शनिवार, अप्रैल 21, 2012

जब जमीन पर था डायनासोरों का राज

अब से लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पहले । हमारी इस पृथ्वी पर डायनासोरों का एकछत्र राज था । बेहद भारी भरकम और विशालकाय ये अजीव प्राणी कैसे विलुप्त हुये ? इस बारे में कई तरह की अवधारणाएं हैं । लेकिन इनमें जो सच के सबसे करीब लगती है । वह यह कि - एक क्षुद्र ग्रह से पृथ्वी से टकराने के कारण भारी मात्रा में धूल के विशाल बादलों ने तमाम वायुमंडल को ढक लिया । और कई महीनों तक सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक नहीं पहुंचने दिया । सूर्य के प्रकाश के अभाव में सभी वनस्पतियां नष्ट हो गई । और उन पर निर्भर रहने वाले डायनासोर भूख से तड़प तड़प कर मर गये । दुनिया के अनेक हिस्सों में पाये गये उनके जीवाश्म उनकी दास्तान बयान करते हैं । उस समय जिस तरह जमीन पर डायनासोरों का राज था । उसी तरह महासागरों में उनके ही संबंधियों । महाकाय समुद्री सरीसृपों का साम्राज्य था । दरअसल ये सरीसृप किसी समय जमीन पर ही विचरण किया करते थे । लेकिन कई कारणों से फ़िर उन्होंने समुद्र की शरण ले ली । ऐसा करने की मुख्यत: 2 वजह थीं । 1 तो यह कि जमीन पर चलने की तुलना में समुद्र में तैरना सरल था । और 2 - समुद्र में भोजन की प्रचुरता । समय के साथ साथ इनके शरीर में बदलाव आया । और ये समुद्री जीवन के अनुकूल बन गये । लेकिन इसके बावजूद भी इन्हें सांस लेने के लिए कुछ कुछ मिनटों के अंतराल पर पानी की सतह पर आना पड़ता था ।


वैज्ञानिक मानते हैं कि - 6.5 करोड़ वर्ष पहले । जिस दौरान डायनासोर विलुप्त हुए । उसी दौरान समुद्री सरीसृपों का अस्तित्व भी खत्म हो गया । समुद्रों में ऐसा क्या हुआ ? जिससे इन विशालकाय सरीसृपों का अस्तित्व मिट गया । यह अभी भी रहस्य ही है । हाँ इनमें से मगरमच्छ और शार्क ही ऐसे प्राणी हैं । जो तबसे आज तक मौजूद हैं । प्राचीन काल से ही समुद्री सर्पों ( सी - सरपेंट ) के बारे में तरह तरह के किस्से कहानियाँ प्रचलित हैं । माना जाता है कि ऐसे प्राणियों का अस्तित्व आज भी मौजूद है । लॉकनेस तथा अन्य कई झीलों व समुद्रों में इसी तरह के प्राणी को देखे जाने का दावा अक्सर किया भी जाता रहा है । लेकिन वैज्ञानिकों को इस तरह के सरीसृप होने का पुख्ता प्रमाण 1811 मे मिला । जब उन्हें एक चट्टान के भीतर इस तरह के महाकाय

प्राणी का कंकाल मिला । वैज्ञानिक इसे देखकर चकित और भृमित थे । क्योंकि इसका आकार मछली जैसा था । इसके पीछे मीन पक्ष थे । और इसका जबड़ा दांतों से भरा हुआ था । लेकिन यह जमीन पर रेंगने वाले सरीसृपों जैसा लग रहा था । वैज्ञानिकों ने सोच विचार कर इसे - इकथियॉसोर नाम दिया । जिसका अर्थ है । मत्यस्य - सरीसृप । ये लगभग एक ही शारीरिक आकार की प्रजातियों का समूह था । जिनमें से शोनाइ सॉरस 50 फुट तक लंबा होता था । ज्यादातर इकथियॉ सोर छोटे होते थे । और वैज्ञानिकों का विश्वास है कि ये काफी कुछ डॉल्फिन से मिलते जुलते रहे होंगे । बाद में वैज्ञानिकों को समुद्री सरीसृपों के कई जीवाश्म मिले । इनमें जो सबसे ज्यादा चर्चित हुआ । वह था - प्लीसियॉ सोर ।
यह डायनासोर की तरह न होकर तैरने वाला सरीसृप था । ग्रीक शब्द प्लीसियॉ सोर का मतलब - सरीसृपों का 


करीबी होता है । यह भी मछली और सरीसृप का मेल था । प्लीसियॉ सोर का शरीर गोलाकार । लम्बी गर्दन । और लम्बी पूंछ होती थी । इसके 4 मीन पक्ष होते थे । और सिर छोटा होता था । इसके दांत तेज धारदार होते थे । प्लीसियॉ सोर के बारे में मानना है कि - अभी यह विलुप्त नहीं हुआ है । दुनिया भर में प्लीसियॉ सोर जैसे प्राणी को देखने के दावे किए जाते रहे हैं । ऐसे मामलों में 2 चीजें सभी में समान पायी गयी हैं । केवल 1-2 मामलों में ही इसे जमीन पर देखने का दावा किया गया । जबकि अन्य मामलों में इसे समुद्र अथवा झील में ही देखा गया । अक्सर यह विचार प्रकट किया जाता रहा है कि - ये सरीसृप गहरे समुद्र के प्राणी हैं । जो भूमिगत नदियों से यदा कदा झीलों तक पहुंच जाते हैं ।
समुद्री यात्रा करने वाले नाविक अक्सर जिस समुद्री दैत्य या सी मॉन्सटर को देखने की चर्चा करते हैं । या जैसा 


समुद्री प्राणी किस्से कहानियों में वर्णित है । वह प्लीसियॉ सोर से ज्यादा मिलता है । इकथियॉसोर की तरह प्लीसियॉ सोर ऐसे प्राणि वर्ग का जंतु था । जिनकी मूल शारीरिक संरचना एक जैसी थी । इसी श्रेणी के अंतर्गत बहुत से अन्य सरीसृपों का पता चला । जिनमे से 1 था - एलास्मो सॉरस । इसकी लंबाई 45 फुट तथा गर्दन बहुत लंबी होती थी । जिससे यह 25 फुट दूरी पर खड़े शिकार को झटके से खींच लेता था । इसी वर्ग में ट्राइनाकॉ मेरियम भी था । जो प्लीसियॉ सोर से आकार में छोटा था । इसकी गर्दन छोटी लेकिन सिर और मीन पक्ष बड़े होते थे । प्लीसियॉ सोरो में सबसे बड़ा मांस भक्षी था - लियो प्लोरेडन । इसके जो जीवाश्म मिले हैं । उनके आधार पर यह 80 फुट तक लंबा

और 100 टन से भी ज्यादा भारी होता था । यह जमीन पर पाये जाने वाले टी - रेक्स नामक डायनासोर से 20 गुना वजनी था । सबसे बड़े लियो प्लोरेडन का सिर 13 फुट और जबड़ा 10 फुट लंबा पाया गया । यह सर्व भक्षी था । और प्रागैतिहासिक समुद्रों में भोजन श्रृंखला का राजा था । वैज्ञानिक बहुत समय तक इस बात को लेकर असमंजस में थे कि - प्लीसियॉ सोर अपने एक समान 4 मीन पक्षों का क्या उपयोग करते रहे होंगे ।
शुरूआती सिद्धांतों में माना गया कि - ये प्राणी अपने मीन पक्षों का इस्तेमाल चप्पू की तरह खुद को खेने के लिए करते रहे होंगे । लेकिन 1970 में जीव विज्ञानी जेन रॉबिन्सन ने इसके जीवाश्म की गहराई से जांच पड़ताल की । और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि - प्लीसियॉ सोर अपने इन 4 मीन पक्षों का इस्तेमाल पंखों की तरह करते थे । 


और इन्हें ऊपर नीचे फड़फड़ाकर पानी में उड़ा करते थे । समुद्री सरीसृपों में यह बात भी सामान्य थी कि - सबके फेफड़ थे । न कि मछलियों की तरह गलफड़े । इन्हें सांस लेने के लिए कुछ कुछ मिनट के अंतराल पर पानी की सतह पर आना पड़ता था । वर्तमान मे समुद्र में पाए जाने वाले स्तनपायी - ह्वेल । डॉल्फिन आदि भी इसी तरह सांस लेते हैं ।
जिस काल में डायनासोरों को अंत हुआ । उसी दौरान मोसॉसोर के रूप में सबसे उग्र समुद्री सरीसृप अस्तित्व में आया था । ये इकथियॉ सोर के विलुप्त होने के बाद आये । वैज्ञानिक मानते है कि प्राचीन समुद्र की भोजन श्रृंखला पर उन्हीं का दबदबा रहा होगा । ज्यादातर उथले समुद्र में रहने वाले मोसॉसोर

का शरीर लंबा और टयूब के आकार जैसा था । इसकी पूँछ बहुत लंबी होती थी । इनके 4 मीन पक्ष इन्हें स्थिरता देने और गति बढ़ाने में मददगार होते थे । इनके वर्ग में सबसे बड़ा टाइलोसॉरस था । जिसकी लंबाई 50 फुट तक होती थी । समुद्र में पाये जाने वाले सरीसृपों का अंत क्रेटेशियस काल के अंत में हुआ । यह वही समय था । जब डायनासोरों का विलोपन हुआ । उस काल का जो सरीसृप आज भी अस्तित्व में है । वह मगरमच्छ है । हालांकि 50 फुट लंबाई की तुलना में इसकी लंबाई बहुत कम है । लेकिन उसका मूल संरचना वैसी ही है ।

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