सोमवार, नवंबर 21, 2011

इसका ज्ञान मेरे लिए वास्तव में विचित्र है

विचित्र - व्याघ्रीव तिष्ठति जरा परितर्जयन्ती । रोगाश्च शत्रव इव परिहरन्ति देहम ।
आयुः परिस्रवति भिन्नघटादिवाम्भो । लोकस्तथाप्यहितमाचरतीति चित्रम ।
वृद्धावस्था बाघिन की तरह गुर्राती सी सामने खड़ी है । शत्रुओं की भांति रोग शरीर पर प्रहार किये जा रहे हैं । दरार वाले फूटे घड़े से चू रहे पानी की तरह आयु क्षरण हो रहा है । फिर भी यह संसार ( जनसमूह ) अहितकर कार्यों में संलग्न रहता है । इस तथ्य का ज्ञान मेरे लिए वास्तव में विचित्र है ।
साधन पंचकम -
वेदो नित्यमधीयताम तदुदितं कर्म स्वनुष्ठीयतां । तेनेशस्य विधीयतामपचितिकाम्ये मतिस्त्यज्यताम ।
पापौघः परिधूयतां भवसुखे दोषोनुसंधीयतां । आत्मेच्छा व्यवसीयतां निज गृहात्तूर्णं विनिर्गम्यताम ।
वेदों का नियमित अध्ययन करें । उनमें कहे गए कर्मों का पालन करें । उस परम प्रभु के नियमों का पालन करें । व्यर्थ के कर्मों में बुद्धि को न लगायें । समग्र पापों को जला दें । इस संसार के सुखों में छिपे हुए दुखों को देखें । आत्म ज्ञान के लिए प्रयत्नशील रहें । अपने घर की आसक्ति को शीघ्र त्याग दें ।
संगः सत्सु विधीयतां भगवतो भक्ति: दृढाऽऽधीयतां । शान्त्यादिः परिचीयतां दृणतरं कर्माशु संत्यज्यताम ।
सद्विद्वानुपसृप्यतां प्रतिदिनं तत्पादुका सेव्यतां । बृह्मैकाक्षरमर्थ्यतां श्रुतिशिरोवाक्यं समाकर्ण्यताम ।
सज्जनों का साथ करें । प्रभु में भक्ति को दृण करें । शांति आदि गुणों का सेवन करें । कठोर कर्मों का परित्याग करें । सत्य को जानने वाले विद्वानों की शरण लें । प्रतिदिन उनकी चरण पादुकाओं की पूजा करें । बृह्म के एक अक्षर वाले नाम ॐ के अर्थ पर विचार करें । उपनिषदों के महावाक्यों को सुनें ।
वाक्यार्थश्च विचार्यतां श्रुतिशिरःपक्षः समाश्रीयतां । दुस्तर्कात् सुविरम्यतां श्रुतिमतस्तर्कोऽनुसंधीयताम ।
बृह्मस्मीति विभाव्यतामहरहर्गर्वः परित्यज्यताम । देहेऽहंमति रुझ्यतां बुधजनैर्वादः परित्यज्यताम ।
वाक्यों के अर्थ पर विचार करें । श्रुति के प्रधान पक्ष का अनुसरण करें । कुतर्कों से दूर रहें । श्रुति पक्ष के तर्कों का विश्लेषण करें । मैं बृह्म हूँ । ऐसा विचार करते हुए मैं रुपी अभिमान का त्याग करें । मैं शरीर हूँ । इस भाव का त्याग करें । बुद्धिमानों से वाद विवाद न करें ।
क्षुद्व्याधिश्च चिकित्स्यतां प्रतिदिनं भिक्षौषधं भुज्यतां । स्वाद्वन्नं न तु याच्यतां विधिवशात प्राप्तेन संतुष्यताम । शीतोष्णादि विषह्यतां न तु वृथा वाक्यं समुच्चार्यतां । औदासीन्यमभीप्स्यतां जनकृपानैष्ठुर्यमुत्सृज्यताम ।
भूख को रोग समझते हुए प्रतिदिन भिक्षा रूपी औषधि का सेवन करें । स्वाद के लिए अन्न की याचना न करें । भाग्यवश जो भी प्राप्त हो । उसमें ही संतुष्ट रहें । सर्दी गर्मी आदि विषमताओं को सहन करें । व्यर्थ वाक्य न बोलें । निरपेक्षता की इच्छा करें । लोगों की कृपा और निष्ठुरता से दूर रहें ।
एकान्ते सुखमास्यतां परतरे चेतः समाधीयतां । पूर्णात्मा सुसमीक्ष्यतां जगदिदं तद्वाधितं दृश्यताम ।
प्राक्कर्म प्रविलाप्यतां चितिबलान्नाप्युत्तरैः श्लिश्यतां । प्रारब्धं त्विह भुज्यतामथ परबृह्मात्मना स्थीयताम
एकांत के सुख का सेवन करें । परबृह्म में चित्त को लगायें । परबृह्म की खोज करें । इस विश्व को उससे व्याप्त देखें । पूर्व कर्मों का नाश करें । मानसिक बल से भविष्य में आने वाले कर्मों का आलिंगन करें । प्रारब्ध का यहाँ ही भोग करके परबृह्म में स्थित हो जाएँ ।

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