शुक्रवार, जून 01, 2012

21 DEC 2012 महा प्रलय

21 DEC 2012 को पूरी दुनिया काल के गाल में समा जाएगी ?  भविष्यवाणियों अनुमानों और दावों का दौर जारी है । इससे पहले  21 MAY 2011 को प्रलय की भविष्यवाणियां की गई थीं । लेकिन सब कुछ पहले की तरह ही चल रहा है । इन अनुमानों के माध्यम से लोगों में कहीं अनावश्यक भय तो पैदा नहीं किया जा रहा है ?
अंधविश्वास और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित यह भविष्य आकलन कितने सही हैं । यह तो आने वाला समय ही बतायेगा । लेकिन हम रूबरू करा रहे हैं । आपको प्रलय से जुड़ी उन मान्यताओं से । जिनका मानना है कि - इस वर्ष के अंत में दुनिया नष्ट हो जाएगी ।
21 DEC 2012 को प्रलय आने वाली है । माया सभ्यता का कैलेंडर 21 DEC 2012 को समाप्त हो रहा है । इसलिए उस सभ्यता के लोग मानते थे - यह दिन प्रलय का दिन है । नास्त्रेदमस के सूत्रों का विश्लेषण करने वाले भी दावा करते हैं - नास्त्रेदमस ने भी इस दिन को प्रलय का दिन माना है । उनका मानना है - आकाश से गिरेगी 1 विशालकाय उल्का और धरती नष्ट हो जायेगी ।
माया सभ्यता के अंधविश्वास पर हॉलीवुड में 1 फिल्म भी बन चुकी है - प्रलय 2012 । इस फिल्म में दिखाया गया है - 21 DEC 2012 को 1 ग्रह आयेगा । जो पृथ्वी से टकरा्येगा । और प्रलय हो जायेगी । उस ग्रह का नाम है - नीबीरू । नीबीरू सब कुछ तहस नहस कर देगा । और  सब मारे जायेंगे । नीबीरू काफी समय से चर्चा में है । उसे planet X  भी कहा जाता है । हालांकि NASA ऐसे किसी ग्रह का अस्तित्व नहीं मानता ।
नीबीरू नैन्सी लीडर नाम की 1 महिला के दिमाग की उपज है । जो अमेरिका के विस्कांसिन की रहने वाली है । वह कहती है  - उसके मस्तिष्क में 1 प्रतिरोपण है । जिसके जरिए वह जेटा रेटीकुली नामक 1 ग्रह के लोगों के संपर्क में रहती है ।
फ्रांस के भविष्य वक्ता नास्त्रेदमस Nostradamus  1503-1566 ने 16वीं सदी में अपनी भविष्यवाणियों की 1 किताब लिखी - सेंचुरी century ।  इसमें लगभग 100 भविष्यवाणियां सूत्रों के रूप में हैं । इस किताब से पूरे फ्रांस में तहलका मच गया था । बाद में इसे दुनिया की अधिकतर भाषाओं में अनुवाद किया किया ।
उनकी भविष्यवाणियों के जानकार अब तक घटी घटनाओं के बारे में नास्त्रेदमस की सूत्र बद्ध घटनाओं को निकाल कर उसके सत्य होने की घोषणा करते हैं । इस तरह दावा किया जाता है कि उनके द्वारा की गईं कई भविष्यवाणियां सच साबित हुई है । नास्त्रेदमस के आलोचकों का मानना है कि उनके सूत्रों की व्याख्यायें कुछ भी हो सकती है । आलोचकों का कहना है कि व्याख्यायें महज गलत अनुवाद या गलतफहमी का परिणाम हैं ।
माया सभ्यता और धार्मिक धारणा की तरह नास्त्रेदमस ने भी 2012 में धरती के खत्म होने की भविष्यवाणी की है । नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी के विश्लेषकों के अनुसार नास्त्रेदमस ने प्रलय के बारे में बहुत स्पष्ट लिखा है  - मैं देख रहा हूं कि आग का 1 गोला पृथ्वी की ओर बढ़ रहा है । जो धरती से मानव की विलुप्ति का कारण बन सकता है ।
ऐसा कब होगा ? इसके बारे में स्पष्ट नहीं । लेकिन ज्यादातर जानकार 2012 को ऐसा होने की घोषणा करते हैं । ऐसा तब होगा । जबकि तृतीय विश्व युद्ध 3rd world war चल रहा होगा । तब आकाश से 1 उल्का पिंड हिंद महा 
सागर में गिरेगा । और समुद्र का सारा पानी धरती पर फैल जायेगा । जिसके कारण धरती के अधिकांश राष्ट्र डूब जाएंगे । या इस भयानक टक्कर के कारण धरती अपनी धूरी से ही हट जाये । और अंधकार में समा जा्ये ।
नास्त्रेदमस तृ‍‍तीय विश्व युद्ध 3rd world war के बारे में भी भविष्यवाणी करते हैं  - 1 पनडुब्बी में तमाम हथियार और दस्तावेज लेकर वह व्यक्ति इटली के तट पर पहुंचेगा । और युद्ध शुरू करेगा । उसका काफिला बहुत दूर से इतालवी तट तक आयेगा ।
विज्ञान भी मानता है । ज्यादातर वैज्ञानिक मानते हैं कि पृथ्वी पर प्रलय अर्थात जीवन का विनाश तो सिर्फ - सूर्य । उल्का पिंड । या सुपर वॉल्कैनो ( महा ज्वालामुखी ) ही कर सकते हैं । कुछ वैज्ञानिक कहते हैं  - सुपर वॉल्कैनो पृथ्वी से संपूर्ण जीवन का विनाश करने में सक्षम नहीं हैं । क्योंकि कितना भी बड़ा ज्वालामुखी होगा । वह अधिकतम 70 % पृथ्वी को ही नुकसान पहुंचा सकता है ।
अब जहाँ तक उल्का पिंड का सवाल है । तो अभी तक खगोल शास्त्रियों को पृथ्वी के घूर्णन कक्षा में ऐसा कोई उल्का पिंड नहीं दिखा । जो पृथ्वी को प्रलय के मुहाने पर ला दे । फिर भी इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि - यदि कोई भयानक विशालकाय उल्का पिंड पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के चंगुल में फंस जाये । तो तबाही निश्चित है ।
हिंदू धर्म में बृह्मा को जन्म ( सृष्टि कर्ता ) देने वाला । विष्णु को पालन कर्ता । और शिव को मृत्यु ( संहार कर्ता )  देने वाला कहा  है । जबकि सूर्य में यह तीनों ही गुण है । सूर्य को वेदों में जगत की आत्मा कहा  है । सूर्य से जहाँ जीवन की उत्पत्ति मानी गई है । वहीं सूर्य के बगैर जीवन नहीं चल सकता । और इसी सूर्य की वजह से धरती पर तबाही भी होती है । विज्ञान मानता है ‍ - प्रत्येक 11 वर्ष में सूर्य पर हजारों लाखों परमाणुओं जितना विस्फोट होता है । वेद भी कहते हैं । इसीलिए प्रत्येक 11 वर्ष बाद सिंहस्थ का आयोजन होता है ।
वैज्ञानिक सूर्य पर लगातार शोध करते आये हैं । उनका कहना है  - सूर्य पर हो रही गतिविधियां चिंता का विषय है । आशंका है  - कहीं भयानक सौर तूफान धरती पर किसी भी तरह की तबाही के लिए जिम्मेदार हो सकता है । यह भी कि सूर्य जब अपनी चरम अवस्था में पहुँचेगा । तभी वह पृथ्वी पर प्रलय ला सकने की स्थिति में होगा । दरअसल सूर्य 1 तारा है । हर तारे की मौत होना तय है । जब सूर्य ही नहीं रहेगा । तो धरती का अस्तित्व कैसे बरकरार रहेगा ?
हालांकि सूर्य को इस अवस्था में आने में अभी अरबों वर्ष लगेंगे । आशंका जताई जाती है  - 2012 में सूर्य अपने चरम पर होगा । और पृथ्वी झुलस जाएगी । इस दौरान सूर्य अपने चरम पर होगा । लेकिन यह हर 11 वर्ष में होने वाली सतत प्रक्रिया है । जिसे इलेवन इयर साइकल के नाम से जाना जाता है ।
यह कोई नहीं जानता  - पृथ्वी पर जीवन का अंत कैसे होगा ? लेकिन वैज्ञानिकों का दावा है । इससे पहले कि 5 अरब वर्ष में सूर्य पृथ्वी को जला डाले । किसी ग्रह जैसे बुध या मंगल ग्रह के साथ टक्कर से हमारा ग्रह नष्ट हो सकता है । हालांकि बहुत से विचारक मानते हैं  - धर्म और विज्ञान की बातें कभी स्थाई महत्व की नहीं होती है । यह सब अनुमान और कल्पनायें हैं
धधकते सूर्य की सौर आंधी से निकली भू चुंबकीय ज्वाला की लपटें पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से टकराने वाली हैं । जिससे हवाई यातायात । बिजली ग्रिड । उपग्रह सेवाएं प्रभावित होने की आशंका है ।
अमेरिकी अंतरिक्ष मौसम अनुमान केंद्र ने यह जानकारी देते हुये बताया - रविवार को सूर्य से 2000 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से ज्वाला की लपटें निकली थीं । जो आमतौर पर सूर्य से निकलने वाली लपटों की रफ्तार से 5 गुना ज्यादा है ।
सेंटर के टेरी ओंसागेर ने कोलाराडो स्थित बोल्डर से कहा - जब ये कण पृथ्वी से टकराते हैं । तो वे हमारे सुरक्षा कवच को भेद कर चुंबकीय क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं । और इस भीषण ऊर्जा से पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में 
जबरदस्त उतार चढ़ाव होता है । और सब कुछ गड्डमड्ड हो जाता है ।
यह ऊर्जा एयर लाइनों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली उच्च आवृत्ति वाली रेडियो संचार प्रणाली को बाधित कर देती है । एयर लाइनें - उत्तरी अमेरिका । योरोप । और एशिया के बीच उत्तरी ध्रुव के पास नौ वहन के लिए इस संचार प्रणाली का उपयोग करती हैं । इसलिये विमानों के कुछ मार्गों में बदलाव करना पड़ेगा । सूर्य की इन लपटों से बिजली ग्रिड और उपग्रह सेवाएं बाधित होने की आशंका है ।
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर रह रहे वैज्ञानिकों को सौर विकिरण के दुष्प्रभाव से अपने बचाव के लिए यान के विशेष हिस्से में जाने की सलाह दी गई है । केंद्र ने बताया कि इस सौर तूफान की तीवृता औसत से तेज हो सकती है ।
मध्य अमेरिकी देशों की महिमा मंडित माया सभ्यता लगभग 3000 वर्षों तक चली थी । स्पेनी उपनिवेश वादियों के हमलों के साथ 16वीं सदी में उसका पतन हो गया ।  21 DEC 2012 को उसके कैलेंडर के 400 वर्षों से चल रहे 13वें काल चक्र का भी अंत हो जाएगा । लेकिन हर गाहे बगाहे दुनिया के अंत की भविष्यवाणी करने वाले प्रलय वादी पोंगा पंथी और मतलब परस्त मीडिया मास्टर ढिंढोरा पीटने में जुटे हुए हैं  - माया कैलेंडर के साथ ही दुनिया का भी अंत हो जाएगा । दुनिया का अंत तो इस बार भी नहीं होगा । हाँ इन प्रलय वादियों को अगले प्रलय के नए बहकावे की 1 नई तारीख जरूर खोजनी होगी ।
FEB के मध्य में इस बार जर्मनी सहित पूरे यूरोप में अपूर्व ठंड से हाहाकार मचा हुआ था । सैकड़ों लोग मर गये । लग रहा था । यदि सचमुच कोई प्रलय होगी । तो इस बार वह जरूर हिम युग के रूप में होगी । ठीक इसी समय 10 से 12 FEB तक जर्मनी की पुरानी राजधानी बॉन के विश्वविद्यालय में दुनिया भर के ऐसे विद्वानों और वैज्ञानिकों का जमघट लगा था । जो मध्य अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता के शोधी हैं ।
21 DEC 2012 को दुनिया के कथित अंत की माया भविष्यवाणी ही उनके बीच चर्चा परिचर्चा का मुख्य विषय था । उन्होंने माया सभ्यता पर प्रकाश डालने वाले - पुरातात्विक अवशेषों । शिला लेखों । चित्रों ।  पांडुलिपियों को छान मारा है । और जानते हैं  - उनमें दुनिया के कथित अंत के बारे में क्या कहा गया है ?
माया काल गणना चलती रहेगी - माया लोगों के लिए 21 DEC 2012 के साथ ही काल गणना का अंत नहीं हो जाता । बॉन विश्वविद्यालय में प्राचीन अमेरिकी सभ्यताओं के प्रोफेसर डॉ. निकोलाई ग्रूबे ने कहा - माया कैलेंडर इसके बाद भी चलता रहेगा ।
माया कैलेंडर को लेकर मचे कोहराम की तुलना उन्होंने 1 jan 2000 के दिन शताब्दी और सहस्त्राब्दि के परिवर्तन को लेकर फैली आशंकाओं और भ्रांतियो के साथ की - वह मात्र 1 काल चक्र का अंत था । जिसके साथ 1 नई सहस्त्राब्दि शुरू हुई । ठीक इसी तरह  21 DEC 2012 के दिन माया सभ्यता का 400 वर्षों वाला चालू काल चक्र पूरा होगा । और साथ ही 1 नया काल चक्र शुरू होगा ।
प्रो. ग्रूबे का कहना था - अधकचरे जानकारों और निहित स्वार्थी लोगों ने माया कैलेंडर के बारे में जानबूझ कर ढेर सारे भृम फैला रखे हैं । कुछ लोग तो खुद ही पैगंबर या भविष्य वक्ता बन गये हैं । और कुछ दूसरे गूढ़ ज्ञान के ज्ञाता । सभी अपनी अपनी डफली अपना अपना राग अलाप रहे हैं । आम आदमी को उल्लू बना कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं । सनसनी भक्त मीडिया और इंटरनेट के रसिया बची खुची कसर पूरी कर रहे हैं ।
900 से 300 ईसा पूर्व के बीच अपने स्वर्ण युग वाली लगभग 3000 वर्षों तक चली माया सभ्यता के लोग आज के मेक्सिको के दक्षिण पूर्वी यूकातान प्रायद्वीप । बेलीज । गुआटेमाला और होंडूरास में रहा करते थे । उनकी अपनी भाषा और अपनी चित्र लिपि थी । 1511 में स्पेनी उपनिवेश वादियों के यूकातान पहुंचने के साथ माया सभ्यता का पतन शुरू हुआ ।
कुछ तो महामारियों । सूखे और अकाल के कारण । पर मुख्य रूप से स्पेनी आक्रमणकारियों और ईसाई धर्म प्रचारकों के कारण माया वंशियों की संख्या तेजी से घटने लगी । स्पेनियों ने उनके देवालयों । पुस्तकालयों और सांस्कृतिक स्मारकों की इस तरह होली जलाई । या उन्हें तहस नहस कर दिया कि यथासंभव कुछ भी न बचे । तब भी माया जाति पूरी तरह खत्म नहीं हुयी । मध्य अमेरिका के इन देशों में अब भी अनुमानतः 70 लाख माया वंशी इंडियन रहते हैं ।
 जर्मनी में हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के माया शोधी लार्स फ्रुइजोर्गे का कहना है - विदेशियों ने खींचा माया वंशियों का ध्यान । वे बेखबर थे । अपने पूर्वजों के कैलेंडर को लेकर । जिसके अनुसार इस समय सन 5125 चल रहा है । कोई हो हल्ला मच सकता है । उनका ध्यान इस तरफ उन विदेशी पर्यटकों की बढ़ती हुई भीड़ के कारण गया । जो अचानक माया कैलेंडर में भारी रुचि लेने लगे । अब वे भी बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं । सभा सम्मेलनों और कर्म कांडी अनुष्ठानों के द्वारा अपनी तरफ दुनिया का ध्यान खींचने का मौका नहीं चूकना चाहते ।
बॉन विश्वविद्यालय के मध्य अमेरिका अध्ययन संस्थान द्वारा आयोजित सम्मेलन और प्रदर्शनी को भी 1 ऐसा ही आयोजन कहा जा सकता है । माया कैलेंडर के बारे में फैलाई जा रही अफवाहों के बहाने से इस गौरवशाली सभ्यता की तरफ लोगों का ध्यान खींचने और उसके पठन पाठन के प्रति रुचि जगाने का वह 1 विज्ञान सम्मत प्रयास था । संस्थान के प्रमुख प्रो. निकोलाई ग्रूबे ने अपने व्याख्यान में कहा - माया लोगों की सभ्यता और संस्कृति इतनी बड़ी व रोचक है कि उसे 2012 की 21 DEC 2012 वाली कमबख्त तारीख तक ही सीमित नहीं किया जा सकता ।
माया सभ्यता के जानकारों का कहना है - इस समय केवल 2 ऐसे ऐतिहासिक अभिलेख उपलब्ध हैं । जिनके आधार पर कहा जा सकता है । माया भविष्यवाणी में ऐसा सचमुच कहा गया है । या नहीं कि 21 DEC 2012  के दिन दुनिया का अंत हो जाएगा । 1 तो है लगभग 1300 वर्ष पुराना - 1 शिलालेख । और दूसरा है लगभग 800 वर्ष पुरानी - 1 हस्त लिखित पांडुलिपि ।
माया सभ्यता के जर्मन विशेषज्ञों में से 1 हैं - स्वेन ग्रोनेमायर । मेक्सिको की खाड़ी के पास तोर्तुगुएरो नामक स्थान पर हुए उत्खनन में कोई 4 साल पहले 1 शिला लेख मिला था । ग्रोनेमायर ने इस शिला लेख का बारीकी से अध्ययन किया । और उसकी चित्र लिपि को स्वयं पढ़ा । उनका कहना है - शिला लेख पर लिखा संदेश करीब 1300 पहले उकेरा गया था । यह शिला खंड ( पत्थर ) कुछ इस तरह से टूट गया है कि लेख का अंतिम हिस्सा ठीक से पढ़ा नहीं जा सकता ।
1300 वर्ष पुराने इस शिला लेख में वर्णन है - 398 वर्षों तक तक चलने वाले 13 वें माया काल खंड के अंत के साथ ( जो हमारे वर्तमान ईसवी सन के अनुसार 21 DEC 2012 को पड़ना चाहिये ) माया देवता बोलोन योक्ते की वापसी होगी । ग्रोनेमायर कहते हैं - शिला लेख से ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता कि इस दिन के आने या बोलोन योक्ते की वापसी के साथ प्रलय आयेगा । या दुनिया का अंत हो जा्येगा ।
ग्रोनेमायर कहते हैं - माया कैलेंडर 3114 ईसवी पूर्व शुरू होता है । इस समय उसका बाकतून कहलाने वाला गणना चक्र चल रहा है ( हर 18 72 000 दिन । यानी लगभग 5128 वर्ष बाद बाकतून काल खंड पुनः आता है )
वर्तमान 13वें बाकतून चक्र में माया देवता बोलोन योक्ते की वापसी तक के जिस समय का उल्लेख है । उसका अवतरण माया कैलेंडर शुरू होने के ठीक 5125 वर्ष बाद होना चाहिए । इसे आधार बना कर गणना करने पर 21 DEC 2012 वह दिन निकलता है । जब इस माया देवता को वापस आना चाहिये । उसके बाद 1 नये गणन चक्र वाला 1 नया कालखंड शुरू होना चाहिए ।
माया सभ्यता के कैलेंडर के खौफ । धर्म ग्रन्थों में उल्लेखित कयामत का दिन । वैज्ञानिकों द्वारा प्राकृतिक आपदा । और उल्का पिंड से धरती के नष्ट होने की भविष्यवाणी के बीच 7 अरब की जंगली जनसंख्या ने पशु । पक्षी । जलचर जंतु और प्राकृतिक संपदाओं को नष्ट करने की कोई कसर नहीं छोड़ी है । स्वाभाविक रूप से मानव अब अपने मरने के इंतजार के डर तले जी रहा है ।
4 अरब वर्ष से ज्यादा पुरानी है धरती । धरती पर जीवन लगभग 1 अरब वर्ष पूर्व शुरू हुआ ।
80 लाख वर्ष पूर्व मानव अस्तित्व में आया । 3 से 4 बार आ चुका है - प्रलय । लेकिन जीवन बचा रहा ।
सभी धर्मों में प्रलय को लेकर अलग अलग मान्यता है । धरती स्वयं को संतुलित करने के लिए प्रलय का सृजन करती है ।
वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार 80 लाख वर्ष पूर्व मानव अस्तित्व में आया । उसमें भी आज के आधुनिक मानव का निर्माण लगभग 2 लाख वर्ष पूर्व हुआ । 75 000 वर्ष पहले सुमात्रा नामक स्थान पर 1 भयानक ज्वालामुखी फ़टा । जिसके कारण धरती पर से जीवन लगभग समाप्त हो गया । चारों ओर आग और धुयें के बवंडर से धरती पर 6 वर्ष तक अधेरा छाया रहा । वैज्ञानिकों के अनुसार अफ्रीका के जंगलों में मुठ्ठी भर मानवों का 1 समूह स्वयं को सुरक्षित रख पाया । जिसके कारण आज धरती पर मानव का अस्तित्व है ।
कुछ वैज्ञानिक इसे नहीं मानते । वे मानते हैं - एशिया से अफ्रीका पहुंचे थे - प्रारंभिक मानव । दुनिया भर के आदिवासियों की संस्कृति । सभ्यता । और अनुवांशिकी गुणों में इसीलिये समानता है ।
प्रलय संबंधी अधूरे ज्ञान और अंधविश्वास के चलते हॉलीवुड में कई फिल्में बन चुकी है । वहीं लोगों में भय । कौतुहल । और मनमानी चर्चाओं का दौर जारी है । सवाल उठता है - क्या कारण हैं कि सारी दुनिया को प्रलय से पहले प्रलय की चिंता खाये जा रही हैं ? क्या कारण है । जो लोगों को भयभीत किया जा रहा है । और क्या सचमुच ही ऐसा कुछ होने वाला है ? धरती पर से जीवन का नष्ट होना । और धरती नष्ट होना दोनों अलग अलग विचार है ।
ये वे कारण हैं । जिनसे दुनिया डर रही है ।
1 - हर धर्म और सभ्यता ने मानव को ईश्वर और प्रलय से डराया है । धर्म ग्रंथों में प्रलय का भयानक चित्र मनुष्य जाति को ईश्वर से जोड़े रखता है । दूसरी ओर माया सभ्यता के कैलेंडर में शुक्रवार 21 DEC 2012 में दुनिया के अंत की बात कही गई है । कैलेंडर में पृथ्वी की उमृ 5126 वर्ष आंकी गई है ।
माया सभ्यता जानकारों का कहना है - 26 000 साल में इस दिन पहली बार सूर्य अपनी आकाश गंगा मिल्की वे के केंद्र की सीध में आ जा्येगा । इसकी वजह से पृथ्वी बेहद ठंडी हो जा्येगी । इससे सूरज की किरणें पृथ्वी पर पहुंचना बंद हो जा्येगी । और हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा छा जायेगा ।
माया सभ्यता के अंधविश्वास को जर्मनी के 1 वैज्ञानिक रोसी ओडोनील और विली नेल्सन ने और हवा दी है । उन्होंने 21 DEC 2012 को planet X ग्रह की पृथ्वी से टक्कर की बात कहकर पृथ्वी के विनाश की भविष्यवाणी की है । करीब 250 से 900 ईसा पूर्व माया नामक 1 प्राचीन सभ्यता स्थापित थी । ग्वाटेमाला । मैक्सिको । होंडुरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में इस सभ्यता के अवशेष खोज कर्ताओं को मिले हैं ।
ईसाई धर्म के उपदेशक हैराल्ड कैपिंग ने बाइबल के सूत्रों के आधार पर दावा किया - 21 MAY 2011 SAT को शाम 6 बजे दुनिया का अंत होना तय है । प्रलय की शुरुआत में तत्काल ही दुनिया की 75% आबादी प्रलय के गर्त में समा जाएगी । सिर्फ 20 करोड़ लोग ही बचेंगे । 21 MAY से 21 OCT 2011 के बीच प्राकृतिक आपदाओं और युद्धों की झड़ी लग जाएगी ।
नास्त्रेदमस विश्लेषकों के अनुसार नास्त्रेदमस ने प्रलय के बारे में बहुत स्पष्ट लिखा है - मैं देख रहा हूँ कि आग का 1 गोला पृथ्वी की ओर बढ़ रहा है । जो धरती से मानव की विलुप्ति का कारण बन सकता है ।
प्रलय की धार्मिक मान्यता में कितनी सच्चाई है । या यह सिर्फ कल्पना मात्र है । जिसके माध्यम से लोगों को भयभीत करते हुए धर्म और ईश्वर में पुन: आस्था को जगाया जाता है । धार्मिक पुस्तकें किसने लिखी ? कलैंडर किसने बनाया ? खुद मानव ही है इनका रचनाकार । लेकिन इन भविष्यवाणियों का कोई ठोस आधार न होकर पूर्ववर्ती धारणायें और ईश्वर का डर ही अधिक है । भय । लालच । और युद्ध के दम पर ही कायम है - धर्म की कौम ।
2 - जहाँ तक वैज्ञानिक दृष्टिकोण का सवाल है । वह भी विरोधाभासी है । कई बड़े वैज्ञानिकों को आशंका है - X नाम का ग्रह धरती के काफी पास से गुजरेगा । और अगर इस दौरान इसकी पृथ्वी से टक्कर हो गई । तो पृथ्वी को कोई नहीं बचा सकता । कुछ वैज्ञानिक यह आशंका जताते हैं -  2012 के आसपास ही या 2012 में ही अंतरिक्ष से चंद्रमा के आकार के किसी उल्का पिंड के धरती से टकराने की संभावना है । यदि ऐसा होता हैं । तो इसका असर आधी दुनिया पर होगा । हालांकि कुछ वैज्ञानिक ऐसी किसी भी आशंका से इंकार करते हैं ।
ध्यान रहे । इससे पहले भी कई बार उल्का पिंड धरती पर गिरे हैं । लेकिन वे धरती का कुछ नहीं बिगाड़ पाये । जावा । सुमात्रा । और मेक्सिको के आसपास कई उल्का पिंडों के गिरने से तबाही हुई ।
3 - ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते लगातार दुनिया के ग्लैशियर पिघल रहे हैं । और जलवायु परिवर्तन हो रहा है । कहीं सुनामी । कहीं भूकंप । कहीं तूफान का कहर जारी है । हाल ही में जापान में आई सुनामी ने दुनिया को प्रलय की तस्वीर दिखा दी । इतिहास दर्शाता है कि ऐसी कई सुनामियां । भूकम्प । अति जल वृष्टि और ज्वालामुखियों ने कई बार दुनिया में प्रलय का चित्र खींच दिया था ।
सिकुड़ता पशु पक्षी और जलचर जगत बदलती जलवायु आवसीय हास और मानवीय हस्तक्षेप के चलते पक्षियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है । और ऐसा अनुमान है कि आने वाले 100 साल में पक्षियों की 1183 प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं । 128 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं ।
हजारों लाखों की तादाद में पशु पक्षी और मछलियों के किसी अनजान बीमारी से मरने की खबर से दुनिया सकते में हैं । समुद्री तट पर लाखों मरी हुई मछलियों की खबर आये दिन आती रहती है । हाल ही में अमेरिका के 1 छोटे से गांव बीबे में नये साल की सुबह लोगों को सड़कों पर घरों के आंगन में और पूरे गांव में 5000 ब्लैक बर्डस मरे हुए मिले ।
आपको बता दें कि ये कारण हर काल में रहे हैं । और रहेंगे । 1 और 4 कारण छोड़ दें । तो बाकी बचे 2 कारणों के कारण धरती पर से कई बार जीवन नष्ट हो चुका है । लेकिन धरती कभी नष्ट नहीं हुई । स्टीफन हॉकिंग मानते हैं - धरती नष्ट हो जाएगी । तो कहना होगा कि विज्ञान भी अंधविश्वास का शिकार हो चला है ।
आखिर प्रलय क्यों आती है ? धरती पर पाप बढ़ने के कारण क्या ईश्वर प्रलय लाता है ? या कि प्रलय के और भी कई कारण हैं ? जो जानकार हैं । वे कहेगें - मानव ही है प्रलय का सृजनकार । क्योंकि उसने धरती पर जो जुल्म किया है । धरती उसका बदला लेने के लिए अब पूरी तरह तैयार है ।
प्राकृतिक दोहन किये जाने से कमजोर पड़ती धरती । ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण पिघल रहे हैं ग्लैशियर ।
ओजोन परत में छेद के कारण बढ़ता धरती का तापमान । धरती को खतरा आकाश से गिरने वाली उल्का पिंडों से ।
धरती के 75 % हिस्से पर जल है । और सिर्फ 25 % हिस्से पर ही मानव की गतिविधियां जारी थी । आज से 200-300  साल पहले मानव की आकाश और समुद्र में पकड़ नहीं थी । लेकिन जबसे मानव ने आकाश और समुद्र में दखल अंदाजी की है । धरती को पहले की अपेक्षा बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है । तेल के खेल और खनन ने धरती का तेल निकाल दिया है । वक्त के पहले धरती को मार दिये जाने की हरकतें धरती कतई बर्दाश्त नहीं कर पायेगी । इससे पहले कि मानव अपनी हदें पार करे । धरती उसके अस्तित्व को मिटाने की पूरी तैयारी कर चुकी है ।
धरती का अपना 1 पारिस्थितिकी तंत्र होता है । उस तंत्र के गड़बड़ाने से जीवन और जलवायु असंतुलित हो गया है । मानव की प्रकृति में बढ़ती दखल अंदाजी के चलते वह तंत्र गड़बड़ा गया है । मानव ने अपनी सुख । सुविधा । और अर्थ के विकास के लिये धरती का हद से ज्यादा दोहन कर दिया है ।
मांसाहार के अति प्रचलन के चलते मूक प्राणियों के मारे जाने की संख्या लाखों से करोड़ों में पहुंच गई । जो नहीं खाना चाहिए । मनुष्य वह भी खाने लगा है । शेर को बकरी नहीं मिलती । बकरी को चारा नहीं मिलता । कुत्ते को बिल्ली नहीं मिलती । और बिल्ली को चूहा । बाज को सांप नहीं मिलता । और सांप को इल्ली । सभी के हिस्से का भोजन मनुष्य खाने लगा है ।
जो पशु जीभ से पानी पीता है । वह माँसाहारी । और जो होठ लगाकर पानी पीता है । वह शाकाहारी है । मनुष्य भी 1 शाकाहारी प्राणी है । लेकिन उसने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल जहाँ जीवन के स्तर को अच्छा बनाने में किया । वहीं उसने स्वयं सहित धरती के जीवन को संकट में डाल दिया है । तब निश्चत ही प्रकृति प्रलय का सृजन कर स्वयं को रिफोर्म करेगी । प्राकृतिक और खगोलीय घटनाओं के लिए मानव स्वयं जिम्मेदार है ।
ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते लगातार दुनिया के ग्लैशियर पिघल रहे हैं । और जलवायु परिवर्तन हो रहा है । कहीं सुनामी । तो कहीं भूकंप और कहीं तूफान का कहर जारी है । दूसरी और धरती के उपर ओजोन पर्त का जो जाल बिछा हुआ है । उसमें लगभग ऑस्ट्रेलिया बराबर का 1 छेद हो चुका है । जिसके कारण धरती का तापमान 1 डिग्री बढ़ गया है । 1 अन्य शोध के चलते वैज्ञानिकों का कहना है - भूकंप आदि आपदाओं के कारण धरती अपनी धूरी से 2.50 से 3 डिग्री खिसक गई है । जिसके कारण भी जलवायु परिवर्तित हो गया है ।
धरती पर से प्राकृतिक आपदा के कारण कई बार कई जाति और प्रजातियों का विनाश हो चुका है । वैसे मानव को अस्तित्व में आये वैज्ञानिकों अनुसार तो लगभग 2 करोड़ साल ही हुए हैं । और 1 दूसरी मान्यता अनुसार 80 लाख वर्ष पूर्व आधुनिक मानव अस्तित्व में आया । धरती की अब तक की आयु का आंकलन 4.5 अरब वर्ष किया गया है । हालांकि वैज्ञानिकों में इस बारे में मतभेद हैं ।
वैज्ञानिक कहते हैं - धरती के सारे द्वीप - अमेरिका । भारत । ऑस्ट्रेलिया । अफ्रीका आदि एक दूसरे से जुड़े हुये थे । लेकिन धरती की घूर्णन गति ( अपनी धुरी पर घूमना ) के कारण ये सभी एक दूसरे से धीरे धीरे अलग होते गए । और इस प्रक्रिया में हजारों लाखों साल लगे । इस घूर्णन गति के कारण ही समुद्र और धरती के अंदर स्थित बड़ी बड़ी चट्टानें घिसकर एक दूसरे से दूर होती रहती है । जिसके कारण भूकंप और ज्वालामुखी सक्रिय होते हैं । और यह 1 स्वाभाविक प्रक्रिया है । जो आज भी जारी है । और आगे भी निरंतर जारी रहेगी । लेकिन जब मानव इस स्वाभाविक प्रक्रिया में दखल देता है । तो स्थिति और भयानक बन जाती है ।
आज धरती की हालत पहले की अपेक्षा इसलिए खराब हो चली है कि मानव ने समुद्र । आकाश और भूगर्भ में आवश्यकता से अधिक दखल दे दिया है । इसलिए वैज्ञानिकों के लिए सर्वप्रथम सबसे बड़ी चिंता का कारण आकाश से आने वाली कोई उल्का पिंड नहीं । बल्कि धरती के खुद के ही असंतुलित होकर भारी तबाही मचाने का है । मौसम इस तेजी से बदल रहा है कि - जलचर । थलचर । और नभचर प्राणियों का जीना मुश्किल होता जा रहा है । हवा दूषित होती जा रही है । खाद्यान संकट बढ़ रहा है । मानव की जनसंख्‍या से पशु । पक्षियों और जलचर जंतुओं का अस्तित्व खतरे में हो चला है । पारिस्थितिकि तंत्र गड़बड़ा रहा है । तो स्वाभाविक रूप से मानव खुद ही प्रलय का निर्माता है ।
सभी  जानकारी साभार विभिन्न इंटरनेट स्रोत से

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