सोमवार, नवंबर 21, 2011

वल्लभाचार्य कृत चतुःश्लोकी

सर्वदा सर्वभावेन भजनीयो बृजाधिपः । स्वस्यायमेव धर्मो हि नान्यः क्वापि कदाचन ।
सभी समय । सब प्रकार से । बृज के राजा श्रीकृष्ण का ही स्मरण करना चाहिए । केवल यह ही धर्म है । इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं ।
एवं सदा स्वकर्तव्यं स्वयमेव करिष्यति । प्रभुः सर्व समर्थो हि ततो निश्चिन्ततां बृजेत ।
इस प्रकार अपने कर्तव्यों का हमेशा पालन करते रहना चाहिए । प्रभु सर्व समर्थ हैं । इसको ध्यान रखते हुए निश्चिन्तता पूर्वक रहें ।
यदि श्रीगोकुलाधीशो धृतः सर्वात्मना हृदि । ततः किमपरं ब्रूहि लोकिकैर्वैदिकैरपि ।
यदि तुमने सबके आत्मस्वरुप गोकुल के राजा श्रीकृष्ण को अपने ह्रदय में धारण किया हुआ है । फिर क्या उससे बढ़कर कोई और सांसारिक और वैदिक कार्य है ।
अतः सर्वात्मना शश्ववतगोकुलेश्वर पादयोः । स्मरणं भजनं चापि न त्याज्यमिति मे मतिः ।  इति श्री वल्लभाचार्य कृत चतुःश्लोकी सम्पूर्णा ।
अतः सबके आत्मस्वरुप गोकुल के शाश्वत ईश्वर श्रीकृष्ण के चरणों का स्मरण और भजन कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए । ऐसा मेरा ( वल्लभाचार्य का ) विचार है । इस प्रकार श्री वल्लभाचार्य कृत चतुःश्लोकी पूर्ण हुआ ।

कोई टिप्पणी नहीं:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...