दूरी पर खड़े शिकार को झटके से खींच लेता था । इसी वर्ग में ट्राइनाकॉ मेरियम भी था । जो प्लीसियॉ सोर से आकार में छोटा था । इसकी गर्दन छोटी लेकिन सिर और मीन पक्ष बड़े होते थे । प्लीसियॉ सोरो में सबसे बड़ा मांस भक्षी था - लियो प्लोरेडन । इसके जो जीवाश्म मिले हैं । उनके आधार पर यह 80 फुट तक लंबा

और 100 टन से भी ज्यादा भारी होता था । यह जमीन पर पाये जाने वाले टी - रेक्स नामक डायनासोर से 20 गुना वजनी था । सबसे बड़े लियो प्लोरेडन का सिर 13 फुट और जबड़ा 10 फुट लंबा पाया गया । यह सर्व भक्षी था । और प्रागैतिहासिक समुद्रों में भोजन श्रृंखला का राजा था । वैज्ञानिक बहुत समय तक इस बात को लेकर असमंजस में थे कि - प्लीसियॉ सोर अपने एक समान 4 मीन पक्षों का क्या उपयोग करते रहे होंगे ।
शुरूआती सिद्धांतों में माना गया कि - ये प्राणी अपने मीन पक्षों का इस्तेमाल चप्पू की तरह खुद को खेने के लिए करते रहे होंगे । लेकिन 1970 में जीव विज्ञानी जेन रॉबिन्सन ने इसके जीवाश्म की गहराई से जांच पड़ताल की । और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि - प्लीसियॉ सोर अपने इन 4 मीन पक्षों का इस्तेमाल पंखों की तरह करते थे । 


और इन्हें ऊपर नीचे फड़फड़ाकर पानी में उड़ा करते थे । समुद्री सरीसृपों में यह बात भी सामान्य थी कि - सबके फेफड़ थे । न कि मछलियों की तरह गलफड़े । इन्हें सांस लेने के लिए कुछ कुछ मिनट के अंतराल पर पानी की सतह पर आना पड़ता था । वर्तमान मे समुद्र में पाए जाने वाले स्तनपायी - ह्वेल । डॉल्फिन आदि भी इसी तरह सांस लेते हैं ।
जिस काल में डायनासोरों को अंत हुआ । उसी दौरान मोसॉसोर के रूप में सबसे उग्र समुद्री सरीसृप अस्तित्व में आया था । ये इकथियॉ सोर के विलुप्त होने के बाद आये । वैज्ञानिक मानते है कि प्राचीन समुद्र की भोजन श्रृंखला पर उन्हीं का दबदबा रहा होगा । ज्यादातर उथले समुद्र में रहने वाले मोसॉसोर

का शरीर लंबा और टयूब के आकार जैसा था । इसकी पूँछ बहुत लंबी होती थी । इनके 4 मीन पक्ष इन्हें स्थिरता देने और गति बढ़ाने में मददगार होते थे । इनके वर्ग में सबसे बड़ा टाइलोसॉरस था । जिसकी लंबाई 50 फुट तक होती थी । समुद्र में पाये जाने वाले सरीसृपों का अंत क्रेटेशियस काल के अंत में हुआ । यह वही समय था । जब डायनासोरों का विलोपन हुआ । उस काल का जो सरीसृप आज भी अस्तित्व में है । वह मगरमच्छ है । हालांकि 50 फुट लंबाई की तुलना में इसकी लंबाई बहुत कम है । लेकिन उसका मूल संरचना वैसी ही है ।

नोम्मो

अफ्रीका में मिलने वाले कई अन्य कबीलों की तरह माली देश में रहने वाले कबीले डोगोन का इतिहास भी तमाम तरह के चौका देने वाले अदभुत किस्सों से भरा पड़ा है । 13वीं से 16वीं शताब्दी के मध्य यह कबीला बंदियागारा पठार पर कभी आकर बस गया था । जो टिम्बकटू से 300 मील दूर दक्षिण में स्थित है ।
आज भी यह लोग सूखी घास और मिट्टी आदि से बनाये गए झोपड़ों में ही रहते हैं । कई शताब्दियाँ बीत जाने के बाद भी इन लोगों के रहन सहन आदि में कोई बदलाव नहीं आया है । और आधुनिकता के नाम तक से यह अपरिचित ही है । यह जरूर है कि आधुनिक सुख सुविधाओं से वंचित रहने के बावजूद भी यह अपने जीवन से बेहद खुश हैं ।
कबीले की मान्यता ने इन्हें पूरी दुनिया में कौतूहल का पात्र बना दिया । इसलिये कई पश्चिमी देशों से लोग यहाँ आए । और उन्होंने इस कबीले के रहस्यों को जानने का प्रयास किया ।

इस कबीले का मानना है कि बाहरी दुनियाँ से आए लोगों यानी पर ग्रह वासियों ने ही इन्हें बोलना तथा रहने की तरीका बतलाया था । इस कबीले के लोग कहते हैं कि - दूर स्थित 1 तारे साइरियस ( जो पृथ्वी से 8.7 प्रकाश वर्ष दूर है ) से ही ये लोग यानी इन्हें बोलना आदि सिखाने वाले आये थे ।
आश्चर्य की बात है कि खगोल विज्ञान से जुड़ी तमाम ऐसी बातें इन कबीले वालों को पता है । वह भी सैकड़ों वर्षों पहले से ही । जो आधुनिक दूरबीन आदि यंत्रों के बिना जान पाना संभव ही नहीं है । ये लोग जानते हैं कि - साइरियस का सहयोगी तारा भी है । जो नंगी आंखों से नहीं दिखता ।
जबकि 1920 के आसपास ही पश्चिम के खगोलविद इस तारे को देख पाये थे । और 1970 में ही इस तारे । जिसे साइरियस - B कहा गया । की तस्वीर खींची जा सकी ।
डोगोन कबीले से जुड़े हर मिथक में ऐसे पर ग्रह वासियों का उल्लेख है । और जो चित्र आदि इन्होंने गुफाओं में बनाये हैं । वे भी ऐसे मिथकों की ओर ही इशारा करते हैं । यहाँ की महिलाओं ने चादरों तक पर ऐसी ही कढ़ाई कर रखी है । आज भी लोग नहीं समझ पाते कि - आखिर इन लोगों को ऐसे तारे के बारे में सैकड़ों वर्ष पहले कैसे पता चल गया । जिसके बारे में 1920 के आसपास ही पता चल पाया था ।
सन 1931 में फ्रांस के 2 मानव विज्ञानियों मार्से ग्रियाऊल तथा जर्मेन डाइटर लेन ने यहाँ आने की सोची । ताकि 


डोगोन कबीले से जुड़े रहस्य को उजागर किया जा सके । दोनों 21 वर्ष तक इस कबीले के साथ रहे । और 1946 में यहाँ के पुजारियों ने मार्से को यहाँ के रहस्य बनाने के लिए आमंत्रित किया । मार्से ने पाया कि सारे कर्म काण्ड काफी पेचीदा हैं । तथा सभी के केन्द्र में उभयचर प्राणी है ।
जिसे यहाँ के लोग कहते हैं - नोमो या नोम्मो । नोम्मो को ही पर ग्रह से आया बताया जाता था । बाद में मार्से को भी इस कबीले ने पुजारी जैसी ही इज्जत दी । लेकिन 1956 में जब मार्से का देहान्त हुआ । तब 5 लाख कबीले वालों ने उनके जनाजे में शिरकत की ।
1950 में इन दोनों मानव विज्ञानियों - मार्से तथा जर्मेन ने जो पता लगाया था । उसे प्रकाशित किया गया । मार्से की मृत्यु के बाद जर्मेन पेरिस आ गयी । दोनों लोगों ने जो कुछ लिखा । उससे यह स्पष्ट हो गया कि इस कबीले को खगोल शास्त्र का अदभुत ज्ञान था । और ये लोग ज्योतिष भी जानते थे । इनका मानना था कि तारे साइरियस के आसपास अन्य तारे चक्कर लगाते हैं । साइरियस - B को इन्होंने नाम दिया है - पो  टोलो । जो भारी दृव्य से बना है । व 50 वर्ष में साइरियस का चक्कर लगाता है ।
बाद में आधुनिक खगोलविदों द्वारा यह बातें सत्य पायी गयी । बिना किसी दूरबीन आदि के डोगोन कबीले ने कैसे यह सब पता कर लिया ?
एक अन्य शोधकर्ता राबर्ट टेम्पल भी डोगोन कबीले की आ॓र आर्किषत हुए । राबर्ट ने जर्मेन से भी बात की ।

और राबर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि - डोगोन कबीला साइरियस - B ही नहीं । सौरमण्डल के कई अन्य रहस्यों को भी जानता था । यहाँ के लोग कहते थे कि - चंद्रमा मरे हुए खून की तरह सूखा व मृत है ।
जब इन्होंने शनि ग्रह का चित्र बनाया । तो उसके आसपास वलय ( रिग ) भी बनाया । इन्हें यह भी पता था कि ग्रह सूर्य के चारों आ॓र चक्कर लगाते हैं । यह जूपिटर के 4 बड़े चंद्रमाओं के बारे में जानते थे । जिन्हें गैलेलियो ने देखा था ।
आश्चर्य की बात है कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है । तथा आकाश में असंख्य तारे हैं । इसका ज्ञान भी इन्हें था । यह सभी कुछ इन्होंने कुछ चित्रों व कथाओं के रूप में संजोकर रखा है ।
यहाँ के पुजारियों का कहना है कि साइरियस सिस्टम के किसी ग्रह से लोग यहाँ आये थे । और उन्होंने ही सारी बातें इन्हें बतायीं । यह कहते हैं कि - नोम्मो 1 अंतरिक्ष यान में बैठ कर यहाँ आया था । वह यान के उतरने की आवाज भी बताते हैं । इनका कहना है कि - जब यान यहाँ उतरा । तो काफी धूल उड़ी ।
आज तक यह पता नहीं चल पाया कि - कैसे यहाँ के लोगों को ग्रहों आदि का इतना सटीक ज्ञान मिला । और क्या सचमुच पर ग्रह वासी यहाँ आये थे ? मामला जो भी हो । आज तक इस रहस्य को सुलझाया नहीं जा सका है ।

सोमवार, अप्रैल 09, 2012

डायन और चुड़ैल

बहुत पुराने समय से ही तमाम लोगों का डायन और चुड़ैल के अस्तित्व पर बेहद विश्वास रहा है । लोगों का यह भी मानना है कि ये डायनें टोना टोटका और काले जादू से आम लोगों का भारी नुकसान करने की क्षमता भी रखती हैं । डायनों की इसी काली करतूत की वजह से उन महिलाओं को भयंकर यातनायें देने के साथ साथ उन्हें जिंदा भी जला दिया गया । जिन पर इस तरह के आरोप थे । यहाँ तक कि जोन ऑफ आर्क को लेकर शीबा की रानी तक पर डायन होने का आरोप लगा । जोन ऑफ आर्क को इसी वजह से जिंदा जला दिया गया था । पुराने समय से लेकर आज तक हर देश में डायनों की खोज की जाती रही है । और यह तरीका भी अपने आप में कई बार आश्चर्यजनक होता है ।


कई शताब्दियों तक अधिकतर ईसाई समाज यही मानता रहा है कि - शैतान कुछ मनुष्यों या जीवों द्वारा अपना काम करवाता है । इस तरह की बातें । लगभग अनपढ़ यूरोप में मध्य पूर्व देशों में धर्म युद्ध के लिए गये । सैनिक ही अपने साथ अधिक लाये । जल्द ही शैतान की ताकत को कम करने या पूरी तरह समाप्त करने के लिए भी कुछ ऐसे कर्म काण्ड होने लगे । कुछ लोगों पर आरोप आया कि वे शैतान के सेवक यानी डायन हैं । यहाँ तक कुछ जानवरों तक पर इस तरह का आरोप लगा । तब इन लोगों व जीवों पर बाकायदा मुकदमा भी चला ।
यूरोप में काथार्स और नाइट टेम्पलर्स की समाप्ति के बाद ऐसे लोगों की खोज शुरू हुई । जो शैतान के सेवक थे । ऐसी महिलाओं को भी पकड़ा गया । जो जादू टोना करने या तंत्र मंत्र में माहिर थी । सच तो यह भी है कि यूरोप में ईसाई धर्म के फैलने से पहले ही डायनों और उन्हें खोजकर सजा देने का काम जारी था । कुछ महिलायें जिन्हें डायन घोषित किया गया था । वे बेचारी प्राकृतिक चिकित्सा । जड़ी बूटियों आदि के द्वारा इलाज  ही करती थी ।
अधिकतर गरीब । बेसहारा औरतों पर ही यह आरोप लगता था । ईसाई लोगों की नजर में इन महिलाओं का काम

गैर ईसाई था । और इसे घोर अपराध के तौर पर माना जाता था । इसलिये इनके अंगूठों को मोड़कर तोड़ दिया जाता । या फ़िर नाखूनों को ही उखाड़ दिया जाता । इंगलैंण्ड के ईस्ट एंजलिया प्रांत में एक समय मैथ्यू हॉपकिस नाम का ऐसा जनरल था । जो स्वयं को डायन ढूंढने वाला जनरल कहता था । उसका दावा था कि शरीर पर निशान विशेष देखकर वह आसानी से डायन होने का पता कर सकता है । शायद ही कोई महिला स्वयं को डायन बताती । पर उसे जरूरत से ज्यादा यातना देने के बाद वह घोर नारकीय यातना से बचने के लिए हाँ कर ही देती ।
डायन या चुड़ैल मानी गई महिलाओं ( या पुरूषों ) को जिंदा जलाने के अलावा फाँसी भी दी जाती । या हाथ पांव

बांधकर पानी में फेंक दिया जाता । लेखक जॉर्ज रिडली स्कॉट के अनुसार - जिस तरह का अत्याचार इन कथित डायनों पर किया गया । उसकी मिसाल भी और कहीं नहीं मिलती । यह जरूरी नहीं था कि डायन करार दिए गए लोगों में केवल महिलायें ही हों । क्योंकि आइसलैंण्ड में ज्यादातर पुरूषों पर ही इस तरह के आरोप लगे । इंग्लैण्ड में कथित डायनों को सूली पर लटकाया जाता । पर यूरोप के अन्य देशों में इन्हें जिंदा जला देने का ही प्रचलन था । अफ्रीका में भी डायनों के भय ने हमेशा से ही डायनों की खोज करवाई । कई बार तो लोगों ने किसी को उसके डायन होने के शक के चलते ही पीट पीटकर मार दिया । लेखक आड्रे रिचर्डस के अनुसार नामूकापी नामक डायन खोजने वाले बेम्बा लोगों के गाँव में एक बार इकठ्ठा हुए । गाँव के मुखिया से सभी के लिये भोजन बनाने को कहा गया । एक एक करके गांव के लोगों से कहा गया कि वे शीशे में अपना मुँह देखें । क्योंकि इन नामूकापी लोगों पर भरोसा है । और वे कहते हैं कि नामूकापी उन्हीं लोगों को डायन बताते हैं । जिन पर गाँव वालों को पहले से ही कुछ शक रहता है ।
इन गोरे लोगों के आ जाने के साथ जो नये रीति रिवाज । पूजा पद्धतियां वगैरह यहाँ आईं । उनसे बचने के लिए इन पर जो दबाव पड़ा । उसने भी जादू टोने आदि को बढ़ावा दिया । दक्षिण अफ्रीका के बन्तू कबीले के लोगों का दावा है कि वे सूँघ कर यह बता सकते हैं कि कोई डायन है या नहीं ।
हमेशा से ही मनुष्य ने अपनी गलतियों और कमजोरियों का दोष दूसरों पर मढ़ा है । अगर किसी साल फसल 


खराब हो जाए । तो दोष किसी टोना टोटका करने वाले पर मढ़ा जाता । और शुरू हो जाती उस डायन की खोज । ज्यादातर बूढ़ी महिलाओं को ही डायन बताया जाता रहा है । क्योंकि यह मान्यता प्रचलित रही है कि शैतान को पता है कि - महिलायें शारीरिक सुख पसंद करती हैं । इसलिये शैतान डायनों से संबंध बना इनसे मनचाहा काम लेता है ।
सैकड़ों वर्षों बाद आज भी भारत सहित तमाम अन्य देशों में भी डायनों की खोज जारी है । कई ऐसे मत व संप्रदाय हैं । जो यह दावा करते हैं कि वे डायनों का ब्रेन वाश कर उन्हें सही रास्ते पर ले आयेंगे । कई बार ऐसे संप्रदाय के लोगों को पकड़ा भी गया । और उन्हें सजायें भी मिलीं । आज भले ही खुले आम डायन या चुड़ैल समझी जाने वाली महिलाओं को सजा न दी जाती हो । पर आज भी ऐसे आरोप कई महिलाओं पर लगाये जाते हैं । व कुछ को सजा के तौर पर यातना झेलनी भी पड़ती है ।

भूत प्रेत दुष्ट आत्मायें होती है

बुलगारिया के भूत के विषय में यह भी कहा जाता है कि यह किस्म किस्म के रूप बदलनें में माहिर होता है । भूत कैसे बनते हैं ? इसके विषय में दुनिया में बहुत अलग अलग मान्यतायें है । बुलगारिया में इन्हें अतृप्त आत्मा के रूप में बताया गया है । भूत प्रेत या तो दुष्ट आत्मायें होती है । या ऐसे लोग । जिनकी कोई इच्छा अधूरी रह गयी होती है । कुछ कहानियों में इन्हें अकाल मृत्यु से मरे हुए लोगों के रूप में बताया जाता है । जो पिछली जिंदगी का समय पूरा होने से लेकर । नयी जिदंगी मिलने तक के समय के बीच वाले हिस्से को भूत प्रेत बनकर गुजारते हैं ।
जब किसी आदमी की आत्मा अपना शरीर छोड़ने से इंकार कर देती है । तो उसके मरने पर दफनाये जाने के 40 दिन बाद वह अपनी ही कब्र खोदकर बाहर आ जाते हैं - बुलगारिया के भूत । ये इंसानों का खून पीने वाले भूत होते हैं । पर ये तभी इंसानों का खून पीते हैं । जब उन्हें खाने पीने को न मिले । इनके चलने से चिंगारियां छूटतीं है ।
लोक कथाओं में कल्पना कि्ये गये इस भूत के बारे में बुल्गारिया निवासी मानते हैं कि - इसकी नाक में 1 छेद ही होता है । और कई फुट लम्बी जीभ आगे के सिरे से 2 भागों में फटी रहती है । खाने पीने के मामले में अलग च्वाइस होने के बाद भी यहाँ के निवासी भूतों को बिगड़ैल और ऊधम मचाने वाला मानते हैं ।
कुछ निवासी यह भी मानते हैं कि आमतौर पर खून न पीने वाला घर की तमाम खाने पीने वाली चीजों को भी चट कर जाता है । जिनमें बचाव के लिये गोबर का धब्बा न 


लगाया गया हो । बुलगारिया की डरावनी कहानियों में भूत को उबोर नाम से कहा जाता है ।
कहा जाता है । भूत ऐसे लोग भी बन जाते हैं । जिनकी अंतिम क्रिया दाह कर्म आदि विधिवत ठीक ढ़ंग से नहीं होता । भूतों के विषय में खास बात यह भी है कि भूतों के न होने के संदर्भ में भी तमाम शोध आये हैं । लेकिन भूतों के विषय पर तमाम किताबें लिखने वाले तक 1 भी ऐसा तथ्य नहीं रख पाये । जिसकी वैज्ञानिक पुष्टि हो सकती । इसके बावजूद भी इस दुनियाँ में भूतों पर विश्वास करने वालों की बहुत अधिक तादाद है ।
भूत प्रेतों की कहानियों में कहीं कहीं ऐसा भी वर्णन आता है । जिसमें कहा गया है कि कुछ भूत आपके परिचितों में

से ही किसी एक का वेष धारण करके नाक दबा दबाकर मिमियाते हुए बातें करते हैं । रात के वक्त ये भूत प्रेत आपको रास्ता भी भुला देते हैं । या खांमख्वाह की बकवास जैसी अजीब सी बातें करते हैं ।
- भूतों के विषय में कुछ आम मान्यतायें वैसी ही हैं । जैसी दुनिया के बाकी हिस्सों में सभी जगह पायी जाती हैं ।
- भूतों को अक्सर गन्दे लोग । गन्दी जगह । और अंधेरा बहुत पसंद होता है ।
- भूतों के पास कुछ विशेष अमानवीय शक्तियाँ होती है । जिससे वह क्षण भर में कोई भी भेष धारण कर लेते है । कभी सांड़ बन जाते हैं । कभी धुयें का गुबार । कभी कुछ और ।
- भूत कभी कभी 5-700 साल से लेकर हजारों साल पुराने भी हो सकते हैं ।
- भूतों की परछाईयाँ । सीसे और पानी धूप में छाया पर नहीं बनती ।
- भूत दिन में खण्डहरों । सीलन युक्त । बदबूदार स्थानों में भी आराम करते हैं ।
- भूत से डरना नहीं चाहिये । वह खुद आदमी से डरता है । वास्तव में वह इंसानों से सम्पर्क का इच्छुक होता है ।
- कुछ भूतों की आंखों में सम्मोंहित करने की भी क्षमता होती है । उनकी तरफ देखने के बाद आप अपने वश में नहीं रह सकते । और उनके वश में हो सकते हैं ।
भूत बनने से कैसे बचा जा सकता है ? दुनियाँ में प्रचलित कुछ मान्यतायें ।


पुरातन काल से तमाम कबीलों के लोग इन बातों के प्रति खासे सचेत रहे कि - उनके प्रियजन भूत न बनने पायें । सो कुछ अलग अलग नुस्खे अलग अलग क्षेत्रों में खासे चर्चा में रहे हैं ।
- मरने के बाद यदि आदमी को ठीक ढ़ग से जलाया गाड़ा नहीं जाता । तो ऐसा व्यक्ति भूत बन सकता है ।
- आत्म हत्या करने वाले अतृप्त आत्मा बनते हैं । इसलिए जैसे भी हो सके । आत्महत्या अकाल मृत्यु से बचा जाये ।
- कुछ प्रांतों में बच्चों की कब्रें 3 साल बाद । किशोरों की कब्र 5 साल बाद । और बड़ों की कब्रें 7 साल बाद खोलकर यह सुनिश्चित किया जाता था कि उनके कब्रिस्तानों में भूत तो अपना डेरा नहीं जमाये ।
कहीं कहीं यह परम्परा है कि भूतों से बचने के लिए खिड़कियों में लहसुन रगड़ा जाये । भूतों के प्रकोप से बचाने के लिए जानवरों के शरीर पर लहसुन रगड़नें की भी बहुत अधिक परम्परा है ।

रविवार, अप्रैल 08, 2012

हत्यारा बेटा

अगस्त 1985 रात के 3 बजकर 30 मिनट । एसेक्स ( इंगलैण्ड ) के पूर्व में स्थित गांव टॉलशन्ट डे आर्सी की ओर एक पुलिस गाङी बढ़ रही थी । जिसमें सारजेंट क्रिस्टोफर और कांस्टेबल स्टीफन तथा रॉबिन बैठे थे ।
कुछ ही मिनट पहले 24 वर्षीय किसान जेरेमी बाम्बर ने पुलिस को फोन कर बताया - मैं गांव गोल्ड हैगर में रहता हूँ । अभी मेरे पिता नेविल ने मुझे फोन कर कहा  - तुम्हारी बहन पागल हो गयी है । उसके हाथ में बन्दूक है । और इसके बाद फोन कट गया ।
रास्ते में पुलिस को जेरेमी भी अपनी कार में अपने पिता के गांव टालशन्ट डे आर्सी की आ॓र जाता दिखा । वह बहुत धीमी गति से कार चला रहा था । उसने तीनों पुलिस कर्मियों को बताया - मेरी बहन पागल है । सिरफिरी है । वह नशीले पदार्थों का सेवन भी करती है । उसका नाम शोला है । और वह फैशन मॉडल है ।
बंदूक की बात सुनकर पुलिस ने शार्प शूटर भी बुलवा लिये । सुबह  5 बजे सारे पुलिस कर्मी नेविल के घर के बाहर पोजीशन में खड़े हो गये । मेगा फोन के जरिये पहले उन्होंने घर के भीतर के लोगों से बात करने की कोशिश की । पर घर के भीतर से कोई भी आवाज नहीं आ रही थी । आखिरकार 7 बजकर 45 मिनट पर पुलिस ने घर में भीतर जाने का फैसला किया । पर अन्दर जाने पर बंदूक थामे शोला की बजाय उन्हें भयानक  दृश्य नजर आया ।
नेविल बाम्बर । जो 61 वर्ष के थे । वहाँ रसोई में मृत पड़े थे । उनके शरीर में 8 गोलियां लगी थीं । घावों को देखने से लगता था कि मरने से पहले उन्होंने काफी संघर्ष किया था । फ़िर कुछ ही दूर पर बेडरूम में उन्हें शोला का शव भी मिला । जिसके गले में 2 गोलियां लगी थीं । पास ही 1 बन्दूक भी पड़ी थी 


। उससे कुछ ही दूर पर पुलिस को नेविल की पत्नी जून बाम्बर का शव भी मिला । जिन्हें 7 गोलियां लगी थीं । हद तो तब हो गयी । जब पास के एक अन्य बेडरूम में शोला के दोनों जुड़वां बच्चों निकोलस व डेनियल के शव भी मिले । जिन्हें कई गोलियां लगी थीं ।
उधर जेरेमी लगातार ही रोये जा रहा था । उसने अपनी गर्लफ्रेंड जूली मगफोर्ड को बुला लिया । ताकि उसका दुख कोई बांट सके । बाम्बर परिवार वहाँ एक सम्पन्न और प्रतिष्ठित परिवार था । सभी बेहद धार्मिक भी थे । पर इससे अलग शोला उन्मुक्त विचारों की थी । उसका विवाह भी असफल रहा था । कई बार ड्रग्स की वजह से उसका सिर भी फिर चुका था । कई बार तो वह स्वयं को मरियम समझने लगती । तो कभी खुद को जोन ऑफ ऑर्क भी समझती । तो कभी कभी शैतान की औलाद भी ।
प्रथम दृष्टया पुलिस को यही मामला लगा कि शोला ने ही पागलपन के दौरे में सभी को मार कर खुद भी

आत्महत्या कर ली । पड़ोसियों ने भी किसी अजनबी को भी घर के भीतर या घर से निकलते नहीं देखा था । अपने सारे परिवार की हत्या से विचलित हुआ दुखी जेरेमी और उसकी गर्लफ्रेंड जूली इस घर की बजाय होटल में रहने चले गये । उधर नेविल का भतीजा डेविड अपने पिता राबर्ट के साथ इस घर में आया । ताकि कोई सबूत ढूंढ सके । इन दोनों को कतई विश्वास नहीं था कि शोला ने अपने माता पिता व बच्चों की हत्या को होगी ।
शोला मॉडल थी । और बंदूकों से उसका दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं था । इन दोनों को एक आलमारी में साइलेंसर भी मिला । जो हत्या के लिये प्रयुक्त बंदूक पर फिट हो सकता था । जब उन्होंने यह सब पुलिस को बताया । तो पुलिस ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया । क्योंकि उन्हें तो हत्यारे का पता ( यानी शोला ) पहले दिन ही चल चुका था । पुलिस ने साइलेंसर फारेंसिक विभाग में भेज दिया ।
जल्द ही सारे परिवार को दफना दिया गया । अन्तिम संस्कार के दौरान जेरेमी बहुत रोता रहा । जेरेमी के हाथ पिता की भारी सम्पत्ति यानी 120 हेक्टेयर का व्हाइट हाउस फार्म व 4 36 000 पाऊंड की विशाल धनराशि आयी ।
पर तमाम लोग यही मानते थे कि - हत्या शोला ने नहीं की । और पुलिस ने बिना कोई ठीक से जांच किये अपने निष्कर्ष निकाले हैं । तमाम पत्रकार भी व्हाइट हाउस फार्म आये । और अखबारों ने हर बात को प्रमुखता से छापा । कुछ ने यह भी कहा कि - शोला ने 40 000 पाउंड के नशीले पदार्थ उधार लिये थे । यही पैसा चुकाने के लिए उसने सभी की हत्या की । हालांकि हत्या 


कर स्वयं आत्महत्या कर लेना । व अपने बच्चों को भी मार देने के पीछे क्या तुक था ? यह किसी को समझ नहीं आया । उधर पुलिस ने तमाम फैल रही कहानियों । विशेषकर शोला के बारे में के सम्बन्ध में यही निष्कर्ष निकाला कि सारी कहानियां जेरेमी ने ही लोगों और पुलिस को बतायी है ।
कुछ दिन बाद नेविल के भाई राबर्ट ने पुलिस अधिकारी पीटर सिम्पसन से मुलाकात की । उसने पूरे विश्वास से पीटर को कहा - शोला ऐसा कभी नहीं कर सकती । हाँ लेकिन जेरेमी अवश्य कर सकता है । राबर्ट ने याद करते हुये पुलिस को बताया - जेरेमी जब एक बार फार्म हाऊस से घुसपैठियों को भगाने के लिए बंदूक का लापरवाही से प्रयोग करने पर जोर दे रहा था । तब उसने राबर्ट से कहा था - मैं तो अपने माता पिता पर भी गोली चला सकता हूँ ।
उधर पुलिस ने पहले जेरेमी की दोस्त जूली से फिर पूछताछ करने की सोची । हद तो यह हुई कि जब 7 सितम्बर को जूली स्वयं ही पुलिस स्टेशन पहुंची । और उसने उन सभी को यह कहकर चौंका दिया - जेरेमी कई दिनों से अपने माता पिता की पैसों के लिये हत्या करना चाहता था । पर तब उसका आधा हिस्सा शोला को भी मिलता । और यह बात उसे बिलकुल भी पसंद नहीं थी । जेरेमी अपनी मां को बूढ़ी गाय कहता था । और अपनी मां की गर्दन दबाने के पूर्व अभ्यास में उसने कई चूहों को अपने हाथों से दबाकर मार दिया । जेरेमी पूरे व्हाइट हाऊस फार्म में बिना किसी को दिखे आने व चुपचाप चले जाने के गुप्त रास्तों को भी जानता था ।
हत्या की शाम । जेरेमी जूली को फोन करते हुये  बोला - या तो आज रात । या फिर कभी नहीं ?

और फ़िर रात 3 बजे । यानी पुलिस को फोन करने से ठीक पहले जेरेमी ने फिर जूली को फोन कर कहा - सब ठीक चल रहा है ।
हत्या के बाद जब वह जेरेमी से मिली । तो वह मुस्कुराकर जूली से बोला - मुझे तो एक्टर होना चाहिये ।
जेरेमी ने यह भी कहा कि - उसने एक पूर्व सैनिक से यह हत्यायें करवाई हैं ।
जूली को जेरेमी अब दोस्त नहीं । शैतान का रूप लगा । हद तो तब हो गयी । जब जूली को पता चला कि जेरेमी की कई और लड़कियों से भी दोस्ती है । जूली की गवाही के बाद भी पुलिस के पास जेरेमी के खिलाफ कोई सबूत नहीं था । जेरेमी से पुलिस ने पूछताछ की । पर कुछ हाथ न लगा ।
उधर फारेंसिक विभाग ने साइलेंसर की जांच कर बताया कि साइलेंसर पर खून पाया गया । खून शोला का था । व्हाइट हाउस फार्म में पुलिस को बाथरूम की खिड़की की कुण्डी बाहर से खोलने के सबूत मिले । जल्द ही जेरेमी को 5 लोगों की हत्या के लिए गिरफ्तार कर लिया गया ।
फारेंसिक विशेषज्ञों ने बताया कि साइलेंसर लगी राइफल से शोला स्वयं ट्रिगर नहीं दबा सकती थी । जेरेमी को भी शायद यही लगा । इसलिए उसने साइलेंसर निकालकर छुपा दिया । पूरे मुकदमे के दौरान जेरेमी बिलकुल शांत रहा । फ़िर उसे फ़ैसले में 5 हत्याओं के लिये 5 आजन्म कारावास की सजा सुनाई गयी ।
जज ड्रेक ने कहा - ऐसा पाप कभी सोचा भी नहीं जा सकता ।
सजा सुनकर जेरेमी रोने लगा । और तब लोगों को लगा कि - आज वह सचमुच दुखी है ।

रहस्यमय शव कक्ष

वैसे तो हर घटना के पीछे ही कोई न कोई वैज्ञानिक आधार होता है । लेकिन कभी कभी कई बार ऐसी भी घटना्यें सामने आती हैं । जिसके पीछे कोई प्रत्यक्ष वजह नजर ही नहीं आती । और तब ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे इसके पीछे शायद कोई अदृश्य शक्ति ही हो ।
वेस्ट इंडीज के बार्बाडोस में क्राइस्ट चर्च के पीछे बने विशाल कब्रिस्तान में इसी तरह की एक घटना 19वीं सदी में सबकी जिज्ञासा का केंद्र बनी रही । जहाँ चेज परिवार द्वारा खरीदे गये शव कक्ष । जो चेज वॉल्ट नाम से विख्यात था । में रखे ताबूत 1 नहीं कई कई बार अपनी जगह से इधर उधर खिसके पाये गये । ऐसा लगता था । जैसे किसी ने इन ताबूतों को गुस्से में इधर उधर पटक दिया हो । हर बार ताबूतों को व्यवस्थित ढंग से रखा जाता । लेकिन जब चेज परिवार के किसी सदस्य का शव दफनाने के लिए दुबारा यहां लाया जाता । तो लोग यह देख दंग रह जाते कि ताबूत अपनी जगह पर इधर उधर खिसके हैं । कई शोधकर्ताओं ने इसके पीछे सिर खपाया । लेकिन कोई भी इसका राज पता न कर पाये ।
चेज वॉल्ट नामक शव कक्ष का निर्माण 1724 में जेम्स इलियट नामक संभ्रांत आदमी ने अपने लिए करवाया था । वह बहुत ही धनी व्यक्ति था । इसलिए कुछ अलग दिखने के लिए उसने अपने लि्ये एक लंबे चौड़े शव कक्ष का निर्माण करवाया । यह शव कक्ष 12 फुट गहरा । और 14 फुट लंबा चौड़ा था । यह जमीन के नीचे तहखाने के तौर पर बना था । जिसका कुछ हिस्सा प्रवेश द्वार के रूप में जमीन से 


ऊपर था । और यह विडंबना ही थी कि जिसने अपने लिए इसका निर्माण करवाया था । वह कभी उसमें दफन नहीं किया जा सका । क्योंकि उसकी मौत देश से बाहर रहस्यमय परिस्थितियों में हुई । और उसे वहीं दफना दिया गया ।
इस शव कक्ष में पहला ताबूत 31 जुलाई 1807 में जेम्स के परिवार की थॉमसिना गोडार्ड नामक महिला का रखा गया । और अगले साल ही इस शव कक्ष को बार्बाडोस के एक धनी चेज परिवार द्वारा खरीद लिया गया । हालांकि थॉमस चेज बहुत रसूख वाला आदमी था । लेकिन स्थानीय लोगों में बहुत ही घृणित था । थॉमस चेज का यह दुर्भाग्य ही था कि शव कक्ष खरीदने के 2 महीने बाद ही उसकी छोटी बेटी मेरी एन मारिया की मौत हो गयी । मेरी एन को नये नये खरीदे गये इस शव कक्ष में लकड़ी के बने ताबूत में दफना दिया गया । शव कक्ष में थॉमसिना गोडार्ड का ताबूत पहले से मौजूद था । अब वहां 2 ताबूत थे । इस शव कक्ष को दुबारा खोलने का मौका 5 साल बाद आया । जब थॉमस चेज की दूसरी बेटी डोकार्स चेज भी 1812 में ईश्वर को प्यारी हो गयी । शव कक्ष में पहले से मौजूद 2 ताबूतों की बगल में डोकार्स चेज को भी दफना दिया गया ।
2 बेटियों की मौत के गम ने थॉमस चेज को इस कदर विचलित किया कि 2 महीने बाद वह खुद भी इस दुनिया से विदा हो गया । यह पहला मौका था । जब शव कक्ष में रखी गयी शव पेटिकाओं में हलचल होनी शुरू हुई । और वे अपनी जगह से इधर उधर खिसकी पायी गयी । थॉमस चेज की छोटी बेटी का ताबूत तो उल्टा खड़ा पाया गया । वहीं

डोर्का चेज का ताबूत अपने स्थान से कुछ फीट दूर तिरछा रखा मिला । तब सोचा गया कि संभवत: यह काम चोरों अथवा बदमाशों का हो । थॉमस चेज के ताबूत के साथ ही उसकी दोनों बेटियों के ताबूत को व्यवस्थिति ढंग से रखकर शव कक्ष के प्रवेश द्वार को भारी पत्थर से बंद कर दिया गया ।
चेज परिवार का शव कक्ष अगले मौके पर 25 सितंबर 1816 को खोला गया । जब इस परिवार में सैम्युअल ब्रेस्टा नामक शिशु की लंबी बीमारी के बाद मौत हो गयी । सैम्युअल को दफनाने के लिए जब शव कक्ष खोला गया । तो वहाँ पहुंचे लोग यह देख दंग रह गये कि दूसरी बार भी ताबूत अपनी जगह से इधर उधर खिसके हुए थे । लोग बेहद अचंभित थे कि - ये ताबूत किस तरह अपनी जगह से हट जाते हैं ? जबकि कक्ष के प्रवेश द्वार पर इतना भारी और बड़ा पत्थर था । जिसे 10 आदमी भी मुश्किल से ही हिला पाते थे । पहले की तरह इस बार भी ताबूतों को सही ढंग से रखा गया । और प्रवेश द्वार को ठीक से सील बंद कर दिया गया । 17 जुलाई 1819 को जब चेज परिवार के एक बुजुर्ग सदस्य को दफनाने के लिए

शव कक्ष को फ़िर से खोला गया । तो लोग यह देख कर दहशत में आ गये कि सील बंद होने के बाद भी शव कक्ष में ताबूत अपनी जगह से बेतरतीबी से इधर उधर पड़े थे ।
अब तक यह रहस्यमय घटना स्थानीय क्षेत्र के अलावा आसपास के इलाकों में भी चर्चा का विषय बन गयी थी । यहाँ तक कि बार्बाडोस के गवर्नर लॉर्ड कंबरमेट भी इस घटना से बेहद अचंभित थे । और वे खुद अपनी आंखों से शव कक्ष में बेतरतीब पड़े ताबूतों को देख चुके थे । इस घटना की सच्चाई का पता लगाने के लिए गवर्नर तथा चेज परिवार के सदस्यों ने शव कक्ष का कई कई बार बारीकी से निरीक्षण किया कि कहीं इसमें कोई गुप्त दरवाजा तो नहीं बना दिया गया । जिससे यहाँ रखे गये ताबूतों से छेड़छाड़ की जाती हो । गवर्नर और उसके स्टाफ की मौजूदगी में शव कक्ष का बारीकी से निरीक्षण किया गया । और इस तरह का कोई गुप्त रास्ता नहीं मिला ।
जांच के लिए शव कक्ष के भीतर और बाहर रेत भी बिखराई गयी । ताकि पैरों के निशानों का पता लग सके । इसके साथ ही उन्होंने शव कक्ष के प्रवेश द्वार को पत्थर से ढक कर उसे मजबूती से सीमेंट से बंद कर दिया । और उस पर सील भी लगा दी । ताकि इससे होने वाली किसी भी तरह की छेड़खानी प्रकाश में आ सके ।
18 अप्रैल 1920 को यह शव कक्ष 8 महीने बाद एक बार फिर गवर्नर की मौजूदगी में बिना किसी को दफनाने के उद्देश्य से खोला गया । गवर्नर ताबूतों के खिसकने की सच्चाई का पता लगाना चाहता था कि आखिर इसकी वजह क्या है ? शव कक्ष का प्रवेश द्वार जिस तरह 8 महीने पहले बंद किया गया था । अभी भी ठीक उसी स्थिति में ही था । उस पर जगह जगह लगी सील यथावत थी । प्रवेश द्वार को तोड़ा गया । और शव कक्ष में उतरकर देखा गया । तो जैसे सबके होश ही उड़ गये । ताबूत न सिर्फ इधर उधर खिसके हुए थे । बल्कि 1 ताबूत एक छोर से दूसरे के ऊपर चढ़ा हुआ था । ऐसा प्रतीत होता था । मानो दोनों ताबूत

लड़ते लड़ते इस स्थिति में आ गये हों । शव कक्ष में बिछायी गयी रेत पर किसी तरह के कोई निशान नहीं थे ।
इस दौरान इस क्षेत्र में न कोई भूकंप आया । न ही बाढ़ । इस सारे प्रकरण में एक बात ऐसी थी । जिस पर सबका ध्यान गया । वह थी कि इस शव कक्ष में गोडार्ड नामक महिला का ताबूत जो सबसे पहले रखा गया था । वह हमेशा अपनी ही जगह पर रहता था । यानी एक ताबूत को छोड़ सभी ताबूत अपनी जगह से खिसके हुए होते । लोगों का मानना था कि संभवत: यह गोडार्ड नामक महिला की अशांत आत्मा है । जो अन्य किसी के ताबूत को अपने साथ सहन नहीं करती । इस वजह से ताबूत उससे दूर खिसके होते हैं । धीरे धीरे इस बारे में तरह तरह के रोमांचक किस्से प्रचलित हो गये ।
आखिरकार चेज परिवार ने इस शव कक्ष से परेशान होकर इसे स्थायी तौर से बंद करने का निश्चय किया । और वहाँ रखे अपने परिवार के सदस्यों के ताबूतों को अन्य जगह दफना दिया । उसके बाद ऐसी कोई घटना तो नहीं घटी । लेकिन यह राज कोई न जान पाया कि आखिर खिसकने वाले ताबूतों के पीछे किसका हाथ था ?

शुक्रवार, अप्रैल 06, 2012

आप इन सब में कहाँ पर हैं ?

आपने किसी खूबसूरत कार को देखा । उसकी पालि‍श को छुआ । उसके रूप आकार को देखा । इससे जो उपजा । वह संवेदन है । उसके बाद विचार का आगमन होता है । जो कहता है - कितना अच्छा हो कि यदि यह मुझे मिल जाये । कितना अच्छा हो कि - मैं इसमें बैठूं । और इसकी सवारी करता हुआ कहीं दूर निकल जाऊँ । तो इस सब में क्या हो रहा है ? विचार दखल देता है । संवेदना को रूप आकार देता है । विचार आपकी संवेदना को वह काल्पनिक छवि देता है । जिसमें आप कार में बैठे । उसकी सवारी कर रहे हैं । इसी क्षण जबकि आपके विचार द्वारा - कार में बैठे होने । सवारी की जाने की । छवि तैयार की जा रही है । एक दूसरा काम भी होता है । वह है - इच्छा का जन्म ।  जब विचार संवेदना को एक आकार । एक छवि दे रहा होता है । तब ही इच्छा भी जन्मती है । संवेदना तो हमारे अस्तित्व । हमारे होने तरीका या उसका एक हिस्सा है । लेकिन हमने इच्छा का दमन । या उस पर जीत हासिल करना । या उसके साथ ही उसकी सभी समस्याओं सहित जीना सीख लिया है । अब यदि आप यह सब समझ गये हैं । बौद्धिक रूप से ही नहीं पर यथार्थतः वास्तविक रूप में कि जब विचार संवदेना को आकार दे रहा होता है । तभी दूसरी ओर इच्छा भी जन्म ले रही होती है । तो अब यह प्रश्न उठता है कि - क्या यह संभव है कि जब हम कार को देखें । और छुएं । जो कि संवेदना है । उस समय समानान्तर रूप से । विचार किसी छवि को न गढे़ । तो इस अंतराल को बनाये रखें । और शुभकामना ये की जा सकती है कि - आप इन सब में कहाँ पर हैं ?
क्या यह हो सकता है कि - संवेदना ही हो । विचार न हो ? प्रश्न है कि क्या कोई ऐसी जगह । एक अंतराल है । जहां पर केवल संवेदन हो । जहां ऐसा ना हो कि विचार आये । और संवेदन पर नियंत्रण कर ले । यही समस्या है ।
क्यों विचार छवि गढ़ता है । और संवेदना पर कब्जा कर लेता है ? क्या यह संभव है कि हम एक सुन्दर शर्ट को देखें । उसे छुएं । महसूस करें । और ठहर जायें । इस अहसास में विचार को ना घुसने दें ? क्या आपने कभी ऐसा कुछ करने की कोशिश की ? जब विचार संवेदना या अहसास के क्षेत्र में आ जाता है । और विचार भी संवेदन ही है । तब विचार संवेदना या अहसास पर काबू कर लेता है । और इच्छा या कामना आरंभ हो जाती है । क्या यह संभव है कि हम केवल देखें । जांचें । सम्पर्क करें । महसूस करें । इसके अलावा और कुछ नहीं हो ?
इस सब में अनुशासन की कोई जगह नहीं है । क्योंकि जब क्षण से आप अनुशासन की शुरूआत करते हैं । यह भी कुछ प्राप्त करने या हो जाने की इच्छा का एक दूसरा ही रूप होता है ।
तो हमें इच्छा को पैदा होते देखना है । उसका आरंभ देखना है कि उन पलों में क्या होता है । आपको शर्ट तुरन्त ही खरीद नहीं लेनी है । पर देखना है कि होता क्या है ? आप उसकी ओर देख सकते हैं । पर हम शर्ट के अतिरिक्त भी

कुछ अन्य में ही आतुर होते हैं । शर्ट किसी आदमी किसी औरत या कोई प्रतिष्ठा पूर्ण स्थिति जिसके कारण कि हमारे पास वह धैर्य पूर्ण शांत समय नहीं है कि हम इन सब बातों की तरफ गौर करें ।
ऐसा क्यों है कि - सभी धर्म । सारे तथाकथित धार्मिक लोग इच्छाओं का दमन करते हैं ? सारी दुनियाँ में साधु । सन्यासी । इच्छाओं को इंकार करते हैं । इसके बावजूद कि - वो उनके भीतर भी उबल रही होती हैं ? कामनाओं की अग्नि जल रही होती है । पर वे उसका दमन कर । या उस इच्छा को किसी चिहन से सम्बद्ध कर । मान्य कर । या किसी व्यक्ति । अथवा छवि । छवि को अपनी इच्छाएं समर्पित कर । इंकार करते हैं । लेकिन इसके बावजूद वह इच्छाएं बनी रहती हैं ।
हम में से बहुत से लोग जब तक कि हम अपनी इच्छाओं के प्रति जागरूक हों । या इनको तृप्त करें । या द्वंद्व में पड़ जायें । यह संघर्ष चलता ही रहता है । यहां हम न तो इनके दमन की वकालत कर रहे हैं । ना इनके सामने समर्पण करने की । ना ही इनका नियंत्रण करने की । क्योंकि यह सब तो सारी दुनियां में हर एक धार्मिक व्यक्ति द्वारा किया ही जा रहा है ।
हमें इन्हें बहुत ही सूक्ष्मता और पास से देखना होगा । ताकि इनके सम्बन्ध में हमारी अपनी एक समझ बनें । यह कैसे उगती हैं । इनकी प्रकृति आदि । इस प्रकार की समझ बनने के उपरांत । इनके बारे में एक सहज आत्म जागरूकता रहे । ताकि कोई बुद्धिमानी प्रकट हो । केवल तब ही सारे संव्यवहार बुद्धिमत्ता पूर्ण सम्पन्न हो सकेंगे । ना कि इच्छाएं ।
अपने ही बारे में सीखने और जानने के लिए नमृता की अत्यंत आवश्यकता होती है । अगर आप यह कहते हुए सीखना चाहते हैं - कि मैं अपने को जानता हूँ ? तो वहीं पर अपने को सीखने जानने की प्रक्रिया का अंत कर रहे हैं । यदि आप यह कहते हैं कि - मुझ में अपने बारे में सीखने जानने के लिए है ही क्या ? क्योंकि मैं जानता हूँ कि - मैं क्या हूं ?  मैं यादों । संकल्पनाओं । अनुभवों । पंरपराओं । और सशर्त ढांचों में ढला अस्तित्व हूं । जो अनन्त विरोधाभासी प्रतिक्रियाएं देता है । तो इस तरह भी आप अपने बारे में सीखना जानना रोक रहे हैं । अपने आपके बारे में जानने समझने के लिए भी विचारणीय विनमृता की जरूरत होती है । तो कभी भी न सोचें कि - आप कुछ 


जानते हैं ? यहीं से अपने आपको शुरू से जाना जा सकता है । और इस दौरान संग्रह प्रवृत्ति को छोड़ दें । क्योंकि जिस क्षण से आप अपने बारे में ही खोज करते हुए सूचनाओं का संग्रह आरंभ करते हैं । उसी क्षण से यही ज्ञान उस खोज का आधार बन जाता है । जिसे आप अपनी ही जांच या सीखना कह रहें हैं । इसलिए जो भी आप सीखते जानते हैं । वो उसी आधार में जुड़ना शुरू हो जाता है । जो कि आप पहले से ही जानते हैं । विनमृता मन की वह अवस्था है । जिसमें संग्रह या इकट्ठा करने की प्रवृत्ति नहीं होती । जिसमें यह कभी नहीं कहा जाता कि - मैं जानता हूं ।
ध्यान यह पता करना है कि - क्या मस्तिष्क या दिमाग को । उसकी सभी गतिविधियों सहित । उसके सभी अनुभवों सहित । पूरी तरह शांत । खामोश किया जा सकता है ? बल पूर्वक नहीं । क्योंकि जब जबर्दस्ती की जाती है । वहां द्वंद्व पैदा होता है ।


स्वत्व । हमारी अपनी सत्ता कहती है - मुझे अद्भुत अनुभव प्राप्त करना है । इसलिए मुझे अपने दिमाग को शांत रखना ही है ।  लेकिन हमारा स्वत्व ऐसा नहीं कर पाता । लेकिन यदि हम जिज्ञासा करें । अवलोकन करें । विचार की सारी गतिविधियों को सुनें । उसकी शर्तों । उसकी अपेक्षाओं । लक्ष्यों । उसके भयों । उसके सुखों को देखें । यह देखें कि - दिमाग किस तरह काम कर रहा है ? तब आप पाएंगे कि - मस्तिष्क असाधारण रूप से शांत है । यह शांति नीरवता नींद नहीं है । अपितु यह अत्यंत सक्रियता है । और इसलिए शांति है । एक बहुत बड़ा डायनेमो । जो अच्छी तरह काम कर रहा हो । वह बमुश्किल बहुत ही कम आवाज करता है । केवल तब जब घर्षण होता है । द्वंद्व होता है । वहीं पर शोर होता है । जे. कृष्णमूर्ति

बुधवार, अप्रैल 04, 2012

क्योंकि वाकई हम कुछ भी नहीं हैं

क्यों कल्पनाएं और सिद्धांत हमारे दिमाग में जड़ें बना लेते हैं ? क्यों हमारे लिए तथ्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण नहीं हो जाते । बजाय संकल्पनाओं के । सिद्धांतों के ? क्यों संकल्पनात्मक । सैद्धांतिक पक्ष तथ्यों की अपेक्षा इतना महत्वपूर्ण हो जाता है । क्या हम तथ्य को नहीं समझ पाते । या हम में इसकी सामर्थ्य ही नहीं है । या हम तथ्य का । सच का सामना करने से डरते हैं ? इसलिए आयडियाज । विचार । संकल्पनाएं । अनुमान तथ्य से पलायन का एक जरिया बन जाते हैं । आप लाख भागें । आप सभी तरह की ऊटपटांग बातें कर लें । पर तथ्य यह है कि - हमीं लोगों में से कई महत्वाकांक्षी है । कई काम वासना में धंसे हुए हैं । तथ्य यह है कि - हमीं में से कई क्रोधी हैं । और इसी तरह के दर्जनों तथ्य । आप इन सबका दमन कर सकते हैं । आप इनकी दिशा बदल इनको चुप करा देते हैं । जो दमन का ही एक अन्य प्रकार है । आप इन पर नियंत्रण भी पा लेते हैं । लेकिन ये सब दमन । नियंत्रित करना । अनुशासन में आ जाना । संकल्पनाओं द्वारा होता है । क्या सिद्धांत संकल्पनाएं । मत । वाद हमारी ऊर्जा को नष्ट नहीं करते ? क्या विचार हमारे मन मस्तिष्क को कुंद नहीं बनाते । आप अनुमान लगाने । दूसरों को उद्धत करने में कुशल हो सकते हैं ? लेकिन एक जड़ मन ही दूसरों को उद्धत करता है ।
यदि आप विपरीत का द्वंद्व एकबारगी ही खत्म कर दें । और तथ्य के साथ जीने लगें । तो आप अपने अन्दर उस ऊर्जा को मुक्त कर देंगे । जो तथ्य का बखूबी सामना कर लेती है । हममें में से बहुत से लोगों के लिए विरोधाभासों का ऐसी विशेष परिधि होती है । जो हमारे मन मस्तिष्क को जकड़े रखती है । हम करना कुछ चाहते हैं । और कर कुछ और ही रहे होते हैं । लेकिन यदि हम उस तथ्य का सामना करें । जो हम करना चाहते हैं । तो विरोधाभास नहीं रहेगा । इसलिए यदि मैं एक बार में ही विरोधाभास के संपूर्ण भाव को खत्म कर दूं । तो मैं मन पूरी तरह उस तथ्य की समझ से वास्ता रखेगा - जो मैं हूं । जो तथ्य है ।
आप ईश्वर में विश्वास करते हैं । और दूसरा कोई नहीं करता । तो आपका ईश्वर में विश्वास करना । और किसी अन्य

का ईश्वर में विश्वास नहीं करना । आप लोगों को एक दूसरे से बांटता है । सारी दुनियां में विश्वास ही हिन्दुत्व । बौद्ध । ईसाईयत । मुस्लिम । और अन्य धर्म सम्प्रदायों में संगठित हुवा हुआ है । और आदमी को आदमी से अलग कर रहा है । बांट रहा है । हम भृम में हैं । और हम सोचते हैं कि - विश्वास के द्वारा हम अपने भृम को दूर कर लेंगे । लेकिन हमारा विश्वास ही भृम पर एक और परत बनकर चढ़ जाता है । लेकिन विश्वास भृम के तथ्य से पलायन मात्र है । यह हमें भृम के तथ्य का सामना करके । उसे समझने में मदद नहीं करता । बल्कि हमें उसी भृम में ले आता है । जिसमें हम अभी हैं । भृम को समझने के लिए विश्वास जरूरी नहीं है । और विश्वास हमारे और हमारी समस्या के बीच एक झीनी चादर का काम करता है । तो धर्म जो कि संगठित विश्वास है । जो हम हैं । हमारे भृम के तथ्य से पलायन मात्र बन जाता है । वह आदमी जो भगवान पर विश्वास करता है । या जो भविष्य में भगवान पर विश्वास करने वाला है । या वो जो अन्य किसी तरह का किसी पर विश्वास रखता है । यह

सब - जो वो है । उस तथ्य से पलायन करना मात्र है । क्या आप उन लोगों को नहीं जानते । जो ईश्वर में विश्वास रखते हैं । पूजा करते हैं । विशेष तरह के मंत्रों और शब्दों का जप करते हैं । और अपनी रोजाना की आम जिन्दगी में दूसरों पर प्रभुत्व जमाते हैं । अत्याचारी हैं । महत्वाकांक्षी हैं । धोखेबाज हैं । बेईमान हैं । क्या ऐसे लोग भगवान को पा सकेंगे ? क्या ऐसे लोग वाकई में भगवान को तलाश रहे हैं ? क्या भगवान शब्दों के दोहराव । जप और विश्वास से मिल जायेगा ? लेकिन कुछ लोग ईश्वर में विश्वास करते हैं । वो भगवान की पूजा करते हैं । वो रोज मन्दिर जाते हैं । और वो वो सब करते हैं । जो - जो वो हैं । उन्हें इस तथ्य से दूर ले जाता है । ऐसे कुछ लोग आप सोचते हैं । सम्माननीय हैं । क्योंकि खुद आप भी तो यही हैं ना ।
कोई हमारी खुशामद करता है । हमें अपमानित या दुखी करता है । या हमें चोट पहुंचाता है । या प्यार जताता है । तो इन सब बातों को हम संग्रह क्यों कर लेते हैं ? इन अनुभवों को ढेर और इनकी प्रतिक्रियाओं के अलावा हम क्या हैं ? हम कुछ भी नहीं हैं । अगर हमारा कोई नाम ना हो । किसी से जुड़ाव ना हो । कोई विश्वास या मत ना हो । यह ना कुछ होने का भय ही हमें बाध्य करता है कि - हम इन सब तरह के अनुभवों को इकट्ठा करें । संग्रह करें । और यह भय ही चाहे वो जाने में हो या अनजाने में । यह भय ही है । जो हमारी एकत्र करने ।  संग्रह करने की गतिविधियों के बाद हमें अन्दर ही अन्दर तोड़ने । विघटन और हमारे विनाश के कगार पर ले आता है ।
यदि हम इस भय के सच के बारे में जान सकें । तो यह सत्य ही हमें इस भय से मुक्त करता है । ना कि किसी भय से मुक्त होने के उद्देश्य से लिया गया कोई संकल्प । क्योंकि वाकई हम कुछ भी नहीं हैं । हमारा नाम और पद हो 


सकता है । हमारी संपत्ति और बैंक में खाता हो सकता है । हो सकता है । आपके पास ताकत हो । और आप प्रसिद्ध भी हों । लेकिन इन सब सुरक्षा उपायों के बावजूद हम कुछ नहीं हैं । आप इस ना कुछ होने । खालीपन से अनजान हो सकते हैं । या आप सहज ही नहीं चाहते कि - आप इस ना कुछ पने को जाने । लेकिन ये हमेशा यहीं आपके पास ही अन्दर ही होता है । आप होते ही नहीं । यही होता है । आप इससे बचने के लिए चाहे जो कर लें । आप इससे पलायन के लिए चाहे कितने ही कुटिल उपाय कर लें । कितनी ही वैयक्तिक या सामूहिक हिंसा कर लें । वैयक्तिक या सामूहिक पूजा पाठ सत्संग कर लें । ज्ञान या मनोरंजन के द्वारा इससे बचें । लेकिन जब भी आप सोयें । या जागें । हमारा ना कुछ पना हमेशा यहीं होता है । आप इस ना कुछ होने और इसके भय से केवल तभी संबंध बना सकते हैं । जब आप अपने इससे बचाव या पलायन के प्रति बिना पसंद या ना पसंद के जागरूक रह सकें ।
आप इससे किसी अलग या वैयक्तिक शै की तरह नहीं जुड़े हैं । आप वो अवलोकन कर्ता नहीं हैं । जो इसे एक दूरी से इसे देख रहे हैं । लेकिन आपके बिना । जो कि सोच रहा है । अवलोकन कर रहा है । यह नहीं है । आप और यह 


ना कुछ पना एक ही है । आप और यह ना कुछ होना । एक संयुक्त घटना है । दो अलग अलग प्रकृम नहीं हैं । यदि आप जो कि सोचने वाले हैं । इससे डरे हुए हैं । और इससे ऐसे व्यवहार करते हैं । जैसे यह आपसे कुछ अलग या विपरीत है । तो आपके द्वारा इसके प्रति उठाया गया कोई भी कदम निश्चित ही । अनिवार्यतः आपको भृम और उससे उपजे द्वंद्व और विपदाओं संतापों में ले जायेगा ।
जब यह पता चल जाता है कि - इस ना कुछ पने को को अनुभव करने वाले आप ही हैं । तब वह भय जो कि तभी रहता है । जब कि विचार करने वाला अपने विचार से अलग रहता है । और इसलिए इससे कोई सम्बंध स्थापित करना चाहता है । यह भय पूरी तरह खो जाता है ।  केवल तभी मन के लिए थिर या अचल हो पाना । संभव होता है । और इस शांति  निर्वेद पन में ही परम सत्य होता है ।
जे कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं का निचोड़ उनके सन 1929 में दिये गये वक्तव्य में है । जिसमें उन्होंने कहा -
सच एक पथ रहित भूमि है । यानि सच ऐसा गंतव्य है । जहां तक कि सुनिश्चित बंधे बंधाये मार्ग से नहीं पहुंचा जा 


सकता । इंसान को यदि सच तक पहुंचना है । तो वो ऐसा किसी संगठन । किसी पंथ । किसी परंपरा । या रूढ़ि । संत । महात्मा । पंडे । पुजारी । या रीति रिवाज के अनुसरण से नहीं पहुंच सकता । ना ही किसी दार्शनिक ज्ञान । या मनोवैज्ञानिक तकनीक से ही सच तक पहुंच संभव है । यदि किसी को सच का पता लगाना है । तो उसे खुद को संबंधों के दर्पण में देखना होगा । अपने मन के तत्वों को समझना होगा । अवलोकन करना होगा । ना कि बौद्धिक विश्लेषण । या आत्म विश्लेषण । खयाली चीर फाड़ से यह संभव हो सकेगा । इंसान ने अपनी सुरक्षा की बाड़ के रूप में । अपनी ही धार्मिक । राजनीतिक । वैयक्तिक आदि कई छवियां बना रखी हैं । इंसान के व्यवहार में ये प्रतीकों विचारों और विश्वासों के रूप में प्रकट होती हैं । इन गढ़ी हुई छवियों का बोझ । इंसान की सोच । उसके रिश्ते । और उसकी रोजमर्रा की जिन्दगी पर हावी रहता है । एक दूसरे के बारे में गढ़ी हुई ये छवियां ही इंसानी समस्याओं का कारण हैं । क्योंकि ये एक आदमी को दूसरे से अलग करती हैं । दो व्यक्तियों में अलगाव बनाती हैं । इंसान के मन में पहले से ही 


स्थापित धारणाओं के आधार पर जीवन के प्रति उसका नजरिया आकार लेता है । जो आदमी की चेतना में है । वही उसका पूरा अस्तित्व होता है । किसी व्यक्ति का नाम । पंरपरा और परिवेश से ग्रहण बातें ही उसकी सतही सांस्कृतिक और निजता की पहचान बनते हैं । लेकिन आदमी का अनूठा पन उसकी बाहरी छदम पहचान में नहीं । अपितु अपनी चेतना की सभी तत्वों से पूरी तरह मुक्त हो रहने में निहित है । जो सारी मानवता के लिए एक समान रूप से लागू होता है । इसलिए किसी भी व्यक्ति का सारी मानवता से अलग । किसी प्रकार का अस्तित्व नहीं है ।
मुक्ति कोई प्रतिक्रिया नहीं है । ना ही कोई चुनाव । या पसंद है । यह आदमी का ही दिखावा है कि - क्योंकि वह चुन रहा है । इसलिए वह मुक्त है । मुक्ति विशुद्ध अवलोकन है । बिना किसी दिशा या कारण के । बिना किसी सजा या दंड के । भय या इनाम के । मुक्ति का कोई निहितार्थ या उद्देश्य भी नहीं होता । ऐसा नहीं है कि - जब किसी मनुष्य का पूरा विकास हो जाता है । तो मनुष्यत्व का चरम आ जाता है । तब वो मुक्त हो जाता है । पर उसके अस्तित्व के पहले कदम पर ही मुक्ति भी निहित है । मुक्ति भी होती ही है । अवलोकन में से ही कोई देखना शुरू करता है कि - 


कहां कहां मुक्ति का अभाव है । कमी है । कहां मुक्ति नहीं है ? वो बंध रहा है । मुक्ति हमारे दैनिक जीवन । उसकी गतिविधियों को बिना पसंद नापसंद के । या चयन रहित होकर देखने । या अवधान । ध्यान में रहने में पाई जाती है ।
विचार समय है । विचार अनुभव और ज्ञान से जन्मता है । अनुभव और ज्ञान समय और अतीत से अलग नहीं किये जा सकते । समय इंसान का मनौवैज्ञानिक दुश्मन है । हमारे कर्म ज्ञान पर आधारित होते हैं । यानि समय पर आधारित होते हैं । इसलिए इंसान हमेशा ही अतीत का दास या गुलाम होता है । विचार हमेशा सीमित होता है । उसकी सीमाएं होती हैं । इसलिए हम अनवरत नित्य ही द्वंद्व और संघर्ष में जीते हैं । मनोवैज्ञानिक विकास नाम की कोई चीज नहीं होती । जब आदमी अपने ही विचारों की गतिविधियों के प्रति जाग जाता है । अवधान ध्यान पूर्ण हो जाता है । तो वह देख पाता है कि - विचारक और विचार के बीच में क्या कोई अंतर है भी । वह देख पाता है कि - अवलोकन 


कर्ता और अवलोकन । अनुभव कर्ता और अनुभव के बीच क्या कोई अंतर है भी । वह जान जाता है कि - इनके बीच अंतर । एक भृम है । तब वहां केवल विशुद्ध अवलोकन रह जाता है । जो कि वो अंतर दृष्टि है । जो अतीत की किसी भी तरह की छाया से रहित होती है । यह समयातीत अंतर दृष्टि मन में गहरा । अत्यंतिक मूल बदलाव लाती है ।
पूरी तरह नकार । पूर्ण निषेध ही । सकार का निचोड़ है । जब उन सभी चीजों का निषेध या नकार हो जाता है । जिन्हें कि विचार द्वारा मनौवैज्ञानिक रूप से पैदा किया जाता है । -तब जो शेष रहता है - वह ही प्रेम है । जो परम संवेदना या करूणा भी है । जो परम प्रज्ञा या समझ भी है ।

अँधेरे के पीछे

love you मैं हूँ तो आराम पर । लेकिन आपके बारे में अक्सर सोचती रहती हूँ । जैसे आप मेरी इतनी चिन्ता करते हैं । राजीव जी ! 1 हल्का सा suggestion और था । इसे भी specially note कर लीजिये । जैसे कि मैंने कहा था कि जस्सी वाली कहानी में आप आत्मा के बारे में ये लाइन कहानी के किसी खास मोङ पर ही लिखेंगे । किसी को समझाने के लिये - आत्मा अनादि अजन्मा अमर अजर और अविनाशी है । ये तो जस्सी वाली कहानी में लिखना ही है । साथ में भगवत गीता के दूसरे अध्याय में से भी आत्मा की अमरता के बारे में solid example देनी है । साथ में दूसरी solid example आत्मा की अमरता के बारे में रामायण में से भी जरूर देना । लेकिन आज जो मैं special point लिख कर दे रही हूँ । इसे भी साथ में कहानी के अन्दर fit कर देना । i mean ये line भी लिख देना - आत्मा अनादि और अनन्त है । आत्मा आदि अन्त रहित है । इस special line को भी पहले वाली lines के साथ add कर देना । ये सभी lines जरूर लिखनी हैं । plus 2 solid examples गीता और रामायण में से भी जरूर देनी हैं । 1 बात और इस कहानी में बङिया तरीके से इस महा प्रश्न का जबाब भी सुन्दर तरीके से लिखना ।

महा प्रश्न - मैं असल में कौन हूँ ? answer - वास्तव में मैं 1 आत्मा हूँ । इस जस्सी वाली कहानी में आत्मा की अमरता और मैं वास्तव में कौन हूँ । इन बातों को बङे ही सुन्दर तरीके से clear कर देना । लोगों को
sexy hot entertainment के साथ साथ असल ज्ञान की बात भी easily and clearly पता चल जायेगी । 1 बात और । आप ये भी समझा देना ( जैसे आप कहानी में कहानी के किसी character को ये बात समझा रहे हैं ) कि अलग अलग किस्म की भक्ति के अनुसार शरीर त्यागने के बाद अलग अलग किस्म के souls की गति भी खरबों किस्म की हो जाती है । इस बात के लिये ये lines use करना - हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता and प्रभु की लीला अपरम्पार है । तो राजीव जी ! पहले वाले सभी points के साथ साथ ये वाले points भी most important हैं । इन्हें नजर अन्दाज मत करना । पहले वाले
points और आज वाले points मिला कर जस्सी वाली कहानी लिखो । कोई भी point छोङना मत । आप जब तक जस्सी वाली कहानी पूरी नहीं हो जाती । please इधर उधर फ़ालतू ध्यान मत दो । इससे
time waste होगा । जो भी article लिखना होगा । वो जस्सी वाली कहानी post होने के बाद लिखना ।  वैसे इस

message के reply में आप सुबह तक मुझे message जरूर करना । ये बताने के लिये कि मेरे विचार आत्मा की अमरता के बारे में 100% सही हैं । या नहीं ? कहीं मेरे तथ्य ( जानकारी ) आत्मा के बारे में जो मैं आपको लिख कर भेज रही हूँ । ये सब गलत तो नहीं । please साथ में ये भी बता देना कि जस्सी की कहानी के कितने parts लिखे जा चुके हैं ? जस्सी  वाली कहानी किस date तक post हो जायेगी ? लास्ट बात । जस्सी वाली कहानी इतनी sexy होनी चाहिये कि सबके ....से पानी निकल जाये । और सबकी ....वेट हो जाये  । love you.
my lovely parrot मेरे प्यारे प्यारे तोते । आप मेरे प्यारे तोते हो । ये मैंने आपका नाम रखा है प्यार से । मेरे प्यारे तोते । आप मेरा प्यारा तोता हो । अब मैं प्यार से आपको तोता बुलाया करूँगी । ओये प्यारे तोते । हा हा हा राजीव जी ! आपका मैसेज मैंने अभी ही पढा था । मैं आपको बता दूँ । मेरी तबियत कुछ देर पहले फ़िर थोङा अधिक खराब  हो गयी थी । मुझे डाक्टर के यहाँ दोबारा जाना पङा । वहाँ मुझे ग्लूकोज लगा । इंजेक्शन लगा । मैं कुछ hours के लिये गहरी नींद में चली गयी । पर अभी घर पर हूँ । अभी कोई नहीं है । मैंने सोचा । फ़टाफ़ट आपको मैसेज कर  दूँ । राजीव जी ! मैं आपकी हर बात मानूँगी । लेकिन प्लीज मेरी हालत समझो । मुझे डाक्टर ने पूरा आराम करने की सलाह दी है । फ़िर मैं दोबारा से नार्मल हो जाऊँगी । बस आप 1 week इंतजार कर लो । ठीक होना भी important है ना । अगर मैं मर ही गयी । फ़िर किससे रोमांस करोगे । बाकी 1 पंथ 2 काज ।
1 week तक जस्सी वाली कहानी भी पूरी हो जायेगी । और मैं भी फ़िट हो जाऊँगी । तब तक आप पूरा जोर 


लगाकर कहानी पूरी कर दो । लेकिन मुझे बीच बीच में मैसेज द्वारा बताते रहना कि स्टोरी कहाँ तक पहुँच रही है । साथ में बीच बीच में मेरा हाल चाल भी message द्वारा पूछ लिया करना । किसी sexy से joke के साथ । क्योंकि बीमार  patient को खुश रखना चाहिये । इससे बीमार person जल्दी ठीक हो जाता है । और हाँ  story post करने से 1 दिन पहले मुझे याद से message जरूर कर देना कि आप story post  करने जा रहे हो । क्योंकि मैं  totally  आराम पर ही हूँ । शरीर में कमजोरी बहुत महसूस हो रही है । जस्सी वाली story में प्रसून को सिगरेट पीते हुये जरूर दिखाना । and जो नौकर है । उसको शराब पीते हुये दिखाना । साथ में ये भी दिखाना कि एक दिन वैसे ही रात को खाना खाने से पहले प्रसून भी शराब पीते mood में आकर नौकर के साथ उसके room में 3 peg शराब पी ही लेता है । ठीक है मेरे प्यारे parrot ये points भी story में डाल देना । लेकिन मैंने जो आपका नाम parrot रखा है । इस word को जस्सी वाली कहानी में use मत करना । हाँ इस नाम ( parrot ) को किसी और romantic article या comedy article में use कर सकते हो । लेकिन जस्सी वाली कहानी में use मत करना । उस कहानी  को seriously लेना । आप ऐसा समझो कि जस्सी वाली कहानी 1 most important matter है । ठीक है । मेरे प्यारे प्यारे तोते । bye and love you - आपकी प्यारी तोती ।
जस्सी वाली कहानी में करम कौर ग्रेवाल की शक्ल कटरीना कैफ़ जैसी दिखाना है । कटरीना कैफ़ को अगर बहुत तन्दुरस्त 40 साल की बङे boobs and बङी ....ण्ड वाली औरत show करना हो । जिसका चेहरा भी थोङा सा भारी हो । उसी तरह आप गगन कौर को करीना कपूर जैसा show करना । लेकिन उसे भी तन्दुरस्त show करना । जैसे करीना कपूर बिलकुल नयी नयी आयी थी "refugee" फ़िल्म में । and जो कहानी की main character है "jasmeet

kaur उर्फ़ jassi" उसे आप किसी filmi actress जैसा show मत करना । उसे आप 1 लम्बी तन्दुरस्त sharp नैन नक्शे वाली बहुत गोरी लम्बे वालों वाली लङकी show करना । जिसकी eyes बिलकुल green हैं । बिलकुल बिल्ली जैसी । जस्सी है तो पंजाबी girl लेकिन देखने में 1 अच्छी खासी high quality की "अंग्रेज" यानी विदेशी लङकी लगती है । तो rajeev जी please please please आप इन  3 औरतों का बिलकुल ऐसा ही description इस कहानी में दे देना । जैसा मैंने लिख कर दिया है । जैसे कि माँ को भी बहुत सुन्दर और तन्दुरस्त show करना । लेकिन जस्सी की माँ की eyes बिल्ली यानी green show मत करना । उसकी eyes black show करना । आप ये दिखा देना कि जस्सी की eyes का green colour जस्सी के बाप के eye colour पर चला गया । क्योंकि जस्सी के बाप की eyes भी green यानी अधिक भूरी हैं । ठीक बात भी है । अगर माँ बाप देखने में बङिया होंगे । तभी तो औलाद सुन्दर पैदा होगी । 1 बात और याद रखना ।  करम कौर और गगन कौर की eyes भी black ही show करना । सिर्फ़ जस्सी की eye pure green show करना । जिससे जस्सी इस कहानी में कुछ खास ही नजर आये । ok dear parrot.
तू मेरा तोता । मैं तेरी तोती । बाकी अब क्या कहनननननननननननननननना । ....... parrot जी ! 1 small सी विनती है । सच में बहुत small विनती । इतनी small कि ये समझो । ये विनती monkey की लुली जितनी small है

। बस जस्सी की कहानी में 1 very small incident और डाल देना । ये दिखा देना कि प्रसून को जसमीत कौर उर्फ़ जस्सी के घर के पास 1 सरदार लङका मिलता है । जो जस्सी का पङोसी है । वो भी 20 साल का नौजवान है । वो मन ही मन जस्सी से  प्यार करता है । लेकिन जस्सी उस दाङी वाले पगङी वाले सरदार की तरफ़ देखती तक नहीं । लेकिन वो बेचारा जस्सी के face green eyes sharp nose beautiful lips गोरे  रंग लम्बी height बङे boobs पतली कमर और heavy ...ण्ड की तरग बङी हसरत भरी नजर से देखता रहता है ।
प्रसून उस cold आशिक की नजरों में छुपे  एक तरफ़ा प्यार को पहचान जाता है । लेकिन प्रसून दोस्ती करने के इरादे से उस लङके से बातचीत शुरू करता है । वो लङका प्रसून को अपना नाम हरसिमरन सिंह बताता है । लेकिन कुछ देर की बातचीत के बाद प्रसून को बङी हैरानी होती है कि इस बेबकूफ़ लङके का नाम तो हरसिमरन सिंह है । लेकिन इस बेबकूफ़ को ना तो सिमरन का अर्थ पता है । और ना ही हरि से प्रेम है । लेकिन माँ बाप ने नाम रख दिया - हरिसिमरन सिंह ।
प्रसून को उस लङके की बेबकूफ़ी पर मन ही मन हँसी आती है । क्योंकि उस लङके को पता ही नहीं कि आत्मा नाम की भी कोई चिङिया  होती है । please please please dear parrot इस small incident को भी जस्सी वाली  story में डाल देना । बस ये जस्सी वाली कहानी अच्छी तरह देशी घी लगा कर चुपङ दो । मैं वादा करती हूँ । इस जस्सी वाली कहानी के बाद मैं कोई और बङी फ़रमायश नहीं करूँगी । kiss you on your lips.
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