शुक्रवार, जुलाई 23, 2010

रावण कुम्भकरण संवाद । भाग 1

राजीव रामायण
लेखकीय -- देखिये साधु संतो की संगति का असर ।
( सुमरनी । अर्थात किसी किस्से को सुनाने से पहले प्रभु का नाम लेना )

दुनिंया के चक्कर छोडो तुम । दुनिंयां भारी गडबड झाला ।
राम नाम तू गा रे बन्दे । राम नाम अमरत का प्याला ।
राम नाम मुक्ति का मारग । राम नाम सबसे आला ।
राम की टेर लगा रे मनवा । राम नाम अब गा ले ।
राम ई राम पुकार रात दिन । राम से प्रीत लगाय ले ।
राम से बडा राम का नाम । राम से बडा राम का नाम ।
राम ई राम पुकारे शबरी । झूठा बेर था खाया ।
शिला बनी गौतम नारी । ने उद्धार कराया ।
राम धनी है । राम बली है । राम है सबसे न्यारा ।
राम ई राम उचार हमेशा । यही नाम है प्यारा ।
मस्त होय के भोले बाबा । ने जो ध्यान लगाया ।
ता तक थईया ऐसे नाचे । निज का होश भुलाया ।
मौज में आ गये शिव शंकर और गटका भांग का गोला ।
मन मन्दिर में बाजे घन्टा । राम नाम जब बोला ।
राम से बडा राम का नाम । राम से बडा राम का नाम ।
तू गा रे मन मतवाला ।
दुनिंया के चक्कर छोडो तुम । दुनिंयां भारी गडबड झाला ।
****

( ये जगत माया है )
माया को सब खेल है । माया की सब चाल ।
माया फ़ेरे मूढमति । माया को सब जाल ।
माया ही सब भाई बन्द । हैं माया के मात पिता ।
माया के पीछे सब भागें । फ़िर ऊ न पाया उसका पता ।
माया को कोई समझ न पाया । माया दे रयी सबको धता ।
करियो खता माफ़ बाबा की । जो दयी तुमको असलियत बता ।
*****
( कुम्भकरण का परिचय )
महाबली था वैश्रवा सुत । रावण का भाई होता था ।
नाम कुम्भकरण था उसका । जो छह महीने तक सोता था ।
वो ब्रह्मा का वरदानी था । अरे कुम्भकरण महाग्यानी था ।
कैकसी का वीर पठ्ठा । बडे बडन ते हट्टा कट्टा ।
टनों भोजन करने वाला । खायबे में बडा दानी था ।
कुलघाती का वो भाई था ।दुश्मन के लिये कसाई था ।
नीति नियम का पुजारी था । पीने का शौक भी भारी था ।
ऐसा महाबली वो राक्षस । बेफ़िकरा होकर सोता था ।
****
( रावण ने कुम्भकरण को जगाने का आदेश दिया )
क्या फ़ायदा ऐसे भाई का । जो सदा नींद में पडा रहे ।
शत्रु छाती पर चड आये । और भाई पलंग से जडा रहे ।
भाई का मतलब है भाई । विपदा में हमेशा खडा रहे ।
उठकर भाई की सुध ले तू । क्यों निद्रा में पडा रहे ।
हाहाकार मचा दे भैया । ना शत्रु सिर पर चडा रहे ।
भाई की ताकत है भाई । फ़िर क्यूं भाई किसी से डरा रहे ।
जल्द जगाओ कुम्भकरन को । क्यूं महाबली यूं पडा रहे ।
*****
( रावण कुम्भकरण से बोला )
इन दो वनवासी छोरों ने । लंका नगरी को हिला दिया ।
मजबूरन कुम्भकरन मैंने । तुझे बीच नींद में जगा दिया ।
लंका पर संकट है आया । तू गहरी नींद मे सोता था ।
बजे नगाडे रनभूमि में । तुझ पे असर न होता था ।
लंका पे विपदा भारी है । कारन वो जनक दुलारी है ।
कितने जोधा मरे हमारे । अब जोधन को टोटा है ।
तू बेफ़िकरा सोता भाई । क्या जाने क्या होता है ।
भाई है भाई की ताकत । रावन को लगी आस तुझसे ।
कोई बात जो तेरे दिल में हो । भाई दिल खोल कहे मुझसे ।
*****
( कुम्भकरण ने रावण को उत्तर दिया )
तू लाख छुपा ले पाप मगर । दुनिंया को पता चल जायेगा ।
भारत के इतिहास में भाई । तू असुरों की नाक कटायेगा ।
झूठा गुमान कर ना भाई । बदनामी से ना बच पायेगा ।
त्रिलोक विजेता रावन तू । नारी चोर कहायेगा ।
काम वासना की खातिर । वीरन तू । वंश का मेट करायेगा ।
जगदम्बा को हर लाने का । फ़ल तू निश्चय पायेगा ।
वीरन बात मान ले मेरी । बेमतलव मारा जायेगा ।
कालबली को परे तमाचा । जो राम से वैर निभायेगा ।
भाई है कितना ग्यानी तू । फ़िर हुआ क्यों अभिमानी तू ।
ये क्या तेरे मन में आई है । जो तेरी मति बौराई है ।
एक से एक है भौजी मेरी । पर काम ने तेरी बुद्धि फ़ेरी ।
मारी गयी अक्ल अब तेरी । कोई तुझे बचा न पायेगा ।
अपनी जिद की खातिर तू रावन । असुरों का नाम मिटायेगा ।

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